Monday, January 16, 2017

वैष्णो देवी यात्रा (Journey of Vaishno Devi) 2014-2


वैष्णो देवी यात्रा (2014)-2



एक बार फिर वैष्णो देवी (वैष्णो देवी की दूसरी यात्रा)
जून 2014 में वैष्णो देवी यात्रा से आने के बाद पत्नी और बेटा गांव चले गए। 10 दिन मैं उन लोगों को लाने के लिए गया क्योंकि गरमी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने वाली थी। वहां जाने पर माताजी ने कहा कि तुम लोग तो वैष्णो देवी से आ गए पर अगर अगली बार जाओगे हम लोग भी चलेंगे। मैंने कहा ठीक है अगली बार सब लोग जाएंगे। बात यहीं पर ख़तम हो गयी।

मैं पत्नी और बेटे के साथ दिल्ली आ गया। 14 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली से कटरा तक जाने वाली पहली ट्रेन का उद्घाटन किया। हम टीवी पर यही न्यूज़ देख ही रहे थे कि कंचन ने कहा कि देखिये हम लोग 1 महीने पहले वैष्णो देवी गए थे तो ट्रेन वहां तक नहीं जाती थी लेकिन अब ट्रेन सीधे कटरा तक चली जाएगी तो क्यों न आने वाली नवरात्रि में मम्मी और पापा को आप वैष्णो देवी ले जाएँ। मैंने कहा कि आईडिया तो ठीक है पर इतनी जल्दी जाने के लिए ऑफिस से छुट्टी लेना मुश्किल है क्योंकि अभी हम लोग वैष्णो देवी गए तो छुट्टी लिए और उसके बाद अभी तुम लोगो को गांव से लाने गए तो छुट्टी लिए फिर छुट्टी लेना मुश्किल है।

Monday, January 9, 2017

केदारनाथ कैसे जाएँ (How to reach Kedarnath)

 केदारनाथ : अद्भुत, अविश्सनीय, अकल्पनीय 

वैसे तो पूरा उत्तराखंड ही देव भूमि कहा जाता है। उत्तराखंड का हिन्दू संस्कृति और धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। यहां गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ जैसे कई सिद्ध तीर्थ स्थल हैं। सारी दुनिया में भगवान शिव के करोड़ों मंदिर हैं परन्तु उत्तराखंड स्थित पंच केदार सर्वोपरि हैं। भगवान शिव ने अपने महिषरूप अवतार में पांच अंग, पांच अलग-अलग स्थानों पर स्थापित किए थे। जिन्हें मुख्य केदारनाथ पीठ के अतिरिक्त चार और पीठों सहित पंच केदार कहा जाता है। इस लेख में अभी हम केवल केदारनाथ और पंच केदार की बात करेंगे।  बाकी जगहों की बातें बाद में दूसरे लेख में करेंगे। इस लेख में दिए गए सारे फोटो मेरे द्वारा लिए गए हैं जब मैं केदारनाथ की यात्रा पर गया था।  जो फोटो मेरी नहीं है मैंने उसके आगे लिख दिया है कि फोटो कहाँ से लिया गया है। 

Thursday, January 5, 2017

दिल्ली से आगरा (Delhi to Agra)

दिल्ली से आगरा 



2 जून 2013 (रविवार)
बहुत दिनों से ताजमहल देखने का मन हो रहा था। आख़िरकार 2 जून 2013 को ताजमहल देखने की प्लानिंग हुई।  मैं, मेरी पत्नी, बेटा, ऑफिस के ही एक सहकर्मी (नरेंद्र), उनकी पत्नी, उनकी बेटी और बेटा, एवं ऑफिस के ही दुसरे सहकर्मी (राजीव) मिलकर हम 8 लोग हो गए। दिल्ली से आगरा जाने और आने का हमने ताज एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 12280 डाउन) का टिकट बुक किया और वापसी का टिकट भी ताज एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 12279 अप) का ही लिया।




एक दिन का टूर था इसलिए कोई ज्यादा तैयारी करने की कोई जरूरत नहीं थी।  बस दिन के खाने के लिए कुछ बनाकर ले लेना था।  यात्रा वाले दिन हम लोग 4 बजे ही उठ गए थे  जल्दी से कुछ खाना बनाकर पैक किया गया और नहा धोकर हम लोग  तैयार हो गए।  ताज एक्सप्रेस हजरत निजामुद्दीन से 7 बजे चलती है और आगरा 9:40 पर पहुँचती है। 7 बजे की ट्रेन थी तो हमने 5 : 30 घर से निकल गए और जिन लोगों जाना था वे लोग भी अपने अपने घर से निकल चुके थे।  बात हुई की बस स्टॉप पर मिलते हैं और से ऑटो में बैठेंगे।  बस स्टॉप पर आकर हमने 2 ऑटो किया।  एक ऑटो में नरेंद्र जी अपने परिवार के साथ  बैठे और दूसरे ऑटो में हम अपने परिवार के साथ बैठे।  नरेंद्र जी 4 लोग थे तो वो सब एक ऑटो में और हम 3 लोग थे और एक राजीव जी थे तो 4 लोग एक ऑटो में बैठ गए।

वैष्णो देवी यात्रा (Journey of Vaishno Devi) 2014-1

वैष्णो देवी यात्रा-1 (2014)




बहुत दिनों सो सोच रहा था वैष्णो देवी यात्रा पर जाने का पर समय ही नहीं निकाल पा रहा था।  कभी बच्चे के स्कूल में छुट्टी नहीं मिलती और स्कूल में छुट्टी मिलती तो मुझे नहीं मिल पाती।  पर साल 2014 के आरम्भ में ही सोच लिया था कि चाहे कुछ  हो इस बार गर्मी की छुट्टियों में वैष्णो देवी जरूर जाऊँगा।  जून में जाने की प्लानिंग किया। टिकट अप्रैल में बुक करवाना होगा। टिकट बुक करने से पैरेंट्स को जाने के लिए कहा तो उन लोगों ने मना कर दिया कि उस समय रिस्तेदारों में बहुत सारी शादियां होती है तो वहां भी जाना पड़ता है, इलसिए तुम लोग चले जाओ हम लोग कभी बाद में जाएंगे। पेरेंट्स के मना करने पर मैं अपना, पत्नी और बेटे का टिकट बुक करना था। मैंने अप्रैल में ही टिकट ऑनलाइन 3  टिकट बुक किया।  दिल्ली से  जम्मू के लिए उत्तर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 12445) और आने का टिकट जम्मू-दिल्ली सराय रोहिल्ला दुरंतो एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 12266) का ऑनलाइन टिकट (www.irctc.co.in) बनाया। आज ट्रेनें सीधे कटरा तक जाती है पर उस समय ट्रेन जम्मू या उधमपुर तक ही जाती थी। जम्मू से कटरा तक 2 घंटे  सफर बस से करना पड़ता था। ट्रेनें भले कटरा  तक नहीं जा रही थी पर कटरा में स्टेशन बनकर तैयार था अगर किसी चीज़ की देर  थी वहां तक ट्रेन के पहुँचने में तो माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्घाटन की। मेरी वहां की यात्रा के एक महीने बाद ही 14 जुलाई से कटरा तक ट्रेन जाने लगी थी और वह ट्रेन श्री शक्ति एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 22461 अप दिल्ली से कटरा और 22462 डाउन कटरा से दिल्ली) थी। कटरा में रहने के लिए मैंने कटरा रेलवे स्टेशन पर ही रेलवे का ही गेस्ट हाउस बुक किया जो ऑनलाइन (www.irctctourism.com/) ही बुक  होता है और वापसी  में दिन में रुकने के लिए जम्मू रेलवे स्टेशन पर रिटायरिंग रूम बुक किया।

रघुनाथ मंदिर, जम्मू (Raghunath Temple, Jammu)

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रघुनाथ मंदिर, जम्मू


रघुनाथ मंदिर के बारे में 

रघुनाथ मंदिर का निर्माण 1857 में महाराजा रणवीर सिंह और उनके पिता महाराजा गुलाब सिंह द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर में 7 ऐतिहासिक धार्मिक स्‍थल मौजूद है। मंदिर के आन्‍तरिक हिस्‍सों में सोना लगा हुआ है जो तेज का स्‍वरूप है। मंदिर में कई देवी और देवताओं की मूर्ति लगी हुई है। इस मंदिर में हिंदू धर्म के 33 करोड़ देवी और देवताओं की लिंगम भी बने है जो मंदिरों में एक इतिहास है। श्रद्धालुओं को यहां आकर काफी आश्‍चर्य होता है।

  • यह मन्दिर आकर्षक कलात्मकता का विशिष्ट उदाहरण है।
  • रघुनाथ मंदिर भगवान राम को समर्पित है।
  • यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे प्रमुख एवं अनोखे मंदिरों में से एक है।
  • इस मंदिर को सन् 1835 में इसे महाराज गुलाब सिंह ने बनवाना शुरू किया पर निर्माण की समाप्ति राजा रंजीत सिंह के काल में हुई।
  • मंदिर के भीतर की दीवारों पर तीन तरफ से सोने की परत चढ़ी हुई है।
  • इसके अलावा मंदिर के चारों ओर कई मंदिर स्थित है जिनका सम्बन्ध रामायण काल के देवी-देवताओं से हैं।
  • रघुनाथ मन्दिर में की गई नक़्क़ाशी को देख कर पर्यटक एक अद्भुत सम्मोहन में बंध कर मन्त्र-मुग्ध से हो जाते हैं।

Tuesday, January 3, 2017

केदारनाथ (Kedarnath)

केदारनाथ (Kedarnath)

चौथा दिन

सुबह के 3 बजते ही मोबाइल का अलार्म बजना शुरू हो गया। नींद पूरी हुई नहीं थी इसलिए उठने का मन बिलकुल नहीं हो रहा था।  सब लोगों को जगाकर मैं एक बार फिर से सोने की असफल कोशिश करने लगा।जून के महीने में भी ठण्ड इतनी ज्यादा थी कि रजाई से बाहर निकलने का मन नहीं हो रहा था। 5 बजे तक हम लोगों को तैयार होकर गेस्ट हाउस से केदारनाथ के लिए निकल जाना था इसलिए ना चाहते हुए भी इतनी ठण्ड में रजाई से निकलना ही था। पहले तो पिताजी और बेटे नहाने गए। उसके बाद माताजी और पत्नी की बारी आयी। मेरा मन गरम पानी के झरने में नहाने का करने लगा पर हिम्मत नहीं हो रही थी कि बाहर निकलें। कमरे के अंदर का तापमान जब 5 डिग्री के करीब था तो सोचिये बाहर का तापमान कितना होगा। फिर मैं टॉर्च और एक टॉवेल लिया और पिताजी को ये बोलकर कि मैं कुछ देर में आता हूँ और तेज़ी से कमरे से निकल गया। बाहर निकलते ही ठण्ड ने अपना असर दिखाया। ऐसा लग रहा था कि मैं किसी बर्फ से भरे  किसी टब में हूँ। मैं दौड़ता हुआ गेस्ट हाउस की 50 सीढियाँ उतर गया। हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। उस सन्नाटे में मन्दाकिनी नदी की पानी के बहने की जो आवाज़ थी बहुत ही मधुर लग रही थी। मन्दाकिनी की आवाज ऐसे लग रही थी जैसे कोई संगीत की धुन हो। मैं सीढ़ियों से उतरने के बाद मन्दाकिनी की तरफ गया और देखने लगा की गरम पानी का झरना किधर है।

श्रीनगर (गढ़वाल) से गौरीकुण्ड (Srinagar to Gaurikund)

श्रीनगर (गढ़वाल) से गौरीकुण्ड (Srinagar to Gaurikund)

तीसरा दिन
आज हमें श्रीनगर से रुदप्रयाग हुए होते हुए गौरीकुंड तक जाना था और गौरीकुंड में ही रात्रि विश्राम करना था।सुबह हम लोग 3 बजे ही जाग गए। कल की थकान के कारण आज उठने का मन नहीं कर रहा था फिर भी किसी तरह उठा और नहाने गए तो पानी बहुत ठंडा था फिर भी हम लोग नहाये सामान पैक किया और 5 बजे गेस्ट हाउस से बाहर आ गए। बाहर आते ही एक जीप मिली वो रुद्रप्रयाग तक जा रही थी हम लोग उसमें बैठ गए। 6 बजे हम लोग रुद्रप्रयाग पहुँच गए।  जीप वाले ने हमसे 5 लोगों के 150 रुपए लिया। मौसम बिलकुल ठंडा था।  कहाँ दिल्ली में 40 से 40 डिग्री तापमान और यहाँ इतनी ठण्ड। रुद्रप्रयाग पहुँचते पहुँचते बेटा ठण्ड से काँपने लगा था। यहाँ जीप से उतरते ही सबसे पहले उसे जैकेट पहनाया गया। रुद्रप्रयाग में जहाँ हम जीप से उतरे वहां पर बहुत साड़ी जीपें खड़ी थी। कुछ जीप गुप्तकाशी जा रही थी, कुछ कर्णप्रयाग, कुछ चमोली, कुछ उखीमठ। यहाँ से कोई भी जीप सीधे सोनप्रयाग तक नहीं जा रही थी, जो भी जा रही थी गुप्तकाशी तक और गुप्तकाशी से फिर दूसरी जीप से सोनप्रयाग।  मैं गुप्तकाशी जाने वाली एक जीप में बैठने ही वाला था कि एक बस पर नज़र पड़ी जो सीधे सोनप्रयाग जा रही थी। हम बस में जाकर बैठ गए। 7 बजे बस खुली और रुद्रप्रयाग बाजार पर करने के बाद मैंने देखा की वह से सड़क दो तरफ जाती है। एक सड़क बदरीनाथ और दूसरी केदारनाथ। रुद्रप्रयाग में अलकनन्दा और मन्दाकिनी का संगम है। मन्दाकिनी केदारनाथ से आती है और अलकनन्दा बदरीनाथ से आती है। यहाँ दोनों मिलकर इससे आगे देवपरयाग तक अलकनन्दा के नाम से ही जानी जाती है।रुद्रप्रयाग बाजार पार करने के बाद बस केदारनाथ के रास्ते पर चल पड़ी। रुद्रप्रयाग से सोनप्रयाग तक का बस का एक आदमी का किराया 100 रुपए है। सड़क इतनी खतरनाक  कि देखकर ही जान निकल जाती।  सड़क पर बस दौड़ी चली जा रही थी।