Thursday, February 16, 2017

वैष्णो देवी यात्रा (Journey of Vaishno Devi)-2015


वैष्णो देवी यात्रा (2015)


दो बार वैष्णो देवी जाने के बाद फिर से मेरा मन एक बार और वहां जाने का करने लगा। पिछले वर्ष वहां मैं नवरात्रों में गया था इलसिए इस बार भी मैंने नवरात्रों में ही जाने का प्लान किया। अपने ऑफिस और जान पहचान के लोगों से जाने के बारे में पूछा  लेकिन कोई भी वहां जाने के लिए तैयार नहीं हुआ।  अंत में मैंने अकेले ही जाने का मन बनाया।  स्कूल में छुट्टियां नहीं होने के करना पत्नी और बच्चे भी साथ नहीं जा सकते थे। उस समय दिल्ली से कटरा जाने वाली एकलौती ट्रेन श्री शक्ति एक्सप्रेस ही थी जो कटरा तक जाती थी पर उसकी टाइमिंग नई दिल्ली स्टेशन से शाम को 5 :30 पर थी इसलिए उस ट्रेन की टिकट नहीं लिया क्योकि उस ट्रेन का टिकट लेने पर ऑफिस से हाफ डे की छुट्टी लेनी पड़ती इसलिए मैंने दिल्ली से जम्मू तक का टिकट उत्तर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से लिया। जम्मू से कटरा तक या तो बस या पैसेंजर ट्रेन से जाने का प्लान किया। आने के लिए मैं श्री शक्ति एक्सप्रेस टिकट लिया क्योकि वो रात में 11 बजे कटरा से चलती है। कटरा में ठहरने के लिए आई आर सी टी सी का ही गेस्ट हाउस बुक किया जो कटरा रेलवे स्टेशन की पहली मंज़िल पर स्थित है।

एक संयोग देखिये।  जब मैंने जून में टिकट बुक किया था उस समय उत्तर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस कटरा तक नहीं जाती थी।  मेरा टिकट 15 अक्टूबर क था लेकिन सितम्बर के अंतिम सप्ताह से ही ये ट्रेन कटरा तक जाने लगी। ये जानकर कि अब ट्रेन सीधे कटरा तक जाएगी तो मैंने सोचा कि मैं एक दूसरी टिकट दिल्ली से कटरा तक का ले लूँ और पहले वाला टिकट कैंसिल कर दूं।  पर जब टिकट की स्थिति देखकर निराशा हाथ लगी क्योंकि उस समय ट्रेन में लंबी लंबी वेटिंग लिस्ट चल रही थी जो कन्फर्म होने की कोई उम्मीद नहीं थी। खैर जो भी हो मेरा टिकट तो जम्मू  तक का था ही। जम्मू में यदि सम्भव हुआ तो पैसेंजर ट्रेन से या फिर बस से क्योकि इस बार अकेले थे इसलिए कुछ ज्यादा सोचने की बात थी नहीं।

वैष्णो देवी भवन 

संक्षिप्त ब्यौरा 
  • 15 अक्टूबर 2015 (गुरुवार): दिल्ली से कटरा
  • 16 अक्टूबर 2015 (शुक्रवार):  कटरा में थोड़ा आराम और दोपहर को कटरा से वैष्णो दरबार और भैरोनाथ और भैरोनाथ से वापस कटरा
  • 17 अक्टूबर 2015 (शनिवार): दिन में आराम और  मार्केटिंग और रात्रि में दिल्ली के लिए प्रस्थान
  • 18 अक्टूबर 2015 (रविवार): 11 बजे दिल्ली पहुँच कर यात्रा समाप्त 

कटरा रेलवे स्टेशन 


अब कुछ बातें जम्मू, कटरा और वैष्णो देवी के बारे में



वैष्णो देवी की यात्रा 
कहते हैं पहाड़ों वाली माता वैष्णो देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। ऐसा ही सच्चा दरबार है- माता वैष्णो देवी का।
माता का बुलावा आने पर भक्त किसी न किसी बहाने से उसके दरबार पहुँच जाता है। हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित माता वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं।

मान्यता 
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और सभी गाँववालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया। पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने भैरवनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया गया था। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए माँ वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी हनुमान को बुलाकर कहा कि भैरवनाथ के साथ खेलों मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी। इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेला। आज इस पवित्र गुफा को 'अर्धक्वाँरी' के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वाँरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। त्रिकुट पर वैष्णो मां ने भैरवनाथ का संहार किया तथा उसके क्षमा मांगने पर उसे अपने से उंचा स्थान दिया कहा कि जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी। अत: श्रदालु आज भी भैरवनाथ के दर्शन को अवशय जाते हैं।


भैरो नाथ मंदिर 
जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान आज पूरी दुनिया में 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (बाएँ) और माँ लक्ष्मी पिंडी (मध्य) के रूप में गुफा में विराजित है, जिनकी एक झलक पाने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इन तीनों के सम्मि‍लित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को 'भैरोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी। माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।


कैसे पहुंचे 
माँ वैष्णो देवी की यात्रा का पहला पड़ाव जम्मू होता है। जम्मू तक आप बस, टैक्सी, ट्रेन या फिर हवाई जहाज से पहुँच सकते हैं। जम्मू ब्राड गेज लाइन द्वारा जुड़ा है। गर्मियों में वैष्णो देवी जाने वाले यात्रियों की संख्या में अचानक वृद्धि हो जाती है इसलिए रेलवे द्वारा प्रतिवर्ष यात्रियों की सुविधा के लिए दिल्ली से जम्मू के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जाती हैं। अब तो ट्रेन सीधे आधार शिविर कटरा तक जाने लगी है। 
जम्मू भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 1 ए पर स्थित है। अत: यदि आप बस या टैक्सी से भी जम्मू पहुँचना चाहते हैं तो भी आपको कोई परेशानी नहीं होगी। उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए आपको आसानी से बस व टैक्सी मिल सकती है।
वैष्णो देवी के भवन तक की यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है, जो कि जम्मू जिले का एक गाँव है। जम्मू से कटरा की दूरी लगभग 50 किमी है। जम्मू से बस या टैक्सी द्वारा कटरा पहुँचा जा सकता है। जम्मू रेलवे स्टेशन से कटरा के लिए बस सेवा भी उपलब्ध है जिससे 2 घंटे में आसानी से कटरा पहुँचा जा सकता है।

वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत 
माँ वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है। अधिकांश यात्री यहाँ विश्राम करके अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं। माँ के दर्शन के लिए रातभर यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है। कटरा से ही माता के दर्शन के लिए नि:शुल्क 'यात्रा पर्ची' मिलती है।
यह पर्ची लेने के बाद ही आप कटरा से माँ वैष्णो के दरबार तक की चढ़ाई की शुरुआत कर सकते हैं। यह पर्ची लेने के तीन घंटे बाद आपको चढ़ाई के पहले 'बाण गंगा' चैक पॉइंट पर इंट्री करानी पड़ती है और वहाँ सामान की चैकिंग कराने के बाद ही आप चढ़ाई प्रारंभ कर सकते हैं। यदि आप यात्रा पर्ची लेने के 6 घंटे तक चैक पोस्ट पर इंट्री नहीं कराते हैं तो आपकी यात्रा पर्ची रद्द हो जाती है। अत: यात्रा प्रारंभ करते वक्त ही यात्रा पर्ची लेना सुविधाजनक होता है।
पूरी यात्रा में स्थान-स्थान पर जलपान व भोजन की व्यवस्था है। इस कठिन चढ़ाई में आप थोड़ा विश्राम कर चाय, कॉफी पीकर फिर से उसी जोश से अपनी यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। कटरा, भवन व भवन तक की चढ़ाई के अनेक स्थानों पर 'क्लॉक रूम' की सुविधा भी उपलब्ध है, जिनमें निर्धारित शुल्क पर अपना सामान रखकर यात्री आसानी से चढ़ाई कर सकते हैं।
कटरा समुद्रतल से 2500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यही वह अंतिम स्थान है जहाँ तक आधुनिकतम परिवहन के साधनों (हेलिकॉप्टर को छोड़कर) से आप पहुँच सकते हैं। कटरा से 14 किमी की खड़ी चढ़ाई पर भवन (माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा) है। भवन से 3 किमी दूर 'भैरवनाथ का मंदिर' है। भवन से भैरवनाथ मंदिर की चढ़ाई हेतु किराए पर पिट्ठू, पालकी व घोड़े की सुविधा भी उपलब्ध है।
कम समय में माँ के दर्शन के इच्छुक यात्री हेलिकॉप्टर सुविधा का लाभ भी उठा सकते हैं। लगभग 700 से 1000 रुपए खर्च कर दर्शनार्थी कटरा से 'साँझीछत' (भैरवनाथ मंदिर से कुछ किमी की दूरी पर) तक हेलिकॉप्टर से पहुँच सकते हैं।
आजकल अर्धक्वाँरी से भवन तक की चढ़ाई के लिए बैटरी कार भी शुरू की गई है, जिसमें लगभग 4 से 5 यात्री एक साथ बैठ सकते हैं। माता की गुफा के दर्शन हेतु कुछ भक्त पैदल चढ़ाई करते हैं और कुछ इस कठिन चढ़ाई को आसान बनाने के लिए पालकी, घोड़े या पिट्ठू किराए पर लेते हैं।
छोटे बच्चों को चढ़ाई पर उठाने के लिए आप किराए पर स्थानीय लोगों को बुक कर सकते हैं, जो निर्धारित शुल्क पर आपके बच्चों को पीठ पर बैठाकर चढ़ाई करते हैं। एक व्यक्ति के लिए कटरा से भवन (माँ वैष्णो देवी की पवित्र गुफा) तक की चढ़ाई का पालकी, पिट्ठू या घोड़े का किराया 250 से 1000 रुपए तक होता है। इसके अलावा छोटे बच्चों को साथ बैठाने या ओवरवेट व्यक्ति को बैठाने का आपको अतिरिक्त शुल्क देना पड़ेगा।
ठहरने का स्थान 
माता के भवन में पहुँचने वाले यात्रियों के लिए जम्मू, कटरा, भवन के आसपास आदि स्थानों पर माँ वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की कई धर्मशालाएँ व होटले हैं, जिनमें विश्राम करके आप अपनी यात्रा की थकान को मिटा सकते हैं, जिनकी पूर्व बुकिंग कराके आप परेशानियों से बच सकते हैं। आप चाहें तो प्रायवेट होटलों में भी रुक सकते हैं।
नवरात्रि में लगता है मेला : माँ वैष्णो देवी के दरबार में नवरात्रि के नौ दिनों में प्रतिदिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। कई बार तो श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या से ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती है कि पर्ची काउंटर से यात्रा पर्ची देना बंद करनी पड़ती है। इस वर्ष भी नवरात्रि में हर रोज लगभग 100000 से अधिक श्रद्धालु माँ वैष्णो के दर्शन के लिए कटरा आते हैं।




कुछ जरूरी सावधानियां
  • वैसे तो माँ वैष्णो देवी के दर्शनार्थ वर्षभर श्रद्धालु जाते हैं परंतु यहाँ जाने का बेहतर मौसम गर्मी है। 
  • सर्दियों में भवन का न्यूनतम तापमान -3 से -4 डिग्री तक चला जाता है और इस मौसम से चट्टानों के खिसकने का खतरा भी रहता है। अत: इस मौसम में यात्रा करने से बचें। 
  • ब्लड प्रेशर के मरीज चढ़ाई के लिए सीढि़यों का उपयोग ‍न करें। 
  • भवन ऊँचाई पर स्थित होने से यहाँ तक की चढ़ाई में आपको उलटी व जी मचलाने संबंधी परेशानियाँ हो सकती हैं, जिनसे बचने के लिए अपने साथ आवश्यक दवाइयाँ जरूर रखें। 
  • चढ़ाई के वक्त जहाँ तक हो सके, कम से कम सामान अपने साथ ले जाएँ ताकि चढ़ाई में आपको कोई परेशानी न हो।
  • पैदल चढ़ाई करने में छड़ी आपके लिए बेहद मददगार सिद्ध होगी।
कटरा रेलवे स्टेशन का प्लेटफार्म 



अब यात्रा के बारे में


पहला दिन

15 अक्टूबर को नयी दिल्ली से रात में 8 : 50 बजे हमारी टिकट थी इसलिए इस दिन मैं ऑफिस से थोड़ा जल्दी निकला और घर आया। घर आने के बाद जाने की तैयारी में जो कुछ कमी रह गयी थी उसे पूरा किया। मैं 7:30 बजे घर से निकल गया। इससे पहले मैं 2 बार वहां जा चुका था। इस बार मन में पहले की तरह उत्साह नहीं था। पहली बार हम पत्नी और बेटे के साथ गए थे और दूसरी बार मम्मी-पापा के साथ। कहीं बाहर जाने का आनंद तभी आता है जब साथ में परिवार हो। घर के पास से ही पैसेंजर ट्रेन नयी दिल्ली स्टेशन जाती है जो 20 मिनट में नई दिल्ली पहुंच देती है। मैं उसी ट्रेन से नई दिल्ली आ गया। 8:20 बजे हम नई दिल्ली के उस प्लेटफार्म जिस पर से संपर्क क्रांति जाने वाली थी। 10 मिनट में ही ट्रेन प्लेटफार्म पर लगा दी गयी। हम अपने सीट पर बैठ गए। ठीक 8 :50 पर ट्रेन अपने गंतव्य की और चल पड़ी। ट्रेन में जितने लोग थे 100 में से 95 लोग वैष्णो देवी जाने वाले लोग ही थे। 

ट्रेन चलने के बाद मैं टीटीई के आने का  बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करने लगे क्योकि मेरे पास टिकट तो जम्मू तक ही था और मैं मन में यही सोच रहा था कि जब ट्रेन कटरा तक जाएगी ही तो जो एक्स्ट्रा पैसे लगेंगे देकर कटरा तक का टिकट बनवा लूंगा।  पर मेरा इंतज़ार तो बस इंतज़ार ही रह गया क्योकि टीटीई महोदय आये ही नहीं। 10 बज चुके थे पर अभी तक टीटीई का कोई अता-पता नहीं था। ट्रेन अपने गति से सरपट चली जा रही थी। दूर दूर तक अँधेरा ही अँधेरा था।  ट्रेन की खिड़की से जो रौशनी बाहर जा रही थी उसे देखकर ऐसा लग रहा था की कोई जुगनू उड़ती हुई चली जा रही है। ट्रेन की आवाज़ के अलावा और कोई आवाज़ नहीं थी।  रात के संन्नाटे में ट्रेन की आवाज़ कुछ अलग ही लगती है। कुछ ही देर में ट्रेन की गति कम होने लगी तो मैं समझ गया की पानीपत स्टेशन बस आने ही वाली है और देखते देखते ट्रेन पानीपत पहुँच चुकी थी। स्टेशन से ज्यादा रौशनी बाहर थी और हो भी क्यों नहीं क्योंकि पानीपत एक औद्योगिक नगरी जो है। 

मैं टीटीई का इंतज़ार कर रहा था पर उनको न आना था और ना वो आये क्योंकि ये भारतीय रेल है।  कभी तो 4 टीटीई एक साथ आएंगे और कभी आप बस इंतज़ार करते रहे कोई आएगा ही नहीं। पानीपत में ट्रेन मुश्किल से 3 से 4 मिनट रुकी और उसके बाद अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी। ट्रेन के चलते ही हम सोने की तैयारी में लग गए।  हम अपने घर में वैसे 10 बजे से पहले ही सो जाते हैं और आज तो 10 से ज्यादा बज रहे थे।  बर्थ पर लेटते ही नींद आ गयी। पानीपत से चलने के बाद ही हम सो चुके थे। कब अम्बाला, कब लुधियाना, कब जालंधर हमें कुछ पता चला। ट्रेन जब पठानकोट स्टेशन पर खड़ी थी तो हमारी नींद नींद खुली तो खिड़की से बाहर देखा तो घुप्प अँधेरा था।  यहाँ से जम्मू की तरफ जाने पर मोबाइल का नेटवर्क बंद हो जाता है तो मैंने सोचा कि क्यों न एक बार घर बात कर लिया जाये। फ़ोन मिलाया तो तो ठीक से रिंग बजी भी नहीं की पत्नी ने फ़ोन रिसीव कर लिया था। पत्नी से बात करने के बाद बेटे से थोड़ा बात किया और उसके बाद सो गया। यहाँ अच्छी खासी ठण्ड लगने लगी थी। इसके बाद ट्रेन कब पंजाब की सीमा को पार करके जम्मू के सीमा में प्रवेश कर गयी कुछ पता नहीं चला।


वाण गंगा चेकपोस्ट 


दूसरा दिन और तीसरा दिन
जब नींद खुली तो ट्रेन जम्मू तवी स्टेशन के आउटर सिग्नल पर खड़ी थी।  दो तीन मिनट बाद ट्रेन वहां से चली और प्लेटफार्म पर पहुँच गयी। अधिकतर लोग जम्मू में ही उतर गए क्योकि सभी लोगों का टिकट यहीं तक का था।  जब टिकट बुकिंग हो रही थी तो ट्रेन उधमपुर तक ही जाती थी इसी कारण से सब ने जम्मू तक का ही टिकट लिया था। पुरे कोच में केवल मेरे अलावा 4 और लोग ही थे।  उन लोगों ने तत्काल का टिकट लिया था इसलिए उनकी टिकट कटरा तक की थी। जिस टी टी ई का इंतज़ार मैंने पूरे रास्ते किया वो यहाँ से ट्रेन के खुलते ही आ गया।  मुझसे टिकट माँगा तो मैंने उसे बताया कि मेरा टिकट जम्मू तक का ही था और मुझे कटरा जाना है पर रास्ते भर कोई भी टिकट चेक करने नहीं आया इसलिए मैं आगे का टिकट नहीं बनवा सका।  इस बात पर उसने कहा कि यदि आप यहाँ से कटरा तक का टिकट बनवाओगे तो 140 रुपए लगेंगे और वैसे आप 50 रुपए में बिना टिकट बनाए जा सकते हैं।  इसका सीधा से मतलब था कि 50  रुपए उसके पॉकेट में जाते।  मैंने 140 रुपए देकर टिकट बनवाया। ट्रेन उधमपुर और रामनगर होते हुए करीब 9 बजे कटरा पहुँच गयी। 

जम्मू से कटरा की दूरी ट्रेन से 75 किलोमीटर है। इस पूरे रास्ते में ट्रेन कहीं भी समतल भूमि पर नहीं चलती। पूरे रास्ते में सुरंग और पुलों की भरमार है। ट्रेन से सफर करते हुए ऐसा नज़ारा मैं पहली बार देख रहा था। जम्मू से कटरा का रेल रूट और दिल्ली मेट्रो में यहाँ कोई अंतर नहीं था। मेट्रो भी कभी सुरंग और कभी पुल से गुजरती है और यहाँ ट्रेन भी वैसे ही चल रही है। अगर कुछ अंतर है तो ट्रेन के बाहर दिखने वाले नज़ारे का। जब ट्रेन सुरंग के अंदर होती तो ऐसा मेट्रो और इस ट्रेन में कोई अंतर नहीं होता क्योकि सुरंग के अंदर मेट्रो में भी अँधेरा और यहाँ भी अँधेरा। पर जब ट्रेन पल के ऊपर से गुजरती तो अलग ही नज़ारा होता है। मेट्रो जब पुल के ऊपर से गुजरती है तो दोनों तरफ बिल्डिंग दिखते हैं पर यहाँ ट्रेन जब पुल के ऊपर से गुजरती है तो दोनों तरफ पहाड़, नदी , जंगल और पेड़-पौधे दीखते हैं। कहीं कहीं तो ट्रेन बादलों के बीच चलती है तो उस वक़्त कुछ दिखाई नहीं देता।

ट्रेन से उतरकर मैं सीधे पहली मंज़िल पर बने आई आई आर सी टी सी के गेस्ट हाउस में गया। यहाँ पहले से ही मेरा डारमेट्री बुक था। रिसेप्शन पर गए और बुकिंग रिसीप्ट दिखाई तो उन्होंने मुझे रूम दे दिया। यहाँ पहले हम कुछ आराम किया फिर नहा धोकर तैयार हुए और नाश्ता किया। सब कुछ करते करते करीब 12 बज चुके थे। अब हम रेलवे स्टेशन में ही बने यात्रा रजिस्ट्रेशन काउंटर पर जाकर यात्रा पर्ची बनवाई। यात्रा पर्ची बनवाने के बाद मैं रिसेप्शन पर गया तो उन्होंने ड्राइवर को बुलाया जो बाणगंगा चेकपोस्ट तक पहुंचा दिया। वहां उतरने के बाद उसने कहा कि जब आप वापस आओ तो फ़ोन कर दीजिये और इसी जगह पर रहिएगा तो हम पहचान लेंगे।

आई आर सी टी सी गेस्ट हाउस का आंतरिक दृश्य 


जब हम यहाँ पहँचे यहाँ करीब 100 लोगों की लाइन लगी हुई थी। एक लाइन में महिला, एक लाइन में वो पुरुष जिनके पास सामान है और एक लाइन में वो पुरुष जीने पास कोई सामान नहीं है। यहाँ प्रत्येक यात्री का सामान चेक किया जाता है। यहाँ से आगे गुटखा, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट आदि जैसी कोई सामग्री ले जाना पूरी तरह प्रतिबंधित है। सामान चेक करने के बाद यात्री एक्सेस कार्ड जो रजिस्ट्रेशन के समय हर यात्री को दिया जाता उसे चेक किया जाता है। बिना इस कार्ड के कोई भी यात्री आगे नहीं जा सकता। इस कार्ड को आपको पुरे रास्ते संभाल कर रखना होता है। यदि ये कार्ड आपने कहीं गुम कर दिया तो आपको वापस आना पड़ेगा बिना इस कार्ड के आप दर्शन नहीं कर सकते। मेरा भी नंबर आया मैंने अपना सामान चेक कराया और यात्री कार्ड चेक करवाने के बाद हम अंदर आ गए। 

वैसे तो पूरा कटरा क़स्बा ही भक्तिमय रहता है पर वाणगंगा चेकपोस्ट के बाद ये भक्तिमय माहौल  और ज्यादा भक्तिमय हो जाता है।  इस समय घडी में 12:30 बज चुके थे। यहाँ से चढ़ाई आरम्भ होती है। यहीं पर घोड़े वाले खड़े होते हैं। दोनों तरफ दुकानें भी बहुत सारी हैं। जो लोग पैदल चढ़ाई नहीं कर सकते वो घोड़े से जाते हैं। घोड़े वाला हर आदमी के 600 -700 रूपये लेता है। ये कम ज्यादा भी हो सकता है। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो न तो घोड़े पर जा सकते हैं और न ही पैदल जा सकते हैं उन लोगो के लिए पालकी भी यहाँ मिल जाती है, जिसे चार लोग कंधे पर उठा कर ले जाते हैं। पालकी के किराया थोड़ा ज्यादा है पर जो दे सकते हैं उनके लिए ज्यादा या काम का कोई अर्थ नहीं रह जाता। ये लोग पार्टी आदमी लगभग 2500 से 3000 रूपये लेते हैं।

जब मैं पहली बार आया था तो पत्नी और बेटा साथ  में थे।  दूसरी बार माँ और पिताजी साथ में थे।  इस बार मैं अकेला ही आया था।  वो आन्नद वो खुशियां इस बार नहीं थी।  न कोई बोलने वाला न कोई साथ चलने वाला। बस अकेले चले जा रहे थे।  

2.5 किलोमीटर की चढ़ाई तक ही इतनी मात्रा में दुकानें है। इसके बाद कुछ दूर के बाद वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा संचालित दुकानें मिलती है। बोर्ड पर तो बहुत चीजों के नाम लिख रहे हैं पर वहां चाय के आलावा और कुछ मिलता नहीं है। जहाँ सब कुछ मिल सके ऐसी दूकान अर्धकुवांरी में मिलती है या फिर यदि आप नए वाले रास्ते से जाएँ तो सीधे वैष्णो देवी के भवन पर ही मिलेगी। 




धीरे धीरे चलते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। फिर एक चेक पोस्ट आया यहाँ भी सबको चेक किया जा रहा था। चलते चलते हम वहाँ पहुच गए जहाँ से ये यात्रा दो रास्तों में बंट जाती है। एक रास्ता जो हिमकोटी होकर जाती है वो 5.5 किलोमीटर है। दूसरा रास्ता जो अर्धकुवांरी होकर जाती है वो 6.5 किलोमीटर है। हम थोड़ी देर यहाँ रुके। एक बार हम पहले भी वैष्णो देवी आ चुके थे और उस बार अधकुवांरी के रास्ते से ही गए थे इसलिए इस बार भी अधकुवांरी के रास्ते से ही जाने का फैसला किया। 10 मिनट में हम अधकुवांरी पहुँच गए। अधकुवांरी एक गुफा मंदिर है। यहाँ 25 मीटर लंबी गुफा में लेटकर रेंगते हुए पर करनी होती है और उसका नंबर भी यदि आप आज लगते है तो 2 दिन बाद आएगा। हम कुछ देर यहाँ रुके और आगे की यात्रा के लिए चल पड़े।

यहाँ से आगे और ज्यादा खड़ी चढ़ाई थी किसी तरह चलते बैठते हम शाम 6 बजे सांझीछत पहुँच गए। वैष्णो देवी भवन अभी थी करीब 2.5 किलोमीटर दूर था। यहाँ से ही एक रास्ता भैरवनाथ के मंदिर जाती है। पर यहाँ से जाते कोई नहीं हैं वापसी में जो भैरवनाथ जाने वाले लोग उतरते समय इस रास्ते से आते हैं। यहाँ से आगे भवन तक का रास्ता प्लेन (समतल) है। वैष्णो देवी भवन से थोड़ा पहले यात्री एक्सेस कार्ड पर फिर चेक किया जाता है। हमने अपना कार्ड चेक करवाया। वहां बैठे स्टाफ ने उस पर एक स्टाम्प लगाया और कार्ड मुझे दे दिया। यहाँ कार्ड चेक करवाने के लिए आपके ग्रुप का कोई एक आदमी ही सारा कार्ड चेक करवा सकता है सबको लाइन में खड़े होने की आवश्यकता नहीं है। 

जब हम गेस्ट हाउस से निकले थे तो ये सोचकर निकले थे कि इतना धीरे  जाएंगे कि भवन तक जाते जाते 10 बज जाये क्योकि इस समय भीड़ नहीं होती है।  पर अकेला आदमी कितना धीरे चलता कहीं बैठ भी  जाता तो बस एक दो मिनट में चल देता। सोचकर तो चले थे की 10 बजे तक पहुचना है पर 7 बजे ही मैं वैष्णो देवी भवन पहुँच गया।

मंदिर आरती के लिए बंद हो चूका था।  श्रद्धालुओं की करीब 1 किलोमीटर लंबी लाइन लगी हुई थी। मंदिर खुलने में अभी एक घंटे समय था।  भवन के  पास प्रसाद की सरकारी दुकाने हैं और कुछ प्राइवेट दुकानें हैं। वही प्रसाद सरकारी दुकान में 40 रूपये की मिलती है और प्राइवेट दुकानों में 100 रूपये की। प्राइवेट दुकान से प्रसाद खरीदने पर वो आपका सारा सामान, जूते , चप्पल आदि रख लेते हैं। सरकारी दुकान से प्रसाद लेने पर आपको श्राइन बोर्ड द्वारा बने लॉकर रूम में सामान रखना पड़ता है जहाँ लंबी लाइन लगी होती है। हमने प्राइवेट दुकान से प्रसाद खरीदा और अपना सारा सामान दुकान में ही रख दिया।

इससे पहले बार की दोनों यात्राओं में मैं प्राइवेट दुकान से प्रसाद ख़रीदा था।  पर सब मैंने ठान लिया था कि चाहे लॉकर में सामान रखने के लिए कितनी भी लंबी लाइन हो इस बार सामान लॉकर में रखकर सरकारी दुकान से ही प्रसाद लेना है। और वैसे भी जो चीज़ 40 रूपये में मिल रही हो  उसके लिए 150 से 200 रूपये चुकाना कोई अच्छी बात तो है नहीं।  लॉकर रूम के पास गया यहाँ भी लंबी लाइन थी।  मैं लाइन में बैठ गया।  8 बजे जब आरती के बाद दर्शनों के लिए फिर से मंदिर खुला तो लोग जो पहले अपना सामान रखे हुए थे दर्शन करके आने के बाद अपना सामान लॉकर से निकालने  लगे तो नए लोगों को लॉकर में सामान रखना संभव हुआ।  करीब 9 बजे मेरा नंबर आया।  वहाँ काउंटर पर बैठे स्टाफ ने मेरा नाम लिखने के बाद एक धागे में बंधी चाभी दी।  मैंने उसे पूछा कि लॉकर का नंबर किया है उसने कहा कि जो भी लॉकर खाली हो या आपके सामने यदि कोई लॉकर खाली करे तो उसमे सामान रख के ताला लगा कर चाभी को माला की तरह गले में पहन लीजियेगा और लॉकर का नंबर याद कर लीजियेगा नहीं वो जब आप अपना सामान लेने आएंगे तो लॉकर का  नंबर याद नहीं रहने पर उस समय आपको बहुत दिक्कत होगी क्योकि सारा लॉकर एक ही जैसा दीखता है और आपने किस लॉकर  में अपना सामान रखा है ये पता करना बहुत ही मुश्किल होगा।

लॉकर रूम चाभी लेकर मैं एक लॉकर में सामान रखा और उसके बाद प्रसाद लेने गया।  प्रसाद लेते हुए करीब 9 :30 बज चुके थे।  प्रसाद लेने के बाद मैं दर्शन के लिए लाइन में लगा लाइन  करीब 1 किलोमीटर लम्बी थी। करीब 1 घंटे लाइन में लगे रहने के बाद मैं प्रवेश द्वार पर पहुँच गए।  वहाँ खड़े पुलिस वाले ने अंदर जाने से पहले हमसे रजिस्ट्रेशन कार्ड ले लिया। अब हम दर्शन की लाइन में लगे में लगे थे। हम लोग आगे बढे। एक जगह पर प्रसाद में मिला नारियल जमा करना पड़ता है उसके बदले वो एक टोकन देते हैं दर्शन के बाद वापसी के रस्ते में एक जगह नारियल वापस दे दिया जाता है। नारियल जमा करने के बाद हम दर्शन के लिए गए। मन में एक उत्साह, एक उमंग की लहर दौड़ रही थी। अब तक ठण्ड बहुत हो चुकी थी।  अब हम एक चबूतरे पर पहुँच गए थे। यहाँ से सारे लोग वैष्णो देवी के दर्शन के लिए गुफा में जा रहे थे। हम भी गुफा में गया गुफा करीब 50 मीटर लंबी है। गुफा की ऊंचाई बस इतनी ही है कि हम खड़े थे। गुफा के अंदर खड़े होकर हाथ ऊपर नहीं उठा सकते थे।


करीब 20 मिनट हम लोग भी उस पवित्र पिंडी रुपी भगवती देवी के समक्ष खड़े थे। पिंडी के समक्ष जाने पर मुश्किल से 2 सेकंड का टाइम मिलता है। हम ने सिर झुकाया और उस पवित्र पिंडी रूप में विराजमान देवी के दर्शन किये। उसके बाद वहां खड़े लोगो ने कहा कि बस अब दुसरे को भी आने दीजिये। अब हम वहां से गुफा के बने निकास द्वार से बाहर निकले। कुछ देर वह चबूतरे पर रहे। अब हम सीढ़ियां उतरकर नीचे आ गए। नीचे एक काउंटर पर कुछ बहुत छोटे छोटे पैकेट प्रसाद के रूप में वितरित किया जा रहा था। उस प्रसाद में मिश्री के कुछ दाने और एक छोटा सा कॉइन (सिक्का) था। उस सिक्के पर गुफा में पिंडी रूप में विराजमान भगवती की प्रतिमा अंकित थी। ये प्रसाद केवल उन लोगो को दिया जाता है जो वहां दर्शन के लिए जाते हैं। उसके बाद और आगे एक काउंटर पर नारियल दिया जा रहा था। हमने अपना टोकन दिया और नारियल लिया। अब आप ये मत सोचियेगा कि ये वही नारियल होगा जो आपने जमा किया था। जहाँ नारियल जमा किया जाता वहाँ से इसे यहाँ लाया जाता है। और यहाँ वापस दिया जाता है। अब हम आगे आगे और जिस दुकान से प्रसाद लिया था वहां से अपना सामान लिया। घड़े में देखा तो 11 बज चुके थे। अब हमें यहाँ से भैरवनाथ के लिए जाना था।

जिस रास्ते से हम आये थे उसी रास्ते से जाना था। थोड़ा आगे गए तो बायीं तरफ भैरवनाथ की चढ़ाई थी। हम उस रास्ते पर हो लिए। करीब 1 घंटे में हम भैरव नाथ पहुँच गए। 12 बज चुके थे। वहां हमने भैरवनाथ के दर्शन किये। दर्शन करने के बाद एक जगह ऐसे ही खाली पड़ी कुर्सियों पर कुछ देर आराम किये और फिर चल दिए।सांझीछत यहाँ से 2 किलोमीटर नीचे था। हम नीचे फिर से उतरने लगे।

धीरे धीरे चलते हुए, कभी बैठते कभी चलते हम 2  बजे हम अधकुवांरी आ गए।  यहाँ कुछ देर आराम करने के बाद हम फिर धीरे धीरे आगे बढे। धीरे धीरे चलते हुए, कभी बैठते कभी चलते हम 6 बजे हम बाणगंगा आ गए।  यहाँ आकर गेस्ट हाउस में गाड़ी के लिए फ़ोन करना था। रात होने के कारण कोई पीसीओ नहीं मिल रहा था तो मैं वहीं सड़क किनारे खड़ा हो गया जहाँ गेस्ट हाउस की गाड़ी लोगों को पिक और ड्रॉप करती है।  करीब 10 मिनट बाद गेस्ट हाउस की गाड़ी कुछ लोगों को बाण गंगा ड्रॉप करने आयी।  मैं गाड़ी  में बैठ गया।  ड्राइवर ने मुझे रूम नंबर पूछा और फिर गाड़ी स्टार्ट किया और गेस्ट हाउस की तरफ चल पड़ा।  कुछ ही देर में हम गेस्ट हाउस पहुँच गए।


श्री शक्ति एक्सप्रेस कटरा से दिल्ली 



तीसरा दिन और चौथा दिन
गेस्ट हाउस पहुँच कर हम अपने रूम में गए और वहाँ जाकर सो गए। दिन में थोड़ा बहुत शॉपिंग किया। इस बार शॉपिंग के लिए मैं कटरा मार्केट गया।  हमारी टिकट श्री शक्ति एक्सप्रेस से था, जो कटरा से रात में 10 :55 पर खुलती है।  10 बजे गेस्ट हाउस से निकलकर हम प्लेटफार्म पर आ गए।  जब हम प्लेटफार्म पर आये तो देखा कि ट्रेन पहले से लगी हुई थी।  हम अपनी सीट पर गए और कम्बल ओढ़कर सो गए। थकान इतनी थी कि  कब ट्रेन खुली कुछ पता नहीं। 8 बजे जब हमारी नींद खुली तो हम अम्बाला पहुँच चुके थे। 3  घंटे बाद करीब 11 बजे हम नई दिल्ली स्टेशन पहुँच गए।  ट्रेन से उतरे स्टेशन से बाहर आकर ऑटो बुक किया और अपने अपने घर आ गए।

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1 comment:

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