Tuesday, January 3, 2017

केदारनाथ (Kedarnath)

केदारनाथ (Kedarnath)

चौथा दिन

सुबह के 3 बजते ही मोबाइल का अलार्म बजना शुरू हो गया। नींद पूरी हुई नहीं थी इसलिए उठने का मन बिलकुल नहीं हो रहा था।  सब लोगों को जगाकर मैं एक बार फिर से सोने की असफल कोशिश करने लगा।जून के महीने में भी ठण्ड इतनी ज्यादा थी कि रजाई से बाहर निकलने का मन नहीं हो रहा था। 5 बजे तक हम लोगों को तैयार होकर गेस्ट हाउस से केदारनाथ के लिए निकल जाना था इसलिए ना चाहते हुए भी इतनी ठण्ड में रजाई से निकलना ही था। पहले तो पिताजी और बेटे नहाने गए। उसके बाद माताजी और पत्नी की बारी आयी। मेरा मन गरम पानी के झरने में नहाने का करने लगा पर हिम्मत नहीं हो रही थी कि बाहर निकलें। कमरे के अंदर का तापमान जब 5 डिग्री के करीब था तो सोचिये बाहर का तापमान कितना होगा। फिर मैं टॉर्च और एक टॉवेल लिया और पिताजी को ये बोलकर कि मैं कुछ देर में आता हूँ और तेज़ी से कमरे से निकल गया। बाहर निकलते ही ठण्ड ने अपना असर दिखाया। ऐसा लग रहा था कि मैं किसी बर्फ से भरे  किसी टब में हूँ। मैं दौड़ता हुआ गेस्ट हाउस की 50 सीढियाँ उतर गया। हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। उस सन्नाटे में मन्दाकिनी नदी की पानी के बहने की जो आवाज़ थी बहुत ही मधुर लग रही थी। मन्दाकिनी की आवाज ऐसे लग रही थी जैसे कोई संगीत की धुन हो। मैं सीढ़ियों से उतरने के बाद मन्दाकिनी की तरफ गया और देखने लगा की गरम पानी का झरना किधर है।



 मंदिर के पास कुछ लोग और आदित्या 




मन्दाकिनी नदी पर बने पुल पर मैं और पीछे केदारनाथ की खड़ी चढ़ाई
मन्दाकिनी नदी पर बने पुल पर मैं और पीछे केदारनाथ की खड़ी चढ़ाई  


मेरे पास एक टॉर्च था और उस स्याह अँधेरे में उस टॉर्च की रौशनी कुछ भी नहीं थी। मैं इधर उधर देख ही रहा था कि किसी ने आवाज़ दी कि क्या आप नहाने आये हैं।  मैंने कहा हाँ नहाने ही आया हूँ पर मुझे गरम पानी का झरना नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि इधर आ जाओ यहाँ है गरम पानी। मैं वहां गया तो देखा कि एक अंकल और आंटी हैं जो नहाने के लिए आये हुए हैं। उन्होंने कहा कि मेरे पास टॉर्च नहीं है पर शाम को ही हम दोनों ये जगह देख कर गए थे तो आ गए।  मैंने बोला कि मैं नहाऊँगा कैसे यहाँ तो बिना किसी मग या बर्तन के नहा नहीं सकते। उन्होंने कहा मेरे पास एक मग है हम सब लोग इसी से नहा लेंगे। फिर आंटी ने बोला कि टॉर्च को ऐसी जगह और इस स्थिति में रखो की रोशनी ठीक से लगे और हम लोग नहा सकें। फिर पहले अंकल, उसके बाद आंटी और सबसे बाद में मैं नहाया।

आदित्या और उसके पीछे 2013 में आयी आपदा के निशान 

अब बिडम्बना देखिये हमने नहा तो लिया पर मेरे पास एक टॉवल के अलावा और कुछ नहीं था। पहने हुए कपडे मैं फिर से पहनना नहीं चाहता था और ठंडी भी इतनी कि यदि नहीं पहनूँ तो शायद अपने कमरे तक पहुंच नहीं पाऊँ। फिर भी हिम्मत किया और अंकल आंटी को बोला कि अब चलिए मैं आपको टॉर्च दिखाता हुआ चलूँगा। उन्होंने कहा कि अरे नहीं आप जाओ आपने कुछ नहीं पहना है आपको ठण्ड लग जाएगी।  फिर भी मैं नहीं माना और कहा कि कुछ नहीं होगा पर असल में मेरी हालात ठण्ड के कारण बहुत ख़राब होती जा रही थी। किसी तरह से नदी से निकालकर सड़क तक आया। वहां आकर मैंने उनसे कहा की मुझे दाईं तरफ जाना है और आप किधर जायेगे उन्होंने कहा कहा कि मेरा रूम इसी होटल में है। मैंने उनसे कहा कि ठीक फिर मैं चलता हूँ। जल्दी जाओ और जल्दी से गरम कपड़े पहन लेना कहते हुए वो अपने होटल में चले गए। ठीक है अंकल जी कहता हुआ मैं भी अपने होटल की और दौड़ पड़ा। मैं उस समय ठण्ड से काँप रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं अपने रूम तक भी नहीं पहुँच पाऊँगा। किसी तरह रूम तक पहुँचा और जल्दी से कपड़े पहना और पास ही में जल रहे इलेक्ट्रिक हीटर के सामने बैठ गया। मेरे रूम में घुसते ही पत्नी और माताजी बोलने लगी कि जब वहाँ नहाने गए ही तो हम लोगो को क्यों नहीं ले गए। मैं बोला कि मैं तो बस देखने गया था 2 लोग नहा रहे थे तो नहा लिया। अगर आप लोगों को नहाना है तो चलिए तो जवाब मिला कि अब क्या अब तो नहा लिए।



गौरीकुंड से 4 किलोमीटर ऊपर , यहाँ से केदारनाथ 12 किलोमीटर की दुरी पर हैं

उसके बाद हम लोगो ने सारा सामान एक जगह करके गेस्ट हाउस के स्टाफ को बुलाया और बोला कि 5 कप चाय ले आइए और ये सामान लेते जाईये। ठीक है बोल कर वो चला गया। कुछ देर में दो लोग आये और सामान ले गए।  फिर एक आदमी चाय लेकर आया। हम लोगों ने चाय पी। चाय पीने के बाद मैंने घडी देखा तो उस वक्त 5 बजने में बस कुछ ही मिनट बाकी था। मैं  बहुत ही ज्यादा रोमांचित हो रहा था। मन में एक डर भी था कि पता नहीं क्या होगा आगे 16 किलोमीटर कि खड़ी चढ़ाई चढ़ पाएंगे या नहीं। यदि मौसम ने साथ दिया तो ठीक नहीं तो पता नहीं कितनी मुश्किल आएगी। साल 2013 में आये आपदा के बाद इस क्षेत्र में कुछ बचा नहीं था। आपदा आई और पूरी केदार घाटी को अपने साथ बहा ले गयी। उस आपदा के निशान अभी भी केदार घाटी में हर जगह दिखता है। खैर जो भी हो मुझे तो अब जाना ही है। हम लोग गेस्ट हाउस के पीछे के दरवाजे से निकले और हम लोगों के साथ ही गेस्ट हाउस में रात में रुके बहुत लोग भी निकले और उसके बाद सब अलग अलग हो गए।  कुछ लोग रास्ते में एक-दो जगह दिखे कुछ लोग नहीं दिखे।



गौरीकुंड से केदारनाथ के रास्ते में लिया गया एक सीन


अब हम लोग गौरकुंड से केदारनाथ के चढ़ाई के रास्ते पर थे। हम सब लोग बहुत ही ज्यादा उत्साहित थे। मन में एक उत्साह, एक लालसा, एक डर सब कुछ चल रहा था। अभी गौरकुंड के बाजार से बाहर निकले ही थे कि चढ़ाई शुरू हो गयी। अभी रास्ते में बस दो-चार लोग ही थे। ठंडी हवा चल रही थी। हम सब लोग स्वेटर, टोपी, टॉवेल जो भी हो अपने पुरे बदन को ढक रखे थे। रास्ते के बाईं तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़, दाईं तरफ मन्दाकिनी की गहरी घाटी, घाटी के दूसरी तरफ फिर ऊँचे ऊँचे पहाड़।  बात ये हुई की मन्दाकिनी नदी दो पहाड़ो के बीच से बहती है।


 मेरे आदरणीय पिताजी अपने पोते के साथ 

इस फोटो को देखकर आप समझ जायेगे की की मन्दाकिनी नदी किस तरह दो पहाड़ों के बीच बहती है।  दोनों तरफ पहाड़ के बीच में जो खाली जगह आप देख रहे हैं वही मन्दाकिनी नदी है। इस  तस्वीर में जो आप रास्ता देख रहे हैं वही केदारनाथ तक जाती है।  पहले यही रास्ता केदारनाथ तक चली जाती थी पर 2013 में आयी आपदा के बाद 7 किलोमीटर के बाद आगे का जो रास्ता था वो आपदा में बह गया। अब जो रास्ता बनाया गया है वो रामबाड़ा में नदी को पार करके दूसरे तरफ से बनाया गया है जो 7 किलोमीटर के बदले 9 किलोमीटर का हो गया है। जो  रास्ता पहले 14 किलोमीटर था अब वही रास्ता 16 किलोमीटर का हो गया।

मेरे पिताजी और मेरा बेटा 

घाटी में बहती मन्दाकिनी की तेज़ धारा की आवाज़ मधुर संगीत की तरह लग रही थी। बड़े बड़े पत्थर नदी की धारा में घिस घिस कर सपाट और चिकना हो गया था।  मन्दाकिनी को देखकर  ऐसा नहीं लग रहा था कि इतनी शांत नदी इतनी बड़ी तबाही कैसे ला सकती है। इन रास्तों पर चलते हुए मन में बहुत ही शांति महसूस हो रही थी। हर तरफ बस पहाड़, पहाड़ के ऊपर बड़े बड़े पेड़, नीचे नदी, कहीं कहीं ऊपर पहाड़ से गिरते हुए झरने भी थे। कुछ लोग कहते हैं कि धरती का स्वर्ग कश्मीर है, पर मैं तो कहता हूँ कि अगर कही शांति, सुकून है तो बस यहीं है। एक बार आकर देखिये मन खुश हो जायेगा वापस जाने का मन नहीं करेगा। हम कभी बैठते कभी चलते बहुत दूर आ चुके थे।


कंचन (मेरी पत्नी )

इस तस्वीर में दोनों पहाड़ों के बीच बहुत दूर जो  कुछ दिखाई पड़  रहा है उसी जगह पर केदारनाथ का मंदिर है। तस्वीरों में वो जितना पास लग रहा है हकीकत बिलकुल अलग है। असल में वो है बहुत दूर। ये फोटो जिस जगह से ली गयी है वो एक हेलिपैड है जो आपातकाल के लिए बनाया गया है और इस हेलिपैड को चिरबासा हेलिपैड कहते हैं। असली इम्तिहान तो अभी थोड़ी देर बाद शुरू होता है जब खड़ी चढ़ाई आरम्भ होती है। चलने पर साँस फूलने लगता है।



मन्दाकिनी नदी की दूधिया रंग की निर्मल धारा


हम 5 लोग में सबसे ज्यादा परेशानी मुझे ही हो रही थी। यहाँ ऑफिस में सीटिंग वर्क के कारण पूरे दिन बैठा रहता हूँ। ज्यादा चलने की आदत नहीं है। ये तो एक बात अच्छा था कि यहाँ आने से 5 महीने पहले से ही मॉर्निंग वाक शुरू किया था नहीं तो ये चढ़ाई मैं चढ़ नहीं पाता। पिताजी, माताजी, पत्नी और बेटा सब आराम से चल रहे थे और मैं थक जाता था। कुछ दूर चलकर थोड़ा बैठते फिर चलना शुरू करते। इतनी थकान के बाद भी मन बिलकुल प्रफुल्लित था। धीरे धीरे हम लोग आधी दूरी आ गए। पर अब इसे आधी दूरी कहना बेमानी होगा क्योंकि पहले ये जगह दोनों तरफ से बराबर दूरी पर थी। यहाँ से 7 किलोमाटर नीचे गौरीकुण्ड और 7 किलोमाटर ऊपर केदारनाथ पर 2013 में आयी आपदा ने यहाँ से ऊपर केदारनाथ तक जाने वाले 7 किलोमाटर के रास्ते को पूरी तरह खत्म कर दिया।  हालात ऐसे हैं कि उस रास्ते को फिर से ठीक भी नहीं किया जा सकता। अब यहाँ से केदारनाथ जाने के लिए मन्दाकिनी नदी को पार करके दूसरे तरफ से नया रास्ता बनाया गया है जो 7 किलोमाटर के बदले 9 किलोमाटर का है। इस स्थान को रामबाड़ा कहते हैं।  रामबाड़ा से केदारनाथ के मंदिर तक आपदा के दौरान कुछ भी बचा बस तबाही के निशान बाकी हैं।




मन्दाकिनी नदी  में पड़े ये बड़े बड़े पत्थर जिनको 100 लोग मिलकर हिला भी नहीं सकते उनको मन्दाकिनी
अपने रौद्र रूप में आने पर तिनके की तरह बहा कर ली आयी


मन्दाकिनी नदी के स्वच्छ जल को देखते ही सारी थकान कहाँ चली गयी पता ही नहीं चला। 

केदारनाथ की खड़ी चढ़ाई जिस पर लोग जाते हुए 

खड़ी चढ़ाई देखकर तो आप समझ ही गए होंगे कि कैसे ये यात्रा इतनी मुश्किल है। पर अभी क्या, अभी तो मौसम भी हमारा साथ दे रहा था। कुछ दूर चलने के बाद हम लोगो ने कुछ खाने को सोचा। एक जगह एक कुछ बिक रहा था। इतनी ऊपर यदि कोई दुकान मिल जाये तो ये कभी मत सोचिये कि वो एक दुकान खोलकर बिज़नस कर रहा है। जहाँ खुद खाली हाथ आना भी मुश्किल है वहां यदि कोई दुकान मिल जाये तो सोचिये कि वो दुकान वाला आपकी सेवा कर रहा है। वहां पर हम लोग जो कुछ लाये थे वो खाये, फिर दुकान से पराठे लिया, पराठे मतलब केवल पराठे उसके साथ और चटनी, अचार कुछ भी नहीं वो भी 50 रुपए के एक पराठा। उसके बाद एक बोतल फ्रूटी लिया और सब मिलकर पीये और फिर आगे चल पड़े। यहाँ मौसम ने थोड़ा अपना रंग दिखाना सुरु कर दिया था पर 10 मिनट की बूंदा-बंदी के बाद मौसम साफ हो गया। फिर हम लोग चले। कुछ दूर जाने पर रास्ते पर बर्फ का ढेर था उसके ऊपर से ही चढ़कर जाना का रास्ता था। वहां मैंने कुछ तस्वीर ली वो मैं आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूँ।




आदित्य अपने दादी के साथ 


पत्ते और धूल से ढका हुआ बर्फ का ढेर 

इस समय तक 11 बज चुके थे।  अभी तक तो सब कुछ ठीक था पर अब मौसम के ख़राब होने के हालात बन रहे थे। आसमान में काले काले और डरावने बादल आने लगे थे। कुछ ही देर में बादलों ने भयंकर रूप ले लिया। अभी जहाँ कुछ देर पहले हलकी हलकी धूप खिली हुई थी अब बिलकुल घनघोर बरसात हो रही थी। काले काले बादलों के कारण इतना अँधेरा छा गया था कि हम लोग एक दूसरे को देख भी नहीं पा रहे थे।  इस बरसात ने फिर से एक बार 2013 की याद दिला दी।


बर्फ के ढेर पर बने रास्ते से जाते हुए कुछ लोग 

हम लोग जहाँ थे वहां दूर दूर तक एक भी ऐसी जगह नहीं थी जहाँ हम रूक सके। अँधेरे के कारण कोई एक दूसरे कोई देख नहीं पा रहा था। एक दूसरे से हम लोग बिछड़ ना जाये इसलिए हम लोग एक दूसरे को आवाज़ देते हुए चल रहे थे। ऐसा मैं ही नहीं यात्रा मार्ग में जितने लोग थे सब लोग ऐसा ही कर रहे थे।  इतने तेज़ बरसात में हम कहीं रुक भी नहीं सकते थे तो सब लोगो ने चलना ही अच्छा समझा। हम लोग ऐसे ही चलते जा रहे थे बरसात कम होने के बजाय और बढ़ती ही जा रही थी।


केदारनाथ का पावन मंदिर


11 बजे बरसात शुरू हुई थी और अब 2 बज गए थे बरसात अभी भी हो रही थी। सब लोग चलते जा रहे थे भीगते हुए। जहाँ चढ़ाई खत्म होती है वहां  पर एक चाय की दुकान थी और लोगों के बैठने के लिए शेड डाली हुई थी। शेड में पहले से ही बहुत लोग खड़े थे, कुछ बैठे थे। हम लोग भी वहीं पर रूक गए। ठण्ड बहुत ज्यादा हो गयी थी और हवा भी तेज़ चल  रही थी।  हर तरफ खुला आसमान, तेज़ हवा, जोरदार वर्षा, दूर दूर तक बर्फ ही बर्फ। हम लोगों ने वहां चाय पिया। 30 मिनट के बाद बरसात बंद हुई और आसमान साफ हो गया। अब हमें चढ़ाई नहीं चढ़नी थी जितना भी दुरी बचा हुआ था समतल था या फिर हलकी उतराई थी। अब हमें 2 किलोमीटर दूर केदारनाथ का मंदिर दिख रहा था। हम लोग बहुत खुश थे। मेरी पत्नी की ताबियत ख़राब होती जा रही थी।




गढ़वाल मंडल विकास निगम (उत्तराखंड सरकार) द्वारा संचालित गेस्ट हाउस जो यहाँ टेंट के रूप में होता है 




हट (टेंट) जहाँ रात में लोग रुकते हैं 

बड़े बड़े पहाड़ के बीच छोटे छोटे टेंट (तम्बू)

1 किलोमीटर चलने पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का हट (टेंट वाला) बना हुआ था।  मैंने पहले से ही बुकिंग करवा रखी थी। उनके ऑफिस में गया और बुकिंग रिसिप्ट दिखाया उन्होंने कहा कितने लोग है तो मैं उनको बताया की हम 5 लोग हैं। उन्होंने कहा कि एक हट में 6 लोगों के रहने के व्यवस्था होती है पर आप 5 लोग है तो भी हम उस हट में किसी और को नहीं देंगे। फिर उन्होंने अपने एक स्टाफ को बोला कि इन लोगों को हट संख्या 1 में पहुँचा दो। वो आदमी मुझे हट तक पंहुचा दिया और हट के अन्दर एक 200 वाट का बल्ब लगा हुआ था उसने कहा कि बल्ब पूरी रात जलने दीजिये थोड़ा गरम होगा।  कुछ देर आराम करने के बाद हम लोग मंदिर की तरफ चल दिए। मंदिर वहां से करीब 1 किलोमीटर है। कुछ दूर के बाद यात्रा पर्ची जो हमने हरिद्वार में बनवाया था काउंटर पर उसे चेक किया और जिनका नहीं बना हुआ होता था उनको बनाकर दे रहे थे। उसके बाद हम लोग आगे बढ़े और 4 बजे हम लोग मंदिर के पास पहुँच गए।



केदारनाथ का पावन मंदिर


2013 में आये प्रलयकारी बाढ़ से नष्ट हुआ मंदिर का भाग 

मंदिर के बाहर प्रसाद की दुकान वाले ने बताया कि अब मंदिर बंद हो गया है दुबारा मंदिर 5 बजे खुलेगा। दुकान वाले से मैंने प्रसाद उसी समय खरीद लिया। 5 लोगों का 5 प्रसाद ले लिया। बरसात फिर से शुरू हो गयी थी। अब हम लोगो के पास छाता भी नहीं था क्योंकि हमने अपना सारा सामान हट में ही छोड़ दिया था। अब हम लोगो के पास भीगने के अलावा कोई चारा नहीं था। अब हम लोग ये देख रहे थे कि किधर खड़े हो जिससे हम भीगने से बच सकें। पहले हम सब एक मकान के छज्जे की नीचे खड़े हुए।  कुछ देर तक तो ठीक रहा फिर वहां भी वर्षा का पानी आने लगा। अब हम एक चाय की दुकान में गए और उसमें बैठ गए और चाय बनाने के लिए बोला।  पहले उसने पहले से खड़े लोगों को चाय दी, उसके बाद हम लोगो को दिया। अब तक 4 :30 बज गया था और बरसात भी बंद हो चुकी थी। अब लोग मंदिर खुलने के लिए लाइन में लगने लगे थे कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी मुश्किल से 100 लोग थे। मैं भी मंदिर के लाइन में लग गया और सब भी लग गए। अभी मंदिर खुलने में कुछ देर समय बचा था तो मैं कुछ फोटो लेने लगा।


मंदिर प्रांगण में कंचन, आदित्य, माताजी और पिताजी 




मंदिर प्रांगण में मैं और कंचन 


2013 के आपदा में मंदिर की रक्षा करने वाला शिला 



मंदिर प्रांगण में मेरा बेटा 


ठीक 5 बजे मंदिर के कपाट खोल दिए गए। अब लोग एक एक करके मंदिर में जाने लगे। हम लोगों की बारी आने पर हम भी मंदिर के अंदर गए। मंदिर के अंदर घुसते ही ऐसा लग जैसे हम किसी और जगह आ गए।  मंदिर के बाहर का तापमान जहाँ 2 से 3 डिग्री था वहीं मंदिर के अंदर का तापमान 15 से 20 डिग्री था। मंदिर में घुसते ही सारी थकान दूर हो गयी। मंदिर के अंदर पाँच पाण्डव (युधिष्ठर, भीम , अर्जुन , नकुल , सहदेव ) की मूर्ति लगी हुई है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान् भोले शंकर का अदभुत ज्योतिर्लिंग है। हम लोगों ने शिव के उस ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये। कुछ देर ज्योतिर्लिंग के सामने खड़े रहे फिर दूसरे दरवाजे बहार निकल गए।  लोगों के उत्साह को देखकर ये नहीं लगता कि 3 साल पहले यहाँ इतनी बड़ी आपदा आयी हो, जिसमें ना जाने कितने हज़ार लोग मौत के मुंह में चले गए। आज हम लोग भी उस जगह पर हैं। दर्शन के बाद हमने कुछ और फोटो लिया।


मंदिर प्रांगण में साधु-संन्यासी 


मंदिर प्रांगण में साधु-संन्यासी


मंदिर प्रांगण में साधु-संन्यासी


मंदिर में जाने के लिए कतार में लगे श्रद्धालु 



मंदिर प्रांगण में आदित्या 
हम लोग एक बार फिर से मंदिर के अंदर गए और दिव्य ज्योतिर्लिंग के फिर से दर्शन किये। पता नहीं फिर कभी यहाँ आ पाएं या ना आ पाएं। अभी हमलोग मंदिर के पास टहल ही रहे थे कि एक आदमी लाउडस्पीकर पर घोषणा करता हुआ आया कि मंदिर के दाहिने साइड में प्रवचन हॉल में भंडारे का आयोजन किया गया है। जो भी लोग यहाँ उपस्थित है वो सब लोग खाना खाकर जाएं। हम लोग वहां गए तो वहां पूजा चल रही थी। बहुत सारे लोग वहाँ गए। वहाँ  जाते ही सब लोगो को थोड़ा नमकीन और एक कप चाय दी गयी, कुछ लोग तो दुबारा चाय पिए। उस ठण्ड में चाय पीकर थोड़ा राहत महसूस हुआ। मैंने और बहुत लोगों ने कई-कई कप चाय पी लिए। मैं वहीं एक कुर्सी पर बैठा हुआ था तो एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि  आप कहाँ से आये हैं तो मैंने उनको बताया कि दिल्ली से।  उन्होंने कहा कि यहाँ रात में बर्फ गिरती है और खूब बरसात होती है इसलिए आप कहीं सरकारी या प्राइवेट गेस्ट हाउस में कमरा ले लीजियेगा। मैंने उनको अपने रूम के बारे में बता दिया कि मेरा गढ़वाल मंडल विकास निगम में हट बुक किया हुआ है। कुछ देर बाद आरती हुई उसके बाद खाने का इंतज़ाम हुआ। सभी मौजूद लोगों ने खाना खाया। खाना खाने के बाद एक बार फिर से हम लोग मंदिर के पास आये तब तक मंदिर के कपाट बंद हो चुके थे। हम लोगों एक बार फिर से मंदिर को प्रणाम किया और रात्रि विश्राम के लिए अपने गंतव्य की ओर चल दिए। रात हो चुकी थी उस टाइम घडी में 8 बज चुके थे। मंदिर से मेरा रूम करीब 1.5 किलोमीटर था। अँधेरा इतना घना था की कुछ दिख नहीं  रहा था। ये तो अच्छा था कि मैंने टॉर्च रख लिया था।  हम लोगों के साथ करीब 10 लोग और थे जो उधर ही जा रहे थे। ठण्ड इतनी थी कि एक  एक कदम चलना मुश्किल हो रहा था। रात होते ही हर तरफ सन्नाटा छा गया था। उस सन्नाटे में मन्दाकिनी की बहने की जो आवाज़ थी फिर सुनाई दे रही थी। मंदिर के कुछ ऊपर से दो धाराएँ आती है एक नर्मदा और दूसरी मन्दाकिनी और मंदिर से आगे आते ही दोनों एक साथ मिल जाती है। इससे यही प्रतीत होता है कि दोनों नदियों ने मिलकर मंदिर को घेर रखा है। 



मन्दाकिनी घाटी के पास खड़ी कंचन


करीब 30 मिनट में हम लोग अपने हट के पास आ गए। वहाँ इतने ज्यादा हट बने हुए थे कि मेरा हट कौन सा है मिल ही नहीं रहा था। और रात हो जाने के कारण वहाँ कोई दिख भी नहीं रहा था जिससे हम कुछ पूछ भी सकें। ठण्ड के मारे हम लोगो की हालात कुछ अच्छी नहीं थी। बहुत मुश्किल से अपना हट खोज पाया। अपने हट में घुसते ही हम सब सोने की तैयारी करने लगे। वहां जमीन पर ही मोटे मोटे गद्दे बिछे हुए थे। जिसे छूने पर ऐसा महूसस हो रहा था कि ये गद्दे नहीं बर्फ की सिल्ली है। ये गद्दे मुलायम तो बहुत थे लेकिन थे बिलकुल बर्फ की तरह ठन्डे। उस पर सोना तो दूर की बात है बैठना भी मुश्किल था। सोने के लिए स्लीपिंग बैग था। स्लीपिंग बैग खोलो और जैसे सूटकेस में सामान रखा जाता है वैसे ही उसके अंदर घुसो और सामान की तरह पैक होकर सो जाओ। हम सबने भी यही किया बैग के अंदर घुसा चेन बंद किया और साँस लेने के लिए बस नाक के पास थोड़ा सा खुला रहने  दिया जिससे कि साँस ले सकें और सो गए।

इससे आगे का भाग लेकर हम जल्दी ही आएंगे, तब तक के  लिए आज्ञा दीजिये। जो भी गलती आप लोगो को दिखे या जो भी सुधार की बात हो जरूर बताएं। 

धन्यवाद।

16 comments:

  1. you write in a different way but beautiful

    ReplyDelete
    Replies
    1. i am trying to change my writing style but not change, main apne likhne ka dhang badalna chahta hoon par badal nahi pata hai, to jaisa chal raha hai chalne de rahe hain

      Delete
  2. i am trying to change my writing style but not change, main apne likhne ka dhang badalna chahta hoon par badal nahi pata hai, to jaisa chal raha hai chalne de rahe hain

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया, लेकिन पोस्ट 1000 शब्दों से अधिक की नहीं होनी चाहिए। फोटो टेम्पलेट के साइज की हों तो उत्तम।

    ReplyDelete
    Replies
    1. ललित जी आपके सुझाव के लिए धनयवाद, अब जो पोस्ट प्रकाशित हो गयी उसे तो १००० शब्द में करना तो मुश्किल है, पर आगे आने वाली पोस्ट में इस बाद का ख्याल ध्यान रखूँगा कि १००० शब्द के करीब ही हों।

      Delete
    2. Photo wali baat meri samjh me nahi aayi, ki aap kya kahna chahte hai, choti rakhu photo ya badi

      Delete
  4. जय भोलेनाथ

    मैं 2014 से हर साल बाबा के दर्शन करने जाता हूं।जब पहली बार गया था तभ गाड़ी गौरीकुंड भी नही पहुंच पाती थी और रास्ता भी खराब था भीमबली से आगे।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अनिल जी , आप २०१४ से लगातार जा रहे है, इस बार हम फिर दुबारा जाएंगे बाबा के दर्शन के लिए, संभवतः अक्टूबर में।

      Delete
  5. Very good and detailed description

    ReplyDelete
    Replies
    1. ye bas ek chota sa paryas hai apni yatraon ka vivran ek jagah ikattha karne ka

      Delete
  6. Very good and detailed description

    ReplyDelete
  7. नहाने के लिए कपडे न ले जाना जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा...बहुत बढ़िया दर्शन किये आपने ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हाँ कपडे नहीं ले जाने का खामियाजा तो भुगतना पड़ा पर भोलेनाथ की कृपा से सब अच्छा रहा , और यात्रा के दौरान ऐसी ही कुछ बातें घटित होती है जिससे यात्रा रोमांचक हो जाती है

      Delete
  8. माँ नर्मदा मध्यप्रदेश से प्रवाहित होती है।। तो ये बाबा केदारनाथ के पास से कोनसी नर्मदा का वर्णन किया है आपने ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी वो एक छोटी सी नदी है और उसका नाम भी नर्मदा ही है, जो मंदिर के थोड़े ऊपर से आती है और मंदिर से आगे आकर मंदाकिनी में मिल जाती है।

      Delete