Thursday, January 5, 2017

दिल्ली से आगरा (Delhi to Agra)

दिल्ली से आगरा 



2 जून 2013 (रविवार)
बहुत दिनों से ताजमहल देखने का मन हो रहा था। आख़िरकार 2 जून 2013 को ताजमहल देखने की प्लानिंग हुई।  मैं, मेरी पत्नी, बेटा, ऑफिस के ही एक सहकर्मी (नरेंद्र), उनकी पत्नी, उनकी बेटी और बेटा, एवं ऑफिस के ही दुसरे सहकर्मी (राजीव) मिलकर हम 8 लोग हो गए। दिल्ली से आगरा जाने और आने का हमने ताज एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 12280 डाउन) का टिकट बुक किया और वापसी का टिकट भी ताज एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 12279 अप) का ही लिया।




एक दिन का टूर था इसलिए कोई ज्यादा तैयारी करने की कोई जरूरत नहीं थी।  बस दिन के खाने के लिए कुछ बनाकर ले लेना था।  यात्रा वाले दिन हम लोग 4 बजे ही उठ गए थे  जल्दी से कुछ खाना बनाकर पैक किया गया और नहा धोकर हम लोग  तैयार हो गए।  ताज एक्सप्रेस हजरत निजामुद्दीन से 7 बजे चलती है और आगरा 9:40 पर पहुँचती है। 7 बजे की ट्रेन थी तो हमने 5 : 30 घर से निकल गए और जिन लोगों जाना था वे लोग भी अपने अपने घर से निकल चुके थे।  बात हुई की बस स्टॉप पर मिलते हैं और से ऑटो में बैठेंगे।  बस स्टॉप पर आकर हमने 2 ऑटो किया।  एक ऑटो में नरेंद्र जी अपने परिवार के साथ  बैठे और दूसरे ऑटो में हम अपने परिवार के साथ बैठे।  नरेंद्र जी 4 लोग थे तो वो सब एक ऑटो में और हम 3 लोग थे और एक राजीव जी थे तो 4 लोग एक ऑटो में बैठ गए।


ऑटो में जब हम लोग बैठ रहे थे उस वक़्त 6 बज चुके थे।  6 :25 बजे हम लोग निजामुद्दीन पहुँच गए।  ट्रेन किस प्लेटफॉर्म से जाएगी ये पता करके हम लोग प्लेटफार्म पर आ गए। 6 :40 बजे ट्रेन भी प्लेटफार्म पर आ गयी।  हम लोग अपनी  अपनी सीट पर बैठ गए।  ठीक 7 बजे ट्रेन चल पड़ी।  जून का महीना था गर्मी भी बहुत तेज़ थी पर विंडो सीट होने के कारण हम लोगो को गर्मी का अहसास नहीं हो रहा था। घर से हम लोग बिना कुछ खाये ही निकले थे तो भूख भी लग रही थी। हमने घर से कुछ खाना बनाकर ले लिया था।  नरेंद्र जी भी अपने घर से खाने के लिए ले आये थे।  हम लोगों ने ट्रेन में ही खाना खाया। ट्रेन निज़ामुद्दीन से खुलने के बाद फरीदाबाद, मथुरा, राजा की मंडी  हुए 9 :40 पर आगरा स्टेशन पहुँच गयी।

राजीव, नरेंद्र जी और मैं

हम लोग ट्रेन से उतरकर स्टेशन से बाहर आये तो गर्मी का अहसास हुआ।  10 बज चुके थे और सूरज ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। स्टेशन से बाहर आते आते ही कुछ गाड़ी वाले पीछे लग गए।  एक गाड़ी वाले से 600 रूपये में पूरे दिन के लिए बात तय हुई।  वो पूरा दिन मुझे घुमाकर शाम को फिर स्टेशन पंहुचा देगा।  हम लोग गाड़ी में बैठ गए।  उसने गाड़ी स्टार्ट की और कुछ देर बाद वो ताजमहल के पास पहुँच गया।

मैं, मेरी पत्नी, मेरा बेटा, राजीव , नरेंद्र जी , उनकी पत्नी, बेटी और बेटा (बाएं से )

वहां पहुंचकर उसने हम लोगो को कहा कि आप लोगों के पास जो भी सामान है पानी के बोतल के अलावा वो आप यहीं गाड़ी में ही रहने दीजिये क्योकि अंदर आप कुछ नहीं ले सकते।  मैंने थोड़ा संकोच किया कि अनजान आदमी के गाड़ी में अपने सारे सामान कैसे रहने दूं।  वो समझ गया कि मैं गाड़ी में सामान को नहीं छोड़ना चाहता हूँ।  उसने कहा कि आप इतना सोचिये मत कुछ नहीं होगा आपके सामान को मैं तब तक यही रहूँगा जब तक आप लोग आ नहीं जाते। और यदि नहीं भी रहा  यहाँ पर तो आप फ़ोन कर देना और केवल 5 मिनट में मैं यहाँ पहुँच जाऊँगा।  यहाँ खड़े रहने से कभी कभी ट्रैफिक  हो जाता है तो हम कही साइड में रहेगे आप बाहर निकालकर मुझे कॉल करना मैं आ जाउगा।

हम लोगों ने सारा सामान गाड़ी में ही रख दिया और सामान ही क्या था बस दोपहर के खाने के लिए थोड़ा बहुत कुछ था।  अब हम लोग ताजमहल के कैंपस में दाखिल हो चुके थे। वहां कई ऊंट गाड़ी कड़ी थी।  ताजमहल कैम्पस के मैं गेट से ताजमहल अच्छी खासी दुरी पर है यदि आप पैदल जाते है तो करीब 20 मिनट लग जायेगा। यहाँ ऊंट गाड़ी वाला पर व्यक्ति 5 रूपये ले रहा था।  हम लोग ऊंट गाड़ी में बैठ गए।  पहली बार हम किसी ऊंट द्वारा खींचे जाने वाली गाड़ी में बैठे थे। बड़ा ही अच्छा लग रहा था ऊंट धीरे धीरे चल रहा था।  कुछ देर में हम वहां पहुँच गए जहाँ ताजमहल में अंदर जाने के लिए टिकट मिलता है।

नरेंद्र जी की बेटी, मेरा बेटा, नरेंद्र जी का बेटा (बाएं से )

टिकट काउंटर पर लंबी लंबी लाइन लगी थी।  लेडीज की लाइन थोड़ी छोटी थी।  मैंने नरेंद्र जी की बेटी को लाइन में लग जाने कहा और जल्दी ही हम लोगों को मिल गया। तब तक मैंने एक फोटोग्राफर से बात किया जो हम लोगो की फोटो ले  सके और हमारे बाहर निकलने पर वो फोटो तैयार करके रखे।  इस बात के बारे में किसी को भी पता नहीं लगा। टिकट लेने के बाद हम लोग अंदर जाने वाली लाइन में लगे।  यहाँ भी लाइन लगी थी।  यहाँ से भी ताजमहल कुछ दूर ही था।  वहां से अंदर जाने पर हम कुछ दूर आगे गए तो ताजमहल दिखाई दिया।  हम लोगों ने कुछ फोटो यहाँ खिंचवाई।  जब हमने कहा की कुछ फोटो ले लेते है फोटोग्राफर साथ में हम लेके आये है तो सब चौक गए।

आदित्या

फोटो खिंचवाने के बाद हम लोगो ने ताजमहल का कैंपस घुमा। गर्मी बहुत तेज़ थी।  इसे तेज़ गर्मी नहीं बहुत तेज़ गर्मी कह सकते हैं।  यहाँ देश-विदेश सब जगह के बहुत सारे लोग थे।  आज हमने भी उस ताजमहल को देख लिया जिसे देखने  लोग सात समंदर पर से भी भारत आते हैं। यहाँ घूमने के बाद हम लोग आये जहाँ मुझे ऊंट गाड़ी वाले ने उतारा था।  इस बार हम लोग पैदल ही चलने का विचार किये।  एक ऊंट गाड़ी वाले ने कहा कि आये बैठिये तो मैंने कहा कि नहीं हम पैदल ही जायेगे तो उसने कहा कि यदि यहाँ आने वाले हर लोग पैदल ही चलने लगे तो हम लोगो का गुजारा कैसे होगा।  तब मैंने कहा कि कितने पैसे लोगो तो उसने कहा 5 रूपये प्रति आदमी।  मैंने उसे कहा कि टोटल 30 रूपये देंगे तो वो 30 रूपये में ले जाने के लिए तैयार हो गया।  अब हम सब उस ऊंट गाड़ी में बैठ गए।

मैं और राजीव

ऊंट देखर मेरा मन ऊंट के पीठ पर बैठकर सवारी करने का होने लगा। मैंने ऊंट वाले से कहा कि मुझे ऊंट पर बैठा लो तो उसने सीधा मना कर दिया कि नहीं हम ऊंट पर किसी को नहीं बैठा सकते। ये बात मुझे बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी।  अब मैंने उसे कहा कि ठीक है तुम अगर किसी को ऊंट पर नहीं बैठा सकते तो हम लोग नीचे उतर जाते हैं और या तो पैदल चले जायेगे या फिर किसी और गाड़ी से चले जाएंगे। मेरी ये बात सुनकर उसने कहा कि ठीक है यदि आप ऊंट पर बैठोगे तो 5 रूपये और देने होंगे।  मैंने उसे कहा कि 5 नहीं हम 10 रूपये देगे पर हम ऊंट पर बैठेंगे।  उसने उसने ऊंट को बैठाया और हम ऊंट के पीठ पर सवार हो गए। ऊंट चलने लगा और हम मस्ती में झूम रहे थे। ऊंट की पीठ पर बैठने से हम जब ऊंट चलता तो इधर उधर हिल रहे थे। ऊंट के पीठ पर बैठ कर चलते मुझे अपने बेटे की दूसरी कक्षा में पढ़ी हुई एक कविता याद आ रही थी :


ऊंट चला, भई ऊंट चला (unta chala, bhai unta chala)
हिलता डुलता ऊंट  चला।(hilta dulta unta chala.)

इतना ऊँचा ऊंट चला (itna uncha unta chala)
ऊंट चला, भई ऊंट चला (unta chala, bhai unta chala)

ऊंची गदर्न, ऊंट पीठ (unchi gardan, unchi peeth)
पीठ उठाए, ऊंट  चला। (peeth uthae, unta chala)

बालू है, तो होने दो (baloo hai, to hone do)
बोझ ऊंट को ढोने दो। (bojh unta ko done do)

नही फॅसेगा बालू में (nhi fasega baloo me)
बालू मे भी ऊंट चला। (baloo me bhi unta chala)

जब थककर बैठेगा ऊंट (jab thakkar baithega unta)
किस करवट बैठेगा ऊंट । (kis karwat baithega unta)

बता सकेगा कौन भला (bata dega kaun bhala)
ऊंट चला, भई ऊंट चला। (unta chala, bhai unta chala)

राजीव, नरेंद्र जी और मैं 

अपने गंतव्य पर पहुँच ऊंट वाले ने अपनी ऊंट गाड़ी रोकी।  मैं ऊंट से नीच उतरा।  अब राजीव के मन में भी लालच आया।  वो भी ऊंट की पीठ पर बैठ कर अपनी हसरत पूरी कर लिए।  ऊंट वाले को पैसे देने के बाद हम लोग बाहर आये वहां फोटोग्राफर पहले से ही इंतज़ार कर रहा था।  हमने उससे फोटो लिए और उसे पैसे देकर गाड़ी वाले को फ़ोन किया वो वहीं आसपास ही था।  फ़ोन करने के 2 से 3 मिनट के अंदर वो हमारे पास आ गया।  हम गाड़ी में बैठे और वहां ले लालकिला गए।  अरे चौकिये मत लालकिला आगरा में भी है।  लाल किला घूमने के बाद हम फिर से गाड़ी में आ गए और गाड़ी में ही बैठकर खाना खाये।

आदित्या


वापसी की ट्रेन 7 बजे की थी।  अब हमने गाड़ी वाले से स्टेशन चलने कहा।  वो हम लोगो को स्टेशन पहुंच दिया।  हमने उसे पैसे दिए और कोई दुकान देखने लगे की कुछ ठंडा पिया जाये पर एक भी दुकान स्टेशन के पास नहीं थी।  इतने बड़े टूरिस्ट स्पॉट होने के बाद स्टेशन के बाहर कोई दुकान नहीं बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।  हम लोग कभी प्लेटफार्म पर घुमते हुए तो कभी वेटिंग हॉल में बैठकर ट्रेन का इंतज़ार करने लगे।  ठीक 7 बजे ट्रेन आ गयी।  हम लोग अपनी अपनी सीट पर बैठ गए और ट्रेन रात्रि 10 :10 बजे निजामुद्दीन स्टेशन आ गयी।  हम ट्रेन से उतरे ऑटो किया और घर आ गए।

कुल मिलाकर ये यात्रा बहुत ही अच्छी रही। आपको मेरी ये यात्रा कैसी लगी जरूर बताइयेगा।

धन्यवाद।

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3 comments:

  1. Ye bhi achhi trip rahi, mera hi shahar hai

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    1. very very thanks, acha jee to aap agra ke hee hain, bahut badhiya phir to bahut pas hain ham aapke

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद अंकिता जी

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