Monday, January 16, 2017

वैष्णो देवी यात्रा (Journey of Vaishno Devi) 2014-2


वैष्णो देवी यात्रा (2014)-2



एक बार फिर वैष्णो देवी (वैष्णो देवी की दूसरी यात्रा)
जून 2014 में वैष्णो देवी यात्रा से आने के बाद पत्नी और बेटा गांव चले गए। 10 दिन मैं उन लोगों को लाने के लिए गया क्योंकि गरमी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने वाली थी। वहां जाने पर माताजी ने कहा कि तुम लोग तो वैष्णो देवी से आ गए पर अगर अगली बार जाओगे हम लोग भी चलेंगे। मैंने कहा ठीक है अगली बार सब लोग जाएंगे। बात यहीं पर ख़तम हो गयी।

मैं पत्नी और बेटे के साथ दिल्ली आ गया। 14 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली से कटरा तक जाने वाली पहली ट्रेन का उद्घाटन किया। हम टीवी पर यही न्यूज़ देख ही रहे थे कि कंचन ने कहा कि देखिये हम लोग 1 महीने पहले वैष्णो देवी गए थे तो ट्रेन वहां तक नहीं जाती थी लेकिन अब ट्रेन सीधे कटरा तक चली जाएगी तो क्यों न आने वाली नवरात्रि में मम्मी और पापा को आप वैष्णो देवी ले जाएँ। मैंने कहा कि आईडिया तो ठीक है पर इतनी जल्दी जाने के लिए ऑफिस से छुट्टी लेना मुश्किल है क्योंकि अभी हम लोग वैष्णो देवी गए तो छुट्टी लिए और उसके बाद अभी तुम लोगो को गांव से लाने गए तो छुट्टी लिए फिर छुट्टी लेना मुश्किल है।

अब उसका जवाब सुनिये। उसने कहा कि वैष्णो देवी गए तो 3 छुट्टी, हम लोगों को लाने गए तो 3 छुट्टी। साल में महीने होते है 12 और जुलाई ख़तम होने को आयी। इस ईयर के 12 में से 7 महीने बीत गए और टोटल छुट्टी आपने लिया है 6 और अगली छुट्टी लेने में भी 2 महीने का समय है। और छुट्टी भी ज्यादा नहीं लेना है। 30 सितम्बर को जाने का टिकट लीजिये। उस दिन ऑफिस से आने के बाद जाइयेगा। 1 और 3 अक्टूबर की जाने की छुट्टी ले लीजिये और 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती है। इस तरह ऑफिस से 2 दिन की छुट्टी लेने से काम हो जायेगा।

वैष्णो देवी भवन का बर्फ से ढंका हुआ, ऐसा दृश्य कभी कभी ही देखने को मिलता है


मैंने वही किया। टिकट बुकिंग में अभी 10 -12 दिन का समय बचा था। जाने का टिकट मैंने 30 सितम्बर का लिया। उस समय दिल्ली से कटरा जाने वाली एकलौती ट्रेन श्री शक्ति एक्सप्रेस ही थी जो कटरा तक जाती थी पर उसकी टाइमिंग नई दिल्ली स्टेशन से शाम को 5 :30 पर थी इसलिए उस ट्रेन की टिकट नहीं लिया क्योकि उस ट्रेन का टिकट लेने पर ऑफिस से हाफ डे की छुट्टी लेनी पड़ती। मैंने उत्तर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस का टिकट लिया पर बुकिंग कन्फर्म और पेमेंट होते होते टिकट वेटिंग लिस्ट में चली गयी और वेटिंग लिस्ट में भी 100 के करीब जो उस नवरात्रि के मौके पर कन्फर्म होना मुश्किल था और मुश्किल क्या असंभव ही था। मैंने उसी समय दिल्ली सराय रोहिल्ला से चलने वाली दुरंतो एक्सप्रेस का टिकट बुक किया जो रात्रि 10 :15 मिनट जाती है, उसमे कन्फर्म टिकट मिल गया। खैर जैसे भी हो जाने का टिकट तो हो गया अब रह गयी आने के लिए टिकट बुकिंग की। 2 दिन बाद आने का टिकट बुक करना था। आने के लिए मैं श्री शक्ति एक्सप्रेस टिकट लिया क्योकि वो रात में 11 बजे कटरा से चलती है। कटरा में ठहरने के लिए आई आर सी टी सी का ही गेस्ट हाउस बुक किया जो कटरा रेलवे स्टेशन की पहली मंज़िल पर स्थित है। अब माँ और पिताजी का पटना से दिल्ली आने और वापस दिल्ली से पटना जाने का टिकट बुक करना था तो वो भी कर दिया। मम्मी-पापा का टिकेट 27 सितम्बर को पटना से था और वो 28 सितम्बर को दिल्ली पहुँच गए।


संक्षिप्त ब्यौरा 
  • 30 सितम्बर 2014 (मंगलवार): दिल्ली से कटरा
  • 1 अक्टूबर 2014 (बुधवार):  कटरा में थोड़ा आराम और दोपहर को कटरा से वैष्णो दरबार और भैरोनाथ और भैरोनाथ से वापस कटरा
  • अक्टूबर 2014 (गुरुवार): दिन में आराम और  मार्केटिंग और रात्रि में दिल्ली के लिए प्रस्थान
  • अक्टूबर 2014 (शुक्रवार): 11 बजे दिल्ली पहुँच कर यात्रा समाप्त 


अब कुछ बातें जम्मू, कटरा और वैष्णो देवी के बारे में

वैष्णो देवी का दरबार 


वैष्णो देवी की यात्रा 
कहते हैं पहाड़ों वाली माता वैष्णो देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। ऐसा ही सच्चा दरबार है- माता वैष्णो देवी का।
माता का बुलावा आने पर भक्त किसी न किसी बहाने से उसके दरबार पहुँच जाता है। हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित माता वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं।

मान्यता 
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और सभी गाँववालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया। पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने भैरवनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया गया था। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए माँ वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी हनुमान को बुलाकर कहा कि भैरवनाथ के साथ खेलों मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी। इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेला। आज इस पवित्र गुफा को 'अर्धक्वाँरी' के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वाँरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। त्रिकुट पर वैष्णो मां ने भैरवनाथ का संहार किया तथा उसके क्षमा मांगने पर उसे अपने से उंचा स्थान दिया कहा कि जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी। अत: श्रदालु आज भी भैरवनाथ के दर्शन को अवशय जाते हैं।

भैरो नाथ मंदिर 
जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान आज पूरी दुनिया में 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (बाएँ) और माँ लक्ष्मी पिंडी (मध्य) के रूप में गुफा में विराजित है, जिनकी एक झलक पाने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इन तीनों के सम्मि‍लित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को 'भैरोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी। माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।

भैरो नाथ मंदिर

कैसे पहुंचे 
माँ वैष्णो देवी की यात्रा का पहला पड़ाव जम्मू होता है। जम्मू तक आप बस, टैक्सी, ट्रेन या फिर हवाई जहाज से पहुँच सकते हैं। जम्मू ब्राड गेज लाइन द्वारा जुड़ा है। गर्मियों में वैष्णो देवी जाने वाले यात्रियों की संख्या में अचानक वृद्धि हो जाती है इसलिए रेलवे द्वारा प्रतिवर्ष यात्रियों की सुविधा के लिए दिल्ली से जम्मू के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जाती हैं। अब तो ट्रेन सीधे आधार शिविर कटरा तक जाने लगी है। 
जम्मू भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 1 ए पर स्थित है। अत: यदि आप बस या टैक्सी से भी जम्मू पहुँचना चाहते हैं तो भी आपको कोई परेशानी नहीं होगी। उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए आपको आसानी से बस व टैक्सी मिल सकती है।
वैष्णो देवी के भवन तक की यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है, जो कि जम्मू जिले का एक गाँव है। जम्मू से कटरा की दूरी लगभग 50 किमी है। जम्मू से बस या टैक्सी द्वारा कटरा पहुँचा जा सकता है। जम्मू रेलवे स्टेशन से कटरा के लिए बस सेवा भी उपलब्ध है जिससे 2 घंटे में आसानी से कटरा पहुँचा जा सकता है।
वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत 
माँ वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है। अधिकांश यात्री यहाँ विश्राम करके अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं। माँ के दर्शन के लिए रातभर यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है। कटरा से ही माता के दर्शन के लिए नि:शुल्क 'यात्रा पर्ची' मिलती है।
यह पर्ची लेने के बाद ही आप कटरा से माँ वैष्णो के दरबार तक की चढ़ाई की शुरुआत कर सकते हैं। यह पर्ची लेने के तीन घंटे बाद आपको चढ़ाई के पहले 'बाण गंगा' चैक पॉइंट पर इंट्री करानी पड़ती है और वहाँ सामान की चैकिंग कराने के बाद ही आप चढ़ाई प्रारंभ कर सकते हैं। यदि आप यात्रा पर्ची लेने के 6 घंटे तक चैक पोस्ट पर इंट्री नहीं कराते हैं तो आपकी यात्रा पर्ची रद्द हो जाती है। अत: यात्रा प्रारंभ करते वक्त ही यात्रा पर्ची लेना सुविधाजनक होता है।
पूरी यात्रा में स्थान-स्थान पर जलपान व भोजन की व्यवस्था है। इस कठिन चढ़ाई में आप थोड़ा विश्राम कर चाय, कॉफी पीकर फिर से उसी जोश से अपनी यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। कटरा, भवन व भवन तक की चढ़ाई के अनेक स्थानों पर 'क्लॉक रूम' की सुविधा भी उपलब्ध है, जिनमें निर्धारित शुल्क पर अपना सामान रखकर यात्री आसानी से चढ़ाई कर सकते हैं।
कटरा समुद्रतल से 2500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यही वह अंतिम स्थान है जहाँ तक आधुनिकतम परिवहन के साधनों (हेलिकॉप्टर को छोड़कर) से आप पहुँच सकते हैं। कटरा से 14 किमी की खड़ी चढ़ाई पर भवन (माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा) है। भवन से 3 किमी दूर 'भैरवनाथ का मंदिर' है। भवन से भैरवनाथ मंदिर की चढ़ाई हेतु किराए पर पिट्ठू, पालकी व घोड़े की सुविधा भी उपलब्ध है।
कम समय में माँ के दर्शन के इच्छुक यात्री हेलिकॉप्टर सुविधा का लाभ भी उठा सकते हैं। लगभग 700 से 1000 रुपए खर्च कर दर्शनार्थी कटरा से 'साँझीछत' (भैरवनाथ मंदिर से कुछ किमी की दूरी पर) तक हेलिकॉप्टर से पहुँच सकते हैं।
आजकल अर्धक्वाँरी से भवन तक की चढ़ाई के लिए बैटरी कार भी शुरू की गई है, जिसमें लगभग 4 से 5 यात्री एक साथ बैठ सकते हैं। माता की गुफा के दर्शन हेतु कुछ भक्त पैदल चढ़ाई करते हैं और कुछ इस कठिन चढ़ाई को आसान बनाने के लिए पालकी, घोड़े या पिट्ठू किराए पर लेते हैं।
छोटे बच्चों को चढ़ाई पर उठाने के लिए आप किराए पर स्थानीय लोगों को बुक कर सकते हैं, जो निर्धारित शुल्क पर आपके बच्चों को पीठ पर बैठाकर चढ़ाई करते हैं। एक व्यक्ति के लिए कटरा से भवन (माँ वैष्णो देवी की पवित्र गुफा) तक की चढ़ाई का पालकी, पिट्ठू या घोड़े का किराया 250 से 1000 रुपए तक होता है। इसके अलावा छोटे बच्चों को साथ बैठाने या ओवरवेट व्यक्ति को बैठाने का आपको अतिरिक्त शुल्क देना पड़ेगा।
ठहरने का स्थान 
माता के भवन में पहुँचने वाले यात्रियों के लिए जम्मू, कटरा, भवन के आसपास आदि स्थानों पर माँ वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की कई धर्मशालाएँ व होटले हैं, जिनमें विश्राम करके आप अपनी यात्रा की थकान को मिटा सकते हैं, जिनकी पूर्व बुकिंग कराके आप परेशानियों से बच सकते हैं। आप चाहें तो प्रायवेट होटलों में भी रुक सकते हैं।
नवरात्रि में लगता है मेला : माँ वैष्णो देवी के दरबार में नवरात्रि के नौ दिनों में प्रतिदिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। कई बार तो श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या से ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती है कि पर्ची काउंटर से यात्रा पर्ची देना बंद करनी पड़ती है। इस वर्ष भी नवरात्रि में हर रोज लगभग 100000 से अधिक श्रद्धालु माँ वैष्णो के दर्शन के लिए कटरा आते हैं।




कुछ जरूरी सावधानियां
  • वैसे तो माँ वैष्णो देवी के दर्शनार्थ वर्षभर श्रद्धालु जाते हैं परंतु यहाँ जाने का बेहतर मौसम गर्मी है। 
  • सर्दियों में भवन का न्यूनतम तापमान -3 से -4 डिग्री तक चला जाता है और इस मौसम से चट्टानों के खिसकने का खतरा भी रहता है। अत: इस मौसम में यात्रा करने से बचें। 
  • ब्लड प्रेशर के मरीज चढ़ाई के लिए सीढि़यों का उपयोग ‍न करें। 
  • भवन ऊँचाई पर स्थित होने से यहाँ तक की चढ़ाई में आपको उलटी व जी मचलाने संबंधी परेशानियाँ हो सकती हैं, जिनसे बचने के लिए अपने साथ आवश्यक दवाइयाँ जरूर रखें। 
  • चढ़ाई के वक्त जहाँ तक हो सके, कम से कम सामान अपने साथ ले जाएँ ताकि चढ़ाई में आपको कोई परेशानी न हो।
  • पैदल चढ़ाई करने में छड़ी आपके लिए बेहद मददगार सिद्ध होगी।


अब यात्रा के बारे में


पहला दिन
30 सितम्बर को जाना था और इस दिन मैं ऑफिस से थोड़ा जल्दी निकला और घर आया। घर आने के बाद जाने की तैयारी में जो कुछ कमी रह गयी थी उसे पूरा किया। मैं, पिताजी और मम्मी 7 बजे घर से निकल गए। स्कूल में छुटियां नहीं होने के कारण बेटा और पत्नी नहीं जा सके। कई ऑटो वाले को पूछा पर कोई भी सराय रोहिल्ला जाने के लिए राजी नहीं हो रहा था। बड़ी मुश्किल से एक ऑटो वाले ने हाँ बोला उसने कहा 150 रूपये माँगा। हम ऑटो में बैठ गए। ऑटो चली और आई टी ओ और राजघाट होते हुए कमला मार्किट पहुँच गयी। यहाँ से ट्रैफिक का जो नज़ारा था डराने वाला था। ऑटो रेंग रेंग कर चल रही थी। घर से स्टेशन का रास्ता मुश्किल से 40 मिनट का था फिर भी हम ट्रेन के टाइम से 3 :15 घंटे पहले घर से निकले थे और हालात ये हो गया था कि ट्रेन पकड़ पाएंगे या नहीं इसका अंदाज़ लगाना मुश्किल था। मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था। खैर किसी तरह 10:00 बजे हम सराय रोहिल्ला पहुँच गए। ऑटो वाले से 150 रुपए में बात तय हुई थी पर उसे मैंने 100 रुपए का 2 नोट दिया तो उसने मुझे कहा कि मेरे पास 50 का नोट नहीं है इसलिए आप ही 50 रुपए दे दीजिये। मैंने उसे कहा कि मैं आपसे 50 रुपए वापस नहीं मांग रहा हूँ आपको 200 रुपए दे रहा हूँ। बात भले ही 150 रुपए में हुई थी पर जितना आपको टाइम लगा उस हिसाब से आप ये 200 रुपए रख लीजिये। उसने पैसे रखते हुए कहा कि ऐसे लोग नहीं मिलते जो जितने पैसे में तय हुआ हो और उससे ज्यादा दे दें। 

10 बज चुके थे। ऑटो से उतरने के बाद हम प्लेटफार्म पर गए और अपने सीट पर बैठ गए। ट्रेन अपनी निर्धारित समय 10 : 15 बजे खुल गयी। 11 बजे के करीब हम लोग सो गए।

जम्मू रेलवे स्टेशन 


दूसरा दिन
जब नींद खुली तो देखा कि ट्रेन जम्मू से करीब 20 किलोमीटर पहले एक छोटे से स्टेशन विजयपुर जम्मू नामक स्टेशन को पार कर रही है। विजयपुर जम्मू स्टेशन पर ही पठानकोट से चलकर कटरा तक जाने वाली पैसेंजर ट्रेन खड़ी थी। इसका मतलब ये था कि हमारी ट्रेन के पीछे से ये ट्रेन जम्मू जायेगी। मुझे लगा कि अब तो इस ट्रेन को जम्मू में उतरने के बाद वहां से दूसरी टिकट लेकर फिर से प्लेटफार्म पर आकर इस ट्रेन को नहीं पकड़ पाएंगे और ये हो भी जाता यदि एक लड़का अपनी टिकट कैंसिल करवाने नहीं जाता। 

मैंने अपने पेरेंट्स से कहा कि आप लोग तैयार हो जाईये क्योकि जम्मू आने में कुछ ही मिनट है। वहाँ हम ट्रेन से उतरेंगे और आप लोग रुकिएगा और मैं जल्दी से टिकट लेकर आ जाऊंगा और फिर पैसेंजर ट्रेन से कटरा चले जायेगें। 7 :30 बजे हम जम्मू पहुँच गए। ट्रेन से उतरे तो स्टेशन पर घोषणा हो रही थी कि पठानकोट से चलकर कटरा तक जाने वाली पैसेंजर ट्रेन कुछ ही देर में आने वाली है। मैंने मां से सामान का ध्यान रखने के लिए कहकर टिकट लेने चला गया। टिकट काउंटर पर गया तो देखा की यहाँ हरेक काउंटर पर 50 से ज्यादा लोगो की लाइन लगी है। लाइन देखकर ही ये तय हो गया कि अब हम ट्रेन नहीं पकड़ सकेंगे। फिर भी इस उम्मीद में की क्या पता ट्रेन कुछ देर से आये या आने के बाद कुछ देर रुके और तब तक टिकट मिल जाये तो ट्रेन पकड़ लें। अभी मुश्किल से 10 लोगों का ही टिकट बन पाया होगा कि ट्रेन आ गयी। ट्रेन को आया देखकर मैंने ये सोचा कि अब तो ट्रेन पकड़ना संभव नहीं है और मैं लाइन से निकल गया।

अब संयोग देखिये जैसे ही मैं लाइन से निकला तो देखा कि एक लड़का जिसने जम्मू से कटरा जाने के लिए 20 टिकट ले रखा था वो अपनी टिकटें कैंसिल करवाने के लिए आया क्योकि उसके ग्रुप के कुछ सदस्य अभी तक नहीं आये थे। वो काउंटर पर गया तो क्लर्क ने उसे कहा कि टिकट कैंसिल का चार्ज ही प्रति टिकट 20 रुपए है और तुम्हारा तो टिकट ही 20 रूपये का है तो कैंसिल करके क्या मिलेगा तुमको यदि कोई है जो तुम्हारा टिकट ले रहा हो तो उसे दे दो। तभी मैंने उसे लड़के को कहा कि 3 टिकट मुझे दे दो। उसने टिकेट देखा और कहा कि सब टिकट 4 लोगों के हिसाब से है तो मैं उसे कहा कि 4 ही दे दो। उसने मुझे 4 टिकट दे दिया। मैंने उसे 100 रुपए का नोट दिया पर उसके पास पास 20 रुपए वापस करने के लिए नहीं थे। मैंने भी 20 रुपए का मोह नहीं किया क्योकि यदि ट्रेन छूट गयी तो 3 आदमी का बस का किराया 200 रुपए से ज्यादा हो जायेगा। मैं जल्दी से प्लेटफार्म पर गया और सामान उठाया और जल्दी से ट्रेन में सवार हुआ। ट्रेन में भीड़ तो बहुत थी फिर भी किसी तरह माँ और पिताजी को बैठेने की जगह मिल गयी। इस वक़्त समय 7 :45 हुआ था। 

श्री माता वैष्णो देवी कटरा रेलवे स्टेशन

करीब 2 मिनट में ट्रेन चल पड़ी। जम्मू से कटरा की दूरी ट्रेन से 75 किलोमीटर है। इस पूरे रास्ते में ट्रेन कहीं भी समतल भूमि पर नहीं चलती। पूरे रास्ते में सुरंग और पुलों की भरमार है। ट्रेन से सफर करते हुए ऐसा नज़ारा मैं पहली बार देख रहा था। जम्मू से कटरा का रेल रूट और दिल्ली मेट्रो में यहाँ कोई अंतर नहीं था। मेट्रो भी कभी सुरंग और कभी पुल से गुजरती है और यहाँ ट्रेन भी वैसे ही चल रही है। अगर कुछ अंतर है तो ट्रेन के बाहर दिखने वाले नज़ारे का। जब ट्रेन सुरंग के अंदर होती तो ऐसा मेट्रो और इस ट्रेन में कोई अंतर नहीं होता क्योकि सुरंग के अंदर मेट्रो में भी अँधेरा और यहाँ भी अँधेरा। पर जब ट्रेन पल के ऊपर से गुजरती तो अलग ही नज़ारा होता है। मेट्रो जब पुल के ऊपर से गुजरती है तो दोनों तरफ बिल्डिंग दिखते हैं पर यहाँ ट्रेन जब पुल के ऊपर से गुजरती है तो दोनों तरफ पहाड़, नदी , जंगल और पेड़-पौधे दीखते हैं। कहीं कहीं तो ट्रेन बादलों के बीच चलती है तो उस वक़्त कुछ दिखाई नहीं देता।

जम्मू से कटरा का रास्ता


करीब 2 घंटे के सफर के बाद करीब 10 बजे हम कटरा रेलवे स्टेशन पहुँच गए। हम स्टेशन कैंपस में पहली मंज़िल पर गेस्ट हाउस में गए। रिसेप्शन पर गए और बुकिंग रिसीप्ट दिखाई तो उन्होंने मुझे रूम दे दिया। हम लोग नहा धोकर तैयार हुए और नाश्ता किया। सब कुछ करते करते करीब 12 बज चुके थे। अब हम लोग रेलवे स्टेशन में ही बने यात्रा रजिस्ट्रेशन काउंटर पर जाकर यात्रा पर्ची बनवाई। यात्रा पर्ची बनवाने के बाद मैं रिसेप्शन पर गया तो उन्होंने ड्राइवर को बुलाया जो बाणगंगा चेकपोस्ट तक पहुंचा दिया। वहां उतरने के बाद उसने कहा कि जब आप वापस आओ तो फ़ोन कर दीजिये और इसी जगह पर रहिएगा तो हम पहचान लेंगे।

बाण गंगा चेकपोस्ट 

जब हम यहाँ पहँचे यहाँ करीब 100 लोगों की लाइन लगी हुई थी। एक लाइन में महिला, एक लाइन में वो पुरुष जिनके पास सामान है और एक लाइन में वो पुरुष जीने पास कोई सामान नहीं है। यहाँ प्रत्येक यात्री का सामान चेक किया जाता है। यहाँ से आगे गुटखा, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट आदि जैसी कोई सामग्री ले जाना पूरी तरह प्रतिबंधित है। सामान चेक करने के बाद यात्री एक्सेस कार्ड जो रजिस्ट्रेशन के समय हर यात्री को दिया जाता उसे चेक किया जाता है। बिना इस कार्ड के कोई भी यात्री आगे नहीं जा सकता। इस कार्ड को आपको पुरे रास्ते संभाल कर रखना होता है। यदि ये कार्ड आपने कहीं गुम कर दिया तो आपको वापस आना पड़ेगा बिना इस कार्ड के आप दर्शन नहीं कर सकते। मेरा भी नंबर आया मैंने अपना सामान चेक कराया और यात्री कार्ड चेक करवाने के बाद हम तीनों अंदर आ गए। इस समय घडी में 3:30 बज चुके थे। यहाँ से चढ़ाई आरम्भ होती है। यहीं पर घोड़े वाले खड़े होते हैं। दोनों तरफ दुकानें भी बहुत सारी हैं। जो लोग पैदल चढ़ाई नहीं कर सकते वो घोड़े से जाते हैं। घोड़े वाला हर आदमी के 600 -700 रूपये लेता है। ये कम ज्यादा भी हो सकता है। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो न तो घोड़े पर जा सकते हैं और न ही पैदल जा सकते हैं उन लोगो के लिए पालकी भी यहाँ मिल जाती है, जिसे चार लोग कंधे पर उठा कर ले जाते हैं। पालकी के किराया थोड़ा ज्यादा है पर जो दे सकते हैं उनके लिए ज्यादा या काम का कोई अर्थ नहीं रह जाता। ये लोग पार्टी आदमी लगभग 2500 से 3000 रूपये लेते हैं।

बाण गंगा चेकपोस्ट 


हम थोड़ा ही आगे बढे तो कुछ लोगों ने कहा कि डण्डा (लाठी) ले लीजिये तो चढ़ाई में आसान हो जाएगी। यहाँ से आगे मेला जैसा उत्सव था। कुछ लोग आ रहे थे और कुछ लोग जा रहे थे। कुछ घोड़े पर, कुछ पालकी पर कुछ पैदल। हमने भी 3 डंडे ले लिया। कुछ आगे बढ़ने पर बाणगंगा नदी आती है। जहाँ कुछ लोग स्नान कर रहे थे। हम लोगों ने भी हाथ पैर धोया और फिर चल दिए। मन एकदम प्रफुल्लित था। हम बहुत ही उत्साहित थे और आगे बढ़ रहे थे। मौसम भी बहुत अच्छा था। वातावरण में न तो ज्यादा गर्मी थी न ठण्ड बिलकुल सुहाना मौसम था। आसमान में कभी कभी कुछ बादल आ रहे थे और आकर चले जा रहे थे। बादलों को देखकर ये लग रहा था कि अभी नहीं तो रास्ते भर में कहीं न कहीं ये बरसेंगे जरूर।

बादलों से ढंक पहाड़ 

2.5 किलोमीटर की चढ़ाई तक ही इतनी मात्रा में दुकानें है। इसके बाद कुछ दूर के बाद वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा संचालित दुकानें मिलती है। बोर्ड पर तो बहुत चीजों के नाम लिख रहे हैं पर वहां चाय के आलावा और कुछ मिलता नहीं है। जहाँ सब कुछ मिल सके ऐसी दूकान अर्धकुवांरी में मिलती है या फिर यदि आप नए वाले रास्ते से जाएँ तो सीधे वैष्णो देवी के भवन पर ही मिलेगी। 

रास्ते को दर्शाता बोर्ड 

धीरे धीरे चलते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। फिर एक चेक पोस्ट आया यहाँ भी सबको चेक किया जा रहा था। चलते चलते हम वहाँ पहुच गए जहाँ से ये यात्रा दो रास्तों में बंट जाती है। एक रास्ता जो हिमकोटी होकर जाती है वो 5.5 किलोमीटर है। दूसरा रास्ता जो अर्धकुवांरी होकर जाती है वो 6.5 किलोमीटर है। हम थोड़ी देर यहाँ रुके। एक बार हम पहले भी वैष्णो देवी आ चुके थे और उस बार अधकुवांरी के रास्ते से ही गए थे इसलिए इस बार भी अधकुवांरी के रास्ते से ही जाने का फैसला किया। 10 मिनट में हम अधकुवांरी पहुँच गए। अधकुवांरी एक गुफा मंदिर है। यहाँ 25 मीटर लंबी गुफा में लेटकर रेंगते हुए पर करनी होती है और उसका नंबर भी यदि आप आज लगते है तो 2 दिन बाद आएगा। हम कुछ देर यहाँ रुके और आगे की यात्रा के लिए चल पड़े।

रास्ते में चेकपोस्ट


यहाँ से कुछ दूर ही गए थे तेज़ बरसात शुरू हो गयी। करीब 20 मिनट तक खूब तेज़ बरसात हुई। वर्षा बंद होने पर हम फिर बढे। यहाँ से आगे और ज्यादा खड़ी चढ़ाई थी किसी तरह चलते बैठते हम शाम 5 बजे सांझीछत पहुँच गए। वैष्णो देवी भवन अभी थी करीब 2.5 किलोमीटर दूर था। हम लोगो को खूब तेज़ भूख लग रही थी। हम लोग यहाँ घर से ही कुछ फल और कुछ पकवान साथ में रख लिया था उसे खाया और आगे चले। यहाँ से ही एक रास्ता भैरवनाथ के मंदिर जाती है। पर यहाँ से जाते कोई नहीं हैं वापसी में जो भैरवनाथ जाने वाले लोग उतरते समय इस रास्ते से आते हैं। यहाँ से आगे भवन तक का रास्ता प्लेन (समतल) है। वैष्णो देवी भवन से थोड़ा पहले यात्री एक्सेस कार्ड पर फिर चेक किया जाता है। हम लोगों ने अपना कार्ड चेक करवाया। वहां बैठे स्टाफ ने उस पर एक स्टाम्प लगाया और कार्ड मुझे दे दिया। यहाँ कार्ड चेक करवाने के लिए आपके ग्रुप का कोई एक आदमी ही सारा कार्ड चेक करवा सकता है सबको लाइन में खड़े होने की आवश्यकता नहीं है।

कुछ ही देर में हम वैष्णो देवी भवन पहुँच गए। वहां प्रसाद की सरकारी दुकाने हैं और कुछ प्राइवेट दुकानें हैं। वही प्रसाद सरकारी दुकान में 40 रूपये की मिलती है और प्राइवेट दुकानों में 100 रूपये की। प्राइवेट दुकान से प्रसाद खरीदने पर वो आपका सारा सामान, जूते , चप्पल आदि रख लेते हैं। सरकारी दुकान से प्रसाद लेने पर आपको श्राइन बोर्ड द्वारा बने लॉकर रूम में सामान रखना पड़ता है जहाँ लंबी लाइन लगी होती है। हमने प्राइवेट दुकान से प्रसाद खरीदा और अपना सारा सामान दुकान में ही रख दिया।

प्रसाद की सरकारी दुकानें


यहाँ  पहुंचकर प्रसाद लेते हुए करीब 6 :30 बज चुके थे और 5:30 बजे मंदिर में जाने के प्रवेश बंद कर दिया जाता है क्योंकि ये समय मंदिर के साफ-सफाई का होता है उसके बाद 6 बजे से 8 बजे तक आरती का समय होता है।  अब 8 बजे तक हमें ऐसे ही बैठना होगा। प्रवेश बंद हुए एक घंटा हो चुका था। दर्शन की लाइन लंबी हो गयी थी।  जहाँ तक लाइन लगी थी हम भी वहां जाकर लाइन  लग गए।  8 बजे आरती समाप्त होने के बाद फिर से दर्शन के लाइन प्रवेश शुरू हो गया।  धीरे  धीरे लोग जाने लगे। करीब 20 मिनट में हम भी प्रवेश द्वार पर पहुँच गए।  वहाँ खड़े पुलिस वाले ने अंदर जाने से पहले हमसे रजिस्ट्रेशन कार्ड ले लिया। अब हम दर्शन की लाइन में लगे में लगे थे। हम लोग आगे बढे। एक जगह पर प्रसाद में मिला नारियल जमा करना पड़ता है उसके बदले वो एक टोकन देते हैं दर्शन के बाद वापसी के रस्ते में एक जगह नारियल वापस दे दिया जाता है। नारियल जमा करने के बाद हम लोग दर्शन के लिए गए। मन में एक उत्साह, एक उमंग की लहर दौड़ रही थी। अब तक ठण्ड बहुत हो चुकी थी।  अब हम एक चबूतरे पर पहुँच गए थे। यहाँ से सारे लोग वैष्णो देवी के दर्शन के लिए गुफा में जा रहे थे। हम भी गुफा में गया गुफा करीब 50 मीटर लंबी है। गुफा की ऊंचाई बस इतनी ही है कि हम खड़े थे। गुफा के अंदर खड़े होकर हाथ ऊपर नहीं उठा सकते थे।

गुफा में जाने का रास्ता

करीब 20 मिनट हम लोग भी उस पवित्र पिंडी रुपी भगवती देवी के समक्ष खड़े थे। पिंडी के समक्ष जाने पर मुश्किल से 2 सेकंड का टाइम मिलता है। हम लोगों ने सिर झुकाया और उस पवित्र पिंडी रूप में विराजमान देवी के दर्शन किये। उसके बाद वहां खड़े लोगो ने कहा कि बस अब दुसरे को भी आने दीजिये। अब हम वहां से गुफा के बने निकास द्वार से बाहर निकले। कुछ देर वह चबूतरे पर रहे। अब हम लोग सीढ़ियां उतरकर नीचे आ गए। नीचे एक काउंटर पर कुछ बहुत छोटे छोटे पैकेट प्रसाद के रूप में वितरित किया जा रहा था। उस प्रसाद में मिश्री के कुछ दाने और एक छोटा सा कॉइन (सिक्का) था। उस सिक्के पर गुफा में पिंडी रूप में विराजमान भगवती की प्रतिमा अंकित थी। ये प्रसाद केवल उन लोगो को दिया जाता है जो वहां दर्शन के लिए जाते हैं। उसके बाद और आगे एक काउंटर पर नारियल दिया जा रहा था। हमने अपना टोकन दिया और नारियल लिया। अब आप ये मत सोचियेगा कि ये वही नारियल होगा जो आपने जमा किया था। जहाँ नारियल जमा किया जाता वहाँ से इसे यहाँ लाया जाता है। और यहाँ वापस दिया जाता है। अब हम आगे आगे और जिस दुकान से प्रसाद लिया था वहां से अपना सामान लिया। घड़े में देखा तो 9 बज चुके थे। अब हमें यहाँ से भैरवनाथ के लिए जाना था।

भैरो की कथा दर्शाता हुआ पट्टिका

जिस रास्ते से हम आये थे उसी रास्ते से जाना था। थोड़ा आगे गए तो बायीं तरफ भैरवनाथ की चढ़ाई थी। हम उस रास्ते पर हो लिए। करीब 1 घंटे में हम भैरव नाथ पहुँच गए। 10 बज चुके थे। वहां हमने भैरवनाथ के दर्शन किये। दर्शन करने के बाद एक जगह ऐसे ही खाली पड़ी कुर्सियों पर कुछ देर आराम किये और फिर चल दिए।सांझीछत यहाँ से 2 किलोमीटर नीचे था। यहाँ से नीचे उतरते समय पिताजी आगे निकल गए।  मुझे ये लगने लगा कि पता नहीं पिताजी कहाँ मिलेंगे।  करीब 1 किलोमीटर चलने के बाद एक चाय की दुकान है पिताजी हमें वहीं मिल गए।  वो घबराये हुए थे।  कहने लगे कि मुझे कुछ पता ही नहीं लग रहा था कि तुम लोग आगे गए या पीछे ही रह गए। यहाँ पर हम लोग पर चाय पिए।  अब हम नीचे फिर से उतरने लगे।

धीरे धीरे चलते हुए, कभी बैठते कभी चलते हम 1  बजे हम अधकुवांरी आ गए।  यहाँ कुछ देर आराम करने के बाद हम फिर धीरे धीरे आगे बढे। धीरे धीरे चलते हुए, कभी बैठते कभी चलते हम 4 बजे हम बाणगंगा आ गए। यहाँ आकर गेस्ट हाउस में गाड़ी के लिए फ़ोन करना था। रात होने के कारण कोई पीसीओ नहीं मिला तो सोचा की जितने देर में पीसीओ खोजकर फ़ोन करेगे और गाड़ी आएगी उतने देर में हम कोई ऑटो करके चले जाएंगे। कई ऑटो को पूछने के बाद एक ऑटो 100 रुपए में जाने को तैयार हुआ। हम लोग उस ऑटो से रेलवे स्टेशन (गेस्ट हाउस) आ गए।
कटरा रेलवे स्टेशन

तीसरा दिन और चौथा दिन
गेस्ट हाउस पहुँच कर हम लोग अपने रूम में गए और वहाँ जाकर सो गए। दिन में थोड़ा बहुत शॉपिंग किया। हमारी टिकट श्री शक्ति एक्सप्रेस से था, जो कटरा से रात में 10 :55 पर खुलती है।  10 बजे गेस्ट हाउस से निकलकर हम प्लेटफार्म पर आ गए।  उस समय ये उस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाली एकलौती ट्रेन थी।  जब हम प्लेटफार्म पर आये तो देखा कि ट्रेन पहले से लगी हुई थी।  हम लोग अपनी सीट पर गए और कम्बल ओढ़कर सो गए। थकान इतनी थी कि  कब ट्रेन खुली कुछ पता नहीं। 8 बजे जब हमारी नींद खुली तो हम अम्बाला पहुँच चुके थे। 3  घंटे बाद करीब 11 बजे हम नई दिल्ली स्टेशन पहुँच गए।  ट्रेन से उतरे स्टेशन से बाहर आकर ऑटो बुक किया और अपने अपने घर आ गए।

वैष्णो देवी भवन का बर्फ से ढंका हुआ, ऐसा दृश्य कभी कभी ही देखने को मिलता है


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1 comment:

  1. आपने एक विषय को इतने सरलता से समझाया है कि मैं अब इसे आसानी से समझ सकता हूँ। धन्यवाद! मेरा यह लेख भी पढ़ें वैष्णो देवी के आस पास घूमने की जगह

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