Thursday, January 5, 2017

वैष्णो देवी यात्रा (Journey of Vaishno Devi) 2014-1

वैष्णो देवी यात्रा-1 (2014)




बहुत दिनों सो सोच रहा था वैष्णो देवी यात्रा पर जाने का पर समय ही नहीं निकाल पा रहा था।  कभी बच्चे के स्कूल में छुट्टी नहीं मिलती और स्कूल में छुट्टी मिलती तो मुझे नहीं मिल पाती।  पर साल 2014 के आरम्भ में ही सोच लिया था कि चाहे कुछ  हो इस बार गर्मी की छुट्टियों में वैष्णो देवी जरूर जाऊँगा।  जून में जाने की प्लानिंग किया। टिकट अप्रैल में बुक करवाना होगा। टिकट बुक करने से पैरेंट्स को जाने के लिए कहा तो उन लोगों ने मना कर दिया कि उस समय रिस्तेदारों में बहुत सारी शादियां होती है तो वहां भी जाना पड़ता है, इलसिए तुम लोग चले जाओ हम लोग कभी बाद में जाएंगे। पेरेंट्स के मना करने पर मैं अपना, पत्नी और बेटे का टिकट बुक करना था। मैंने अप्रैल में ही टिकट ऑनलाइन 3  टिकट बुक किया।  दिल्ली से  जम्मू के लिए उत्तर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 12445) और आने का टिकट जम्मू-दिल्ली सराय रोहिल्ला दुरंतो एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 12266) का ऑनलाइन टिकट (www.irctc.co.in) बनाया। आज ट्रेनें सीधे कटरा तक जाती है पर उस समय ट्रेन जम्मू या उधमपुर तक ही जाती थी। जम्मू से कटरा तक 2 घंटे  सफर बस से करना पड़ता था। ट्रेनें भले कटरा  तक नहीं जा रही थी पर कटरा में स्टेशन बनकर तैयार था अगर किसी चीज़ की देर  थी वहां तक ट्रेन के पहुँचने में तो माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्घाटन की। मेरी वहां की यात्रा के एक महीने बाद ही 14 जुलाई से कटरा तक ट्रेन जाने लगी थी और वह ट्रेन श्री शक्ति एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 22461 अप दिल्ली से कटरा और 22462 डाउन कटरा से दिल्ली) थी। कटरा में रहने के लिए मैंने कटरा रेलवे स्टेशन पर ही रेलवे का ही गेस्ट हाउस बुक किया जो ऑनलाइन (www.irctctourism.com/) ही बुक  होता है और वापसी  में दिन में रुकने के लिए जम्मू रेलवे स्टेशन पर रिटायरिंग रूम बुक किया।


संक्षिप्त ब्यौरा 
  • 4 जून 2014 (बुधवार): दिल्ली से जम्मू 
  • 5 जून 2014 (गुरुवार):  सुबह में जम्मू से कटरा, कटरा में थोड़ा आराम और दोपहर बाद कटरा से वैष्णो दरबार और भैरोनाथ 
  • 6 जून 2014 (शुक्रवार): वैष्णो दरबार से वापस कटरा (दोपहर तक गेस्ट हाउस पहुँच गए ) थोड़ा आराम, फिर मार्केटिंग और रात्रि विश्राम )
  • 7 जून 2014 (शनिवार): सुबह कटरा से जम्मू और दिन में जम्मू के कुछ स्थान का दीदार और शाम में वापसी की ट्रेन 
  • 8 जून 2014 (रविवार): सुबह दिल्ली पहुँच कर यात्रा समाप्त 

त्रिकुटा पहाड़ियों में वैष्णो देवी का दरबार (फोटो इन्टरनेट से)

अब कुछ बातें जम्मू, कटरा और वैष्णो देवी के बारे में

वैष्णो देवी की यात्रा 
कहते हैं पहाड़ों वाली माता वैष्णो देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। ऐसा ही सच्चा दरबार है- माता वैष्णो देवी का।
माता का बुलावा आने पर भक्त किसी न किसी बहाने से उसके दरबार पहुँच जाता है। हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित माता वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं।

मान्यता 
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और सभी गाँववालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया। पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने भैरवनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया गया था। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए माँ वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी हनुमान को बुलाकर कहा कि भैरवनाथ के साथ खेलों मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी। इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेला। आज इस पवित्र गुफा को 'अर्धक्वाँरी' के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वाँरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। त्रिकुट पर वैष्णो मां ने भैरवनाथ का संहार किया तथा उसके क्षमा मांगने पर उसे अपने से उंचा स्थान दिया कहा कि जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी। अत: श्रदालु आज भी भैरवनाथ के दर्शन को अवशय जाते हैं।


भैरो नाथ मंदिर 
जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान आज पूरी दुनिया में 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (बाएँ) और माँ लक्ष्मी पिंडी (मध्य) के रूप में गुफा में विराजित है, जिनकी एक झलक पाने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इन तीनों के सम्मि‍लित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को 'भैरोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी। माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।

कैसे पहुंचे 
माँ वैष्णो देवी की यात्रा का पहला पड़ाव जम्मू होता है। जम्मू तक आप बस, टैक्सी, ट्रेन या फिर हवाई जहाज से पहुँच सकते हैं। जम्मू ब्राड गेज लाइन द्वारा जुड़ा है। गर्मियों में वैष्णो देवी जाने वाले यात्रियों की संख्या में अचानक वृद्धि हो जाती है इसलिए रेलवे द्वारा प्रतिवर्ष यात्रियों की सुविधा के लिए दिल्ली से जम्मू के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जाती हैं। अब तो ट्रेन सीधे आधार शिविर कटरा तक जाने लगी है। 
जम्मू भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 1 ए पर स्थित है। अत: यदि आप बस या टैक्सी से भी जम्मू पहुँचना चाहते हैं तो भी आपको कोई परेशानी नहीं होगी। उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए आपको आसानी से बस व टैक्सी मिल सकती है।
वैष्णो देवी के भवन तक की यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है, जो कि जम्मू जिले का एक गाँव है। जम्मू से कटरा की दूरी लगभग 50 किमी है। जम्मू से बस या टैक्सी द्वारा कटरा पहुँचा जा सकता है। जम्मू रेलवे स्टेशन से कटरा के लिए बस सेवा भी उपलब्ध है जिससे 2 घंटे में आसानी से कटरा पहुँचा जा सकता है।
वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत 
माँ वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है। अधिकांश यात्री यहाँ विश्राम करके अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं। माँ के दर्शन के लिए रातभर यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है। कटरा से ही माता के दर्शन के लिए नि:शुल्क 'यात्रा पर्ची' मिलती है।
यह पर्ची लेने के बाद ही आप कटरा से माँ वैष्णो के दरबार तक की चढ़ाई की शुरुआत कर सकते हैं। यह पर्ची लेने के तीन घंटे बाद आपको चढ़ाई के पहले 'बाण गंगा' चैक पॉइंट पर इंट्री करानी पड़ती है और वहाँ सामान की चैकिंग कराने के बाद ही आप चढ़ाई प्रारंभ कर सकते हैं। यदि आप यात्रा पर्ची लेने के 6 घंटे तक चैक पोस्ट पर इंट्री नहीं कराते हैं तो आपकी यात्रा पर्ची रद्द हो जाती है। अत: यात्रा प्रारंभ करते वक्त ही यात्रा पर्ची लेना सुविधाजनक होता है।
पूरी यात्रा में स्थान-स्थान पर जलपान व भोजन की व्यवस्था है। इस कठिन चढ़ाई में आप थोड़ा विश्राम कर चाय, कॉफी पीकर फिर से उसी जोश से अपनी यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। कटरा, भवन व भवन तक की चढ़ाई के अनेक स्थानों पर 'क्लॉक रूम' की सुविधा भी उपलब्ध है, जिनमें निर्धारित शुल्क पर अपना सामान रखकर यात्री आसानी से चढ़ाई कर सकते हैं।
कटरा समुद्रतल से 2500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यही वह अंतिम स्थान है जहाँ तक आधुनिकतम परिवहन के साधनों (हेलिकॉप्टर को छोड़कर) से आप पहुँच सकते हैं। कटरा से 14 किमी की खड़ी चढ़ाई पर भवन (माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा) है। भवन से 3 किमी दूर 'भैरवनाथ का मंदिर' है। भवन से भैरवनाथ मंदिर की चढ़ाई हेतु किराए पर पिट्ठू, पालकी व घोड़े की सुविधा भी उपलब्ध है।
कम समय में माँ के दर्शन के इच्छुक यात्री हेलिकॉप्टर सुविधा का लाभ भी उठा सकते हैं। लगभग 700 से 1000 रुपए खर्च कर दर्शनार्थी कटरा से 'साँझीछत' (भैरवनाथ मंदिर से कुछ किमी की दूरी पर) तक हेलिकॉप्टर से पहुँच सकते हैं।
आजकल अर्धक्वाँरी से भवन तक की चढ़ाई के लिए बैटरी कार भी शुरू की गई है, जिसमें लगभग 4 से 5 यात्री एक साथ बैठ सकते हैं। माता की गुफा के दर्शन हेतु कुछ भक्त पैदल चढ़ाई करते हैं और कुछ इस कठिन चढ़ाई को आसान बनाने के लिए पालकी, घोड़े या पिट्ठू किराए पर लेते हैं।
छोटे बच्चों को चढ़ाई पर उठाने के लिए आप किराए पर स्थानीय लोगों को बुक कर सकते हैं, जो निर्धारित शुल्क पर आपके बच्चों को पीठ पर बैठाकर चढ़ाई करते हैं। एक व्यक्ति के लिए कटरा से भवन (माँ वैष्णो देवी की पवित्र गुफा) तक की चढ़ाई का पालकी, पिट्ठू या घोड़े का किराया 250 से 1000 रुपए तक होता है। इसके अलावा छोटे बच्चों को साथ बैठाने या ओवरवेट व्यक्ति को बैठाने का आपको अतिरिक्त शुल्क देना पड़ेगा।
ठहरने का स्थान 
माता के भवन में पहुँचने वाले यात्रियों के लिए जम्मू, कटरा, भवन के आसपास आदि स्थानों पर माँ वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की कई धर्मशालाएँ व होटले हैं, जिनमें विश्राम करके आप अपनी यात्रा की थकान को मिटा सकते हैं, जिनकी पूर्व बुकिंग कराके आप परेशानियों से बच सकते हैं। आप चाहें तो प्रायवेट होटलों में भी रुक सकते हैं।
नवरात्रि में लगता है मेला : माँ वैष्णो देवी के दरबार में नवरात्रि के नौ दिनों में प्रतिदिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। कई बार तो श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या से ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती है कि पर्ची काउंटर से यात्रा पर्ची देना बंद करनी पड़ती है। इस वर्ष भी नवरात्रि में हर रोज लगभग 100000 से अधिक श्रद्धालु माँ वैष्णो के दर्शन के लिए कटरा आते हैं।




कुछ जरूरी सावधानियां
  • वैसे तो माँ वैष्णो देवी के दर्शनार्थ वर्षभर श्रद्धालु जाते हैं परंतु यहाँ जाने का बेहतर मौसम गर्मी है। 
  • सर्दियों में भवन का न्यूनतम तापमान -3 से -4 डिग्री तक चला जाता है और इस मौसम से चट्टानों के खिसकने का खतरा भी रहता है। अत: इस मौसम में यात्रा करने से बचें। 
  • ब्लड प्रेशर के मरीज चढ़ाई के लिए सीढि़यों का उपयोग ‍न करें। 
  • भवन ऊँचाई पर स्थित होने से यहाँ तक की चढ़ाई में आपको उलटी व जी मचलाने संबंधी परेशानियाँ हो सकती हैं, जिनसे बचने के लिए अपने साथ आवश्यक दवाइयाँ जरूर रखें। 
  • चढ़ाई के वक्त जहाँ तक हो सके, कम से कम सामान अपने साथ ले जाएँ ताकि चढ़ाई में आपको कोई परेशानी न हो।
  • पैदल चढ़ाई करने में छड़ी आपके लिए बेहद मददगार सिद्ध होगी।




अब यात्रा के बारे में

पहला दिन
आज रात 8 : 50  की ट्रेन थी इसलिए सारी पैकिंग सुबह ऑफिस से निकलने के पहले अच्छी तरह पैक कर लिया गया था। कुछ  खाने का का सामान बचा था उसके लिए पत्नी ने कहा कि ये दिन में मैं पैक कर लूंगी। जम्मू और दिल्ली के मौसम में कोई अंतर नहीं है सो पैकिंग के लिए ज्यादा कुछ  करने की जरूरत नहीं पड़ती।  कटरा की पहाड़ियों  मौसम थोड़ा ठंडा हो जाता है।  

आज मैं ऑफिस से 6 बजे बजाय 4 बजे ही निकल गया।  घर आकर निकलने की तयारी करने लगा। रात में नयी दिल्ली से 8 : 50 की ट्रेन थी।  हम 7 बजे घर से निकले।  एक ऑटो किया और 7 :45 बजे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गए। 8 :00 बजते बजते प्लेटफार्म पर आ गए। 10 मिनट में ही ट्रेन प्लेटफार्म पर लगा दी गयी। हम लोग अपने सीट पर बैठ गए।  हमारी तीनों बर्थ एक साथ लोअर , मिडिल और अपर बर्थ थी।  ठीक 8 :45 पर ट्रेन अपने गंतव्य की और चल पड़ी। ट्रेन में जितने लोग थे 100 में से 95 लोग वैष्णो देवी जाने वाले लोग ही थे।  ट्रेन चलने के कुछ देर बाद हम लोगों ने खाना और उसके बाद टीटीई के आने का  इंतज़ार करने लगे क्योकि यदि हम अभी सो जाते है तो वो जब आएगा तो मुझे जगा देगा।

10 बज चुके थे पर अभी तक टीटीई का कोई अता-पता नहीं था। ट्रेन अपने गति से सरपट चली जा रही थी। दूर दूर तक अँधेरा ही अँधेरा था।  ट्रेन की खिड़की से जो रौशनी बाहर जा रही थी उसे देखकर ऐसा लग रहा था की कोई जुगनू उड़ती हुई चली जा रही है। ट्रेन की आवाज़ के अलावा और कोई आवाज़ नहीं थी।  रात के संन्नाटे में ट्रेन की आवाज़ कुछ अलग ही लगती है। इतने में मैंने देखा की कुछ आगे बहुत सारे बल्ब जल रहे हैं। मैं और पत्नी आपस में बात कर रहे  कि लगता है कोई स्टेशन आने वाला है।  इतने में ही ट्रेन की गति कम होने लगी और ट्रेन पानीपत स्टेशन पहुँच चुकी थी। स्टेशन से ज्यादा रौशनी बाहर थी और हो भी क्यों नहीं क्योंकि पानीपत एक औद्योगिक नगरी जो है। 

ट्रेन के पानीपत पहुँचते भी टीईटी भी पहुँच गया।  उसने हमारी और सभी लोगों की टिकट चेक किया और फिर आगे बढ़ गया। पानीपत में ट्रेन मुश्किल से 3 से 4 मिनट रुकी और उसके बाद अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी। ट्रेन के चलते ही हम लोग और सभी लोग सोने की तैयारी में लग गए।  हम अपने घर में वैसे 10 बजे से पहले ही सो जाते हैं और आज तो 10 से ज्यादा बज रहे थे।  बर्थ पर लेटते ही नींद आ गयी।  पानीपत से चलने के बाद ही हम लोग सो चुके थे। कब अम्बाला, कब लुधियाना, कब जालंधर, और कब पठानकोट आया हमें कुछ पता चला। कब पंजाब की सीमा को पार करके ट्रेन जम्मू के सीमा में प्रवेश कर गयी कुछ पता नहीं चला।  एक तेज़ आवाज़ के साथ हमारी नींद खुल गयी। देखा तो सुबह हो चुकी थी और ट्रेन एक नदी पर बने पुल को पार कर रही थी और ये आवाज़ उसी की थी। 

जम्मू रेलवे स्टेशन (फोटो इन्टरनेट से)

दूसरा दिन और तीसरा दिन
हमारे नींद ट्रेन के नदी पर बने पुल पर गुजरने के आवाज़ खुली थी। मैं ऊपर मिडिल बर्थ पर सो  रही अपनी पत्नी को जगाया, उसके बाद सबसे ऊपर के बर्थ पर सो रहे बेटे कोई जगाया।  ट्रेन अपनी गति से चल रही थी।  दोनों तरफ पहाड़ दिखने शुरू हो चुके थे। अपनी गति से चलती हुई ट्रेन कुछ ही देर में कठुआ स्टेशन पहुँच गयी।  इस स्टेशन पर कहीं कहीं इक्का दुक्का लोग ही दिख रहे थे। 2 मिनट रुकने के बाद ट्रेन फिर आगे चल पड़ी। धीरे धीरे ट्रेन ने अपनी गति पकड़ ली। लगभग 1 घंटे से कुछ ज्यादा समय तक ट्रेन चलती रही। अब फिर से आबादी वाला इलाका आरम्भ हो गया था।  देखकर ही लग  रहा था कि ये कोई शहर की बसावट है। अब ट्रेन की गति कम होने लगी थी और कुछ ही देर में ट्रेन एक स्टेशन में प्रवेश कर रही थे और अब ट्रेन की खिड़की से देखा तो ये जम्मू स्टेशन था।  अब ट्रेन बिलकुल धीमी गति से चल रही थी और देखते ही देखते ट्रेन जम्मू  प्लेटफार्म संख्या 1 पर खड़ी हो गयी। मैंने घडी देखा तो टाइम 6 :30 हो चुके थे।  ट्रेन अपने निर्धारित समय से 15 मिनट की देरी से जम्मू स्टेशन पहुंची थी।  वैसे तो ट्रेन उधमपुर तक जाती है लेकिन अधिकतर लोग यही उतरने वाले थे क्योंकि ज्यादातर लोग कटरा (वैष्णो देवी) जाने वाले लोग ही थे और वहां जाने के लिए जम्मू से नज़दीक है और बसें भी यही से मिलती है। अब हम भी ट्रेन  से उतरकर स्टेशन से बाहर आ गए। स्टेशन से बाहर आते ही जम्मू के लिए बसें खड़ी रहती हैं। 




स्टेशन से बाहर आकर हम कुछ देर खड़े रहे और ऐसे ही खड़े खड़े 7 बज गए।  अब हम कटरा जा रही एक बस में बैठ गए।  बस 2 × 3 सीटर थे।  3 सीट वाले साइड हम तीनों बैठ गए। 5 मिनट से भी कम समय में बस की सभी सीटें भर चुकी थी। घडी देखा तो 7:30 बज चुके थे। ड्राइवर ने बस स्टार्ट की और स्टेशन से बस को सड़क पर ले आया। ड्राइव बस को धीमे धीमे गति से ले जा रहा था।  एक चौराहे पर आने के बाद ड्राइवर ने बस को मुख्य सड़क की  ओर मोड़ लिया।  अब बस की गति तेज़ हो गयी थी। सारे बाजार पर करने के बाद बस ने तवी नदी को पर किया।  जैसे दिल्ली कोई यमुना दो भागों में बाँटती है वैसे ही जम्मू शहर को दो भागो में बाँटती है। 20 मिनट के बाद  बस शहर से बाहर की मुख्य सड़क पर दौड़ रही थी।  बस का कंडक्टर लोगों से पैसे ले रहा था। प्रति सवारी उसने हमसे और सभी लोगो से 70 रूपये लिए।  अब बस जिस सड़क पर चल रही थी उसके एक तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़ और एक तरफ गहरी तवी नदी। ये एक डरावना दृश्य था।  बस जैसे जैसे आगे जा रही थी ये डरावने दृश्य बढ़ते जा रहे रहे थे।  कहीँ कहीं घाटी इतनी गहरी थी की कि कोई गाड़ी गिर जाये तो निकाल पाना बहुत ही मुश्किल और आये दिन कोई न कोई ऐसी दुर्घटना होती ही रहती है।

अब तक बस लगभग आधी दूरी तय कर चुकी थी।  अब बस वाले ने एक जगह यात्रियों के कुछ खाने पीने  के लिए बस को एक ढाबे के सामने रोका।  कुछ लोगों ने नास्ता किया, कुछ ने ठन्डे पेय पीये।  हम तीनों ब्रश भी नहीं किया था क्योकि ट्रेन से उतरकर हम सीधे बस में आकर बैठ गए थे, इसलिए हम लोगों ने ना तो कुछ खाया और ना ही कुछ पीया।  15 मिनट बाद ड्राइवर ने लोगों को बस में बैठने के लिए कहा और सब लोगों के बस में बैठ जाने के बाद ड्राइवर ने बस को स्टार्ट किया और चल दिया।  करीब 2 किलोमीटर के बाद यहाँ से आगे दो रास्ते हो रहे थे।  एक रास्ता  सीधे जा रही थी जो श्रीनगर जाती है  दूसरा रास्ता जो वहां से बाएँ तरफ मुड़ती है जो कटरा तक जाती है।  ड्राइवर ने बस को बाईं सड़क पर ले लिया।  अब बस कटरा के रास्ते पर सरपट दौड़ी चली जा रही थी।  सड़क के दोनों किनारे बहुत ही मनमोहक दृश्य थे।  सड़क पर कहीं कहीं बंदरों का समूह दिख जाता था।  



थोड़ी दूर चलने के बाद एक चेक पोस्ट पर सभी यात्रियों के सामान को चेक किया गया।  अब बस फिर अपने रास्ते पर जा चली जा रही थी।  अब बस से त्रिकुटा पहाड़ी दिखने लगी थी।  किसी ने बताया कि पहाड़ी के ऊपर जहाँ टावर दिखाई दे रहा है वही पीछे की तरफ वैष्णो देवी की  गुफा है।  करीब 25 से 30 मिनट  बाद बस कटरा टाउन में प्रवेश कर गयी।  टाउन के अंदर से जाते हुए बस करीब 20 मिनट के बाद बस स्टैंड पहुँच गयी। हम लोग बस से उत्तर कर सड़क किनारे आकर खड़े हुए। अभी 10:30 बजे थे।  धुप इतनी तेज़ थी कि कुछ देर भी खड़ा रहना मुश्किल लग रहा था।

एक दुकान वाले से पूछा कि मुझे रेलवे स्टेशन जाना है।  उसने  रास्ता तो बता दिया पर एक सवाल  किया कि जब स्टेशन में ट्रेन  ही नहीं आती जाती तो आप स्टेशन जाकर क्या करेगे।  मैंने उसे बताया कि रेलवे स्टेशन में ही मेरा रूम बुक है तो उसने कहा कि आप फ़ोन कर दीजिए तो लेने आ जायेगा गाड़ी से।  इधर का मोबाइल वहां काम तो नहीं करता है। पंजाब की सीमा के बाद जम्मू की सीमा में प्रवेश करते ही देश के किसी और राज्य का मोबाइल नेटवर्क सुरक्षा कारणों से बंद कर ब्लॉक कर दिया जाता है। मैंने एक पीसीओ बूथ से कॉल किया और उसे बताया  कि इस जगह पर खड़ा हूँ तो उसने बताया कि इतने नंबर की गाड़ी आपको लाने जाएगी। कुछ देर में ही मारुती ओमनी वैन हम लोगों को लेने आ गयी।  रेलवे स्टेशन वहाँ से ज्यादा दूर नहीं बस थोड़ी ही है।  पैदल भी जाते तो 20 मिनट में पहुँच जाते। पर जून की दोपहर धुप में पैदल चलना मुश्किल था।  और वैसे भी अनजान जगह थी पैदल जाते भी तो कई लोगों से पूछना पड़ता।  जिस समय हम गेस्ट हाउस में पहुंचे दोपहर के 11 :30 बजे थे।

आई आर सी टी सी रेलवे का गेस्ट हाउस 

गेस्ट हाउस में आदित्य 

यहाँ आते हम  अपने रूम में गए। मेरा रूम पर्सनल ना होकर डारमेट्री था।  जिसमे 15 बेड लगे हुए थे।  पूरा हॉल खाली था।  हमने एक तरफ से तीन बेड पर अपना कब्ज़ा जमा लिया। हम लोग 1 बजे तक नहा धोकर खाना खा कर जाने वैष्णो देवी जाने के लिए तैयारी कर रहे थे।  इतने 4 लोग आये। एक अंकल-आंटी और उनके बेटी-दामाद।  मैंने उनसे पूछा कि आप अभी आ ही रहे हैं या दर्शन करके वापस लौट रहे हैं।  उन्होंने बताया कि हम लोग दर्शन करके आ रहे हैं।  मैंने कहा कि हम लोग भी निकल रहे हैं तो उन्होंने बताया कि अभी नहीं आप लोग 3 बजे के करीब निकलना तो धुप भी कम हो जाएगी और आप जब तक ऊपर पहुँचोगे तब तक कम से कम 11 बजे ही जायेगे उस टाइम भीड़ नहीं होगी।  अगर आप 10 बजे भी पहुँच गए तो बहुत भीड़ होगी क्योकि 6 बजे से 8 बजे तक मंदिर आरती और साफ सफाई के लिए बंद हो जाता है तो उतने देर में जितनी भीड़ जमा होती है वो 10 बजे के बाद ही कम हो पाती है।

रास्ते में 


हमने उनकी बात मानकर 3 बजे जाने का ही प्लान किया। जाने से पहले हमने अपना सामन लॉकर रूम में रखवा दिया।  ठीक 2 :30 बजे हम लोग गेस्ट हाउस से निकले।  गेस्ट हाउस की गाड़ी ही बाणगंगा चेकपोस्ट तक छोड़ने जाती है। बाणगंगा से ही चढ़ाई आरम्भ होती है। वैष्णो देवी जाने वाले हरेक यात्री का फोटोमेट्रिक रजिस्ट्रेशन किया जाता है।  बिना उस कार्ड के कोई भी बाणगंगा से आगे नहीं जा सकता।  अब तो रजिस्ट्रेशन रेलवे स्टेशन में भी होने लगा है पर उस समय रजिस्ट्रेशन केवल बस स्टेशन के पास ही बने काउंटरों पर होता था।  हम लोग गेस्ट हाउस की गाड़ी में बैठ गए। ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की और चल पड़ा।  बस स्टेशन के पास उसने वैन रोकी और हमसे बोला कि आप लोग जाकर रजिस्ट्रेशन करवाकर आ जाइये। हम काउंटर पर गए वहां बारी बारी से हम लाइन में लगकर रजिस्ट्रेशन करवाया। उसने हम लोगो से नाम और पता पूछा और कंप्यूटर में लगे कैमरे से फोटो ली और एक एक कार्ड हम लोगों को दे दिया। हम लोग आकर गाड़ी में बैठ गए। सड़क के दोनों और माला, चुन्नी, प्रसाद की दुकानें लगी। ड्राइवर ने कहा कि यदि कुछ लेना है तो ले लें मैंने कहा कि कुछ नहीं लेना है।  वो बहुत बार कहता रहा की ले लीजिये। अगर आप किसी दुकान से कुछ लेते हैं तो दुकान वाला ड्राइवर को कुछ पैसे कमीशन के तौर पर देता है। कुछ ही देर में हम वाणगंगा चेकपोस्ट पर पहुँच गए।  ये वो जगह है जहाँ से त्रिकुटा पहाड़ियों पर स्थित वैष्णो देवी के लिए चढ़ाई शुरू होती है। 


वाणगंगा चेकपोस्ट 

जब हम यहाँ पहँचे यहाँ करीब 100 लोगों की लाइन लगी हुई थी। एक लाइन में महिला, एक लाइन में वो पुरुष जिनके पास सामान है और एक लाइन में वो पुरुष जीने पास कोई सामान नहीं है। यहाँ प्रत्येक यात्री का सामान चेक किया जाता है।  यहाँ से आगे गुटखा, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट आदि जैसी कोई  सामग्री ले जाना पूरी तरह प्रतिबंधित है। सामान चेक  करने के बाद यात्री एक्सेस कार्ड जो रजिस्ट्रेशन के समय हर यात्री को दिया जाता उसे चेक किया जाता है।  बिना इस कार्ड के कोई भी यात्री आगे नहीं जा सकता। इस कार्ड को आपको पुरे रास्ते संभाल कर रखना होता है।  यदि ये कार्ड आपने कहीं  गुम कर दिया तो आपको वापस आना पड़ेगा बिना इस कार्ड के आप दर्शन नहीं कर सकते।  मेरा भी नंबर आया मैंने अपना सामान चेक कराया और यात्री कार्ड चेक करवाने के बाद हम तीनों अंदर आ गए।  इस समय घडी में 3:30 बज चुके थे। यहाँ से  चढ़ाई आरम्भ होती है।  यहीं पर घोड़े वाले खड़े होते हैं।  दोनों तरफ दुकानें भी बहुत सारी हैं।  जो लोग पैदल चढ़ाई नहीं कर सकते वो घोड़े से जाते हैं।  घोड़े वाला हर आदमी के 600 -700 रूपये लेता है। ये काम ज्यादा भी हो सकता है। कुछ घोड़े वाले ने मुझे भी पूछा और बोला कि एक पर आप बैठ जाइयेगा और एक पर आपकी पत्नी और बेटा बैठ जाएंगे पर मैंने मना कर दिया क्योंकि मुझे जाना पैदल ही था। घोड़े  पर क्या जाना परिवार के साथ हो तो पैदल चलने में ही आनंद है। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो न तो घोड़े पर जा सकते हैं और न ही पैदल जा सकते हैं उन लोगो के लिए पालकी भी यहाँ मिल जाती है, जिसे चार लोग कंधे पर उठा कर ले जाते हैं। पालकी के किराया थोड़ा ज्यादा है पर जो दे सकते हैं उनके लिए ज्यादा या काम का कोई अर्थ नहीं रह जाता। ये लोग पार्टी आदमी लगभग 2500 से 3000 रूपये लेते हैं।

यात्रा रजिस्ट्रेशन काउंटर (फोटो इन्टरनेट से)


हम थोड़ा ही आगे बढे तो कुछ लोगों ने कहा कि डण्डा (लाठी) ले लीजिये तो चढ़ाई में आसान हो जाएगी।  यहाँ से आगे मेला जैसा उत्सव था।  कुछ लोग आ रहे थे और कुछ लोग जा रहे थे। कुछ घोड़े पर, कुछ पालकी पर कुछ पैदल। हमने भी 3 डंडे ले लिया।  कुछ आगे बढ़ने पर बाणगंगा नदी आती है।  जहाँ कुछ लोग स्नान कर रहे थे।  हम लोगों ने भी हाथ पैर धोया और फिर चल दिए।  जून की गर्मी में चढ़ाई चढ़ना इतना आसान नहीं होता।  हम लोग रास्ते में फ्रूटी, माज़ा , और ठंडा पानी पीते रहे।  कभी कभी नीम्बू पानी भी रहे थे।  कुछ दूर चलते बैठते हम लोग धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे।  गर्मी से हम लोग परेशान थे फिर भी बहुत मन एकदम प्रफुल्लित था।  हम बहुत ही उत्साहित थे और आगे बढ़ रहे थे।  वैसे भी आप पहली बार कहीं जाते हैं तो मन में एक अलग ही उत्साह होता है।  आगे न जाने कैसा होगा, कितनी दूर होगा , कैसा लगता होगा आदि ख्याल मन में उठना स्वाभाविक होता है और मेरे साथ भी ऐसा ही हो रहा था।



पैदल चढ़ाई का एक  दृश्य


2.5 किलोमीटर की चढ़ाई  तक ही इतनी मात्रा में दुकानें है।  इसके बाद कुछ दूर के बाद वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा संचालित दुकानें मिलती है। बोर्ड पर तो बहुत चीजों के नाम लिख रहे हैं पर वहां चाय के आलावा और कुछ मिलता नहीं है। जहाँ सब कुछ मिल सके ऐसी दूकान अर्धकुवांरी में मिलती है या फिर यदि आप नए वाले रास्ते से जाएँ तो सीधे  वैष्णो देवी के भवन  पर ही मिलेगी।  हमने दुकानें जहाँ ख़तम हो रही थी वहीं पर फ्रूटी और पानी ले लिया।

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धीरे धीरे चलते हुए हम आगे बढ़ रहे थे।  फिर एक चेक पोस्ट आया यहाँ भी सबको चेक किया जा रहा था।  पर आप इसे  चेकिंग नहीं कह सकते ये बस एक फॉर्मेलिटी थी। वाण गंगा चेकपोस्ट की तरह यहाँ भी तीन लाइन लगती है।  एक लाइन में महिला, एक लाइन में वो पुरुष जिनके पास सामान है और एक लाइन में वो पुरुष जीने पास कोई सामान नहीं है। यहाँ प्रत्येक यात्री का सामान चेक किया जाता है। 6 बजे के करीब हम वहाँ पहुच गए जहाँ से ये यात्रा दो रास्तों में बंट जाती है।  एक रास्ता जो हिमकोटी होकर जाती है  वो 5.5 किलोमीटर है। दूसरा रास्ता जो अर्धकुवांरी होकर जाती है वो 6.5 किलोमीटर है। हम थोड़ी देर यहाँ रुके। अब किस रास्ते से जाये यही सोचते हम लोग हिमकोटि के रास्ते से जाने लगे।  इस रास्ते पर बहुत कम लोग जा रहे थे।  अब हमने भी अपना इरादा बदला और अधकुआँरी वाले रस्ते की तरफ चल दिए क्योकि ज्यादा लोग इधर से ही जा रहे थे।  ये रास्ता 1 किलोमीटर ज्यादा था फिर लोग इससे ही ज्यादा जा रहे थे।  हम भी इसी रास्ते से चलने लगे। 500 मीटर के चलने पर अधकुवांरी आ गया।  ये एक गुफा मंदिर है।  यहाँ 25 मीटर लंबी गुफा में लेटकर रेंगते हुए पर करनी होती है और उसका नंबर भी यदि आप आज लगते है तो 2 दिन बाद आएगा।  अब तक 7 बज चुके थे।  सूर्यास्त हो गया था  पर अभी अँधेरा नहीं हुआ था।  हम कुछ देर यह रुके। करीब 20 मिनट के बाद हम लोग वहां से चले।

पुरुष , महिला और सामान सहित पुरुष के लाइन को दर्शाता बोर्ड


यहाँ भी एक चेकपोस्ट था।  यहाँ भी बस फॉर्मेलिटी थी चेकिंग की।  मैंने पुलिस वाले को बोला कि यदि आप कोई चेकिंग कर ही नहीं रहे तो ये लाइन क्यों लगवा रहे हैं तो उसने कहा कि क्या करे ड्यूटी है।  चेकपोस्ट पार करने के बाद कुछ खाने पीने की दुकानें थी।  हमने कुछ खरीद लिया आगे  के लिए।  यहाँ से आगे और ज्यादा खड़ी चढ़ाई थी किसी तरह चलते बैठते हम सांझीछत पहुँच गए। वैष्णो देवी भवन अभी थी करीब 2.5 किलोमीटर दूर था। हम लोगो को खूब तेज़ भूख लग रही थी। यहाँ ठण्ड लगनी शुरूं हो गयी थी।  ऐसा नहीं लग रहा था की जून का महीना है।  इतनी ठण्ड दिसम्बर के शुरुआत में होती है। समय भी 10:30 बज चुके थे। हमने पहले चाय पी फिर राजमा चावल खाया। कुछ लोग यहाँ खाने के बाद लेते हुए थे। 11 बज चुके थे। हमने भी एक बेडशीट बिछाया और सो गए। कुछ देर बाद करीब 11 :30 बजे नींद खुली तो देखा कि दुकान बंद हो चुकी है।  जो भी यात्री वहां बैठे या सोये थे सब जा चुके थे।  केवल हम तीन ही वहां थे। अब हम लोग भी चले।  दुकान के चबूतरे से जैसे ही मुख्य रास्ते पर आये और आगे बढे तो देखा कि यहाँ से ही एक रास्ता भैरवनाथ के मंदिर जाती है।  पर यहाँ से जाते कोई नहीं हैं वापसी में जो भैरवनाथ जाने वाले लोग उतरते समय इस रास्ते से आते हैं।


पैदल रास्ते में आदित्या


हम आगे बढ़ने लगे तो कुछ लोग जो मेरे पीछे आ रहे थे।  उनमे से एक ने कहा कि चलिए अब तो चढ़ाई ख़तम हो चुकी है यहाँ से आगे रास्ता प्लेन (समतल) है। हमने उनसे कहा कि  यदि पहले पता होता तो हम यहाँ सोते ही नहीं 2 किलोमाटर का रास्ता तो मेरा कब का पूरा हो चूका होता। वैष्णो देवी भवन से थोड़ा पहले यात्री एक्सेस कार्ड पर फिर  चेक किया जाता है। हम लोगों ने अपना कार्ड करवाया। वहां बैठे स्टाफ ने उस पर एक स्टाम्प लगाया और कार्ड मुझे दे दिया। यहाँ कार्ड चेक करवाने के लिए आपके ग्रुप का कोई एक आदमी ही सारा कार्ड चेक  करवा सकता है सबको लाइन में खड़े होने की आवश्यकता नहीं है।

करीब 30 मिनट में हम वैष्णो देवी भवन पहुँच गए।  वहां प्रसाद की सरकारी दुकाने हैं और कुछ प्राइवेट दुकानें हैं। वही प्रसाद सरकारी  दुकान में 40 रूपये की मिलती है और प्राइवेट दुकानों में 100 रूपये की। प्राइवेट दुकान से प्रसाद खरीदने पर वो आपका सारा सामान, जूते , चप्पल आदि रख लेते हैं।  सरकारी दुकान से प्रसाद लेने पर आपको श्राइन बोर्ड द्वारा बने लॉकर रूम में सामान रखना पड़ता है जहाँ लंबी लाइन लगी होती है। हमने प्राइवेट दुकान से प्रसाद खरीदा और अपना सारा सामान दुकान में ही रख दिया।

अब तक रात्रि के  1 बज चुके थे। दर्शन की पंक्ति में ज्यादा लंबी लाइन नहीं थी।  यहाँ खड़े पुलिस वाले ने अंदर जाने से पहले हमसे रजिस्ट्रेशन कार्ड ले लिया। अब हम दर्शन की लाइन में लगे में लगे थे। ज्यादा भीड़ नहीं थी। हम लोग आगे बढे। एक जगह पर प्रसाद में मिला नारियल जमा करना पड़ता है उसके बदले वो एक टोकन देते हैं दर्शन के बाद वापसी के रस्ते में एक जगह नारियल वापस दे दिया जाता है।  नारियल जमा करने के बाद हम लोग दर्शन के लिए गए।  मन में एक उत्साह, एक उमंग की लहर दौड़ रही थी। जून का महीना होते हुए भी यहाँ बहुत ठण्ड थी। अब हम एक चबूतरे पर पहुँच गए थे।  यहाँ से सारे लोग एक गुफा में जा रहे थे।  हम भी गुफा में गया गुफा करीब 50 मीटर लंबी है।  गुफा की ऊंचाई बस इतनी ही है कि हम खड़े थे।  गुफा के अंदर खड़े होकर हाथ ऊपर नहीं उठा सकते थे।

अद्धकुंवारी के पास आदित्या 


करीब 20 मिनट हम लोग भी उस पवित्र पिंडी रुपी भगवती देवी के समक्ष खड़े थे। पिंडी के समक्ष जाने पर मुश्किल से 2 सेकंड का टाइम मिलता है पर भीड़ नहीं होने के कारण हम लोगो को थोड़ा ज्यादा समय मिल गया। हम लोगों ने सिर झुकाया और उस पवित्र पिंडी रूप में विराजमान देवी के दर्शन किये। उसके बाद वहां खड़े लोगो ने कहा कि बस अब दुसरे को भी आने दीजिये।  अब हम वहां से गुफा के बने निकास द्वार से बाहर निकले।  कुछ देर वह चबूतरे पर रहे।  फिर जब भीड़ बढ़ने लगी तो ड्यूटी पर लगे लोगों ने कहा कि जिन लोगों ने दर्शन कर लिए है वो आगे बढ़ें।  अब हम लोग सीढ़ियां उतरकर नीचे आ गए। नीचे एक काउंटर पर कुछ बहुत छोटे छोटे पैकेट प्रसाद के रूप में वितरित किया जा रहा था।  उस प्रसाद में मिश्री के कुछ दाने और एक छोटा सा कॉइन (सिक्का) था।  उस सिक्के पर गुफा में पिंडी रूप में विराजमान भगवती की प्रतिमा अंकित थी। ये प्रसाद केवल उन लोगो को दिया जाता है जो वहां दर्शन के लिए जाते हैं।  उसके बाद और आगे एक काउंटर पर नारियल दिया जा रहा था।  हमने अपना टोकन दिया और नारियल लिया।  अब आप ये मत सोचियेगा कि ये वही नारियल होगा जो आपने जमा किया था।  जहाँ नारियल जमा किया जाता वहाँ से इसे यहाँ लाया जाता है। और यहाँ वापस दिया जाता है।  अब हम आगे आगे और जिस दुकान से प्रसाद लिया था वहां से अपना सामान लिया।  घड़े में देखा तो 3 बज चुके थे।  हम लोगों को ठण्ड लग रहे थी।  हमने एक खाली जगह देखकर बेडशीट बिछाया और सो गए।  करीब 1 घंटे बाद हम उठे और भैरवनाथ के लिए निकल पड़े। घडी में 4 बज चुके थे।



जिस रास्ते से हम आये थे उसी रास्ते से जाना था।  थोड़ा आगे गए तो बायीं तरफ भैरवनाथ की चढ़ाई थी।  हम उस रास्ते पर हो लिए।  करीब 1 घंटे में हम भैरव नाथ पहुँच गए।  5 बज चुके थे। वहां हमने भैरवनाथ के दर्शन किये। दर्शन करने के बाद एक जगह ऐसे ही खाली पड़ी कुर्सियों पर कुछ देर आराम किये और फिर चल दिए।सांझीछत यहाँ से 2 किलोमीटर नीचे था। करीब 1 किलोमीटर चलने के बाद हम लोग एक चाय की दुकान पर चाय पिये और जलेबी ख़रीदा।  जलेबी का स्वाद इतना ख़राब था कि जलेबी मैंने वहीं फेक दी।  अब हम नीचे फिर से उतरने लगे। सुबह ने अपनी दस्तक दे दी थी।  6 बजते बजते हम सांझीछत आ गए। यहाँ कुछ देर आराम किया।  फिर यहाँ से नीचे चल दिए। धीरे धीरे चलते हुए, कभी बैठते कभी चलते हम 11 बजे हम बाणगंगा आ गए।  यहाँ आकर गेस्ट हाउस में गाड़ी के लिए फ़ोन करना था।  कोई पीसीओ नहीं मिला तो सोचा की जितने देर में पीसीओ खोजकर फ़ोन करेगे और गाड़ी आएगी उतने देर में हम कोई ऑटो करके चले जाएंगे। कई ऑटो को पूछने के बाद एक ऑटो 100 रुपए में जाने को तैयार हुआ।  हम लोग उस ऑटो से रेलवे स्टेशन (गेस्ट हाउस ) आ गए।
कटरा रेलवे स्टेशन का मुख्य द्वार 



गेस्ट हाउस आने के बाद हम लोगों ने नहाया। गेस्ट हाउस में ही खाना खाया और अपने रूम में आकर आराम करने लगे।  और पूरे दिन हम लोग नीम्बू पानी पीते रहे। शाम को 5 बजे मार्केटिंग के लिए निकले तो एक एक कदम भी चलना मुश्किल लग रहा था।  फिर भी मार्किट गए वहां कुछ शॉपिंग किया और गेस्ट हाउस आ गए। रात का खाना भी हम लोग गेस्ट हाउस में ही खाये और सो गए।

चौथा दिन 
सुबह जल्दी उठे क्योकि हमें जम्मू के लिए निकलना था।  7 :30 बजे तक हम लोग तैयार हो गए और गेस्ट हाउस के रिसेप्शन पर गए और चेक आउट के लिए बोला तो उन लोगो ने कहा कि आप लोग नास्ता कर लीजिये।  हम लोग 3 लोग थे तो उन्होंने 3 स्लिप दिया और कहा कि सामान यही रहने दीजिये और ब्रेकफास्ट कर लीजिये।  हम लोगों ने ब्रेकफास्ट किया और और अपना सामान लेकर गेस्ट हाउस से बाहर आये।  बाहर वैन खड़ी थी।  हम वैन में बैठ गए।  ड्राइवर ने मुझे बस स्टैंड पहुँचा दिया।  हम एक बस में सवार हो गए।  बस करीब 9 :00 बजे कटरा से चली और 11 :30 जम्मू रेलवे स्टेशन पहुँच गयी। यहाँ पहले  ही हमने रिटायरिंग रूम बुक किया था जो जम्मू रेलवे स्टेशन के पहली मंज़िल पर स्थित है।  हम वहां गए और कुछ देर आराम किया।  हमारी ट्रेन शाम को 7 बजे थी।  अभी मेरे पास मेरे पर जम्मू घूमने के लिए  6  घंटे का समय था और हमने जम्मू घूमने सोचा।



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4 comments:

  1. JAI MATA DI JAI MATA DI SAARE BOLO JAI MATA DI.....

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  2. IRCTC GUEST HOUSE K LIYE Hame IRCTC KI SITE SE HI GUEST HOUSE BOOK KARNA HOGA PLZ TEL ME

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    1. haa ji Irctc guest house ke liye dormitory ya room book karn ek liye IRCTC ke site par accomodation tab me booking ka option hai ya phir dusra saite irctc ka hai hai so hai www.irctctourism.com

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