Tuesday, February 21, 2017

नालन्दा (Nalanda)

नालन्दा (Nalanda)
कुछ बातें नालंदा के गौरवशाली इतिहास के बारे में

नालंदा भारत के बिहार प्रान्त का एक जिला है जिसका मुख्यालय बिहार शरीफ है।। नालंदा अपने प्राचीन इतिहास के लिये विश्वप्रसिद्ध है। यहाँ विश्व के सबसे पुराने नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी मौज़ूद है, जहाँ सुदूर देशों से छात्र अध्ययन के लिये भारत आते थे।

बुद्ध और महावीर कई बार नालन्दा मे ठहरे थे। माना जाता है कि महावीर ने मोक्ष की प्राप्ति पावापुरी में की थी, जो नालन्दा मे स्थित है। बुद्ध के प्रमुख छात्रों मे से एक, सारिपुत्र का जन्म नालन्दा मे हुआ था।

नालंदा पूर्व में अस्थामा और सरमेरा, पश्चिम में तेल्हारा, दक्षिण में गिरियक तथा उत्तर में हरनौत तक फैला है। 

विश्व के प्राचीनतम विश्ववविद्यालय के अवशेषों को अपने आंचल में समेटे नालंदा बिहार का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहाँ पर्यटक विश्ववविद्यालय के अवशेष, संग्रहालय, नव नालंदा महाविहार तथा ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल देख सकते हैं। इसके अलावा इसके आस-पास में भी घूमने के लिए बहुत से पर्यटक स्थल है। राजगीर, पावापुरी, गया तथा बोध-गया यहां के नजदीकी पर्यटन स्थल हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। भगवान बुद्ध ने सम्राट अशोक को यहाँ उपदेश दिया था। भगवान महावीर भी यहीं रहे थे। प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म यहीं पर हुआ था।

नालन्दा महाविहार
नालंदा विश्ववविद्यालयके अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। माना जाता है कि इस विश्ववविद्यालय की स्थापना 450 ई॰ में गुप्त शासक कुमारगुप्त ने की थी। इस विश्ववविद्यालय को इसके बाद आने वाले सभी शासक वंशों का समर्थन मिला। महान शासक हर्षवर्द्धन ने भी इस विश्ववविद्यालय को दान दिया था। हर्षवर्द्धन के बाद पाल शासकों का भी इसे संरक्षण मिला। केवल यहाँ के स्थानीय शासक वंशों ने ही नहीं वरन विदेशी शासकों से भी इसे दान मिला था। इस विश्ववविद्यालय का अस्तित्व 12वीं शताब्दी तक बना रहा। 12‍वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खलजी ने इस विश्ववविद्यालय को जल‍ा डाला।


प्रमुख आकर्षण

नालंदा प्राचीन काल का सबसे बड़ा अध्ययन केंद्र था तथा इसकी स्थापना पांचवीं शताब्दी ईसवी में हुई थी। दुनिया के इस सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष बोधगया से 85 किलोमीटर दूर एवं पटना से 90 किलोमीटर दक्षिण में स्थित हैं। माना जाता है कि बुद्ध कई बार यहां आए थे। यही वजह है कि पांचवीं से बारहवीं शताब्दी में इसे बौद्ध शिक्षा के केंद्र के रूप में भी जाना जाता था। सातवीं शताब्दी ईसवी में ह्वेनसांग भी यहां अध्ययन के लिए आया था तथा उसने यहां की अध्ययन प्रणाली, अभ्यास और मठवासी जीवन की पवित्रता का उत्कृष्टता से वर्णन किया। उसने प्राचीनकाल के इस विश्वविद्यालय के अनूठेपन का वर्णन किया था। दुनिया के इस पहले आवासीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दुनिया भर से आए 10,000 छात्र रहकर शिक्षा लेते थे तथा 2,000 शिक्षक उन्हें दीक्षित (शिक्षित) करते थे। यहां आने वाले छात्रों में बौद्ध यात्रियों की संख्या ज्यादा थी। गुप्त राजवंश ने प्राचीन कुषाण वास्तुशैली से निर्मित इन मठों का संरक्षण किया। यह किसी आंगन के चारों ओर लगे कक्षों की पंक्तियों के समान दिखाई देते हैं। सम्राट अशोक तथा हर्षवर्धन ने यहां सबसे ज्यादा मठों, विहार तथा मंदिरों का निर्माण करवाया था। हाल ही में विस्तृत खुदाई यहां संरचनाओं का पता लगाया गया है। यहां पर सन 1951 में एक अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शिक्षा केंद्र की स्थापना की गई थी। इसके नजदीक ही बिहारशरीफ है, जहां मलिक इब्राहिम बाया की दरगाह पर हर वर्ष उर्स का आयोजन किया जाता है। छठ पूजा के लिए प्रसिद्ध सूर्य मंदिर भी यहां से दो किलोमीटर दूर बडागांव में स्थित है। यहां आने वाले नालंदा के महान खंडहरों के अलावा नव नालंदा महाविहार संग्रहालय भी देख सकते हैं।


प्राचीन विश्ववविद्यालय के अवशेषों का परिसर
14 हेक्टेयर क्षेत्र में इस विश्ववविद्यालय के अवशेष मिले हैं। खुदाई में मिले सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया था। यह परिसर दक्षिण से उत्तर की ओर बना हुआ है। मठ या विहार इस परिसर के पूर्व दिशा में स्थित थे। जबकि मंदिर या चैत्य पश्चिम दिशा में। इस परिसर की सबसे मुख्य इमारत विहार-1 थी। वर्तमान समय में भी यहां दो मंजिला इमारत मौजूद है। यह ईमारत परिसर के मुख्य आंगन के समीप बना हुई है। संभवत: यहां ही शिक्षक अपने छात्रों को संबोधित किया करते थे। इस विहार में एक छोटा सा प्रार्थनालय भी अभी सुरक्षित अवस्था में बचा हुआ है। इस प्रार्थनालय में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा भग्न अवस्था में है।

यहां स्थित मंदिर नं 3 इस परिसर का सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर से समूचे क्षेत्र का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यह मंदिर कई छोटे-बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है। इन सभी स्तूपों में भगवान बुद्ध की मूर्तियां बनी हुई है। ये मूर्तियां विभिन्न मुद्राओं में बनी हुई है।

अब यात्रा के बारे में
6 फरवरी  2017
वैसे तो हम नालंदा और राजगीर कई बार जा चुके हैं। पर एक बार फिर वहां जाने और जाकर वहां की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने का मन कर रहा था। कई बार गांव गया पर कभी वहां जाने का समय निकल नहीं पाया। पर इस बार एक संयोग बना और एक शादी में बिहार शरीफ जाना था। 5 फरवरी को शादी में शामिल होना था। मैंने 3 फरवरी का दिल्ली से पटना का मगध एक्सप्रेस का टिकट लिया और वापसी का टिकट 10 फरवरी का से दिल्ली का गरीब रथ का लिया। 5 फरवरी को शादी में शामिल होने के बाद मेरे पास 4 दिन ऐसे थे जहाँ मेरे पास कुछ करने के लिए नहीं था। बिहार शरीफ में मैं अपने बड़े साढू के यहाँ ठहरा था। 5 फरवरी को शादी में शामिल होने के कारण उस रात पूरा जाग कर ही बिता। शादी के कारण हमारे छोटे साले चन्द्रशेखर (भोला) भी दिल्ली से आये हुए थे। दिल्ली में ये मेट्रो के स्टेशन कंट्रोलर हैं।


6 फरवरी को सुबह 8 बजे मैं अपने घर जाने के लिए तैयार हुआ और चाय पीते हुए अपने छोटे साले चन्द्रशेखर से कहा कि आज तो मैं घर जा रहा हूं और कल सुबह आऊँगा और फिर एक दिन नालंदा और एक दिन राजगीर की सैर के लिए चलेंगे। मेरी बात पर उन्होंने कहा कि आज आप जाएंगे कल आएंगे फिर नालन्दा और राजगीर जाएंगे इससे तो अच्छा है कि आज नालंदा चलते है और कल राजगीर चलेंगे और यदि समय बच गया तो कल शाम को आप घर चले जाईयेगा और समय नहीं बच पाया तो परसो चले जाइएगा। मैं भी उनकी बात से सहमत हो गया। कुल तीन लोग मैं, भोला और राजा (साढ़ू जी का बड़ा बेटा) वहां जाने के लिए तैयार हुए। खाना खाकर 11 बजे हम लोग घर से निकले और एक ऑटो से बस स्टैंड पहुँच गए। वहां पहुँचते ही स्टेशन के गेट से एक बस राजगीर जाने के लिए तैयार थी। हम तीनो बस में बैठ गए। बिहार शरीफ से नालंदा की दूरी 12 किलोमीटर है।

12 बजे हम लोग नालंदा पहुँच गए। जिस बस में हम लोग बैठे थे वो राजगीर तक जा रही थी और ये लोगो को नालंदा में जहाँ उतारती वहाँ से नालंदा के खंडहर की दूरी 4 किलोमीटर है। यहाँ से तांगा या रिक्शा से जाना पड़ता है। हम लोग भी एक तांगे पर बैठ गए। बहुत दिनों बाद तांगे पर बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। करीब 12 :30 हम लोग वहाँ पहुँच गए जाना हमें जाना था। अरे चौकिये मत हम लोग नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर के पास पहुँच चुके थे। यहाँ दोनों तरफ बाजार लगा हुआ था। कुछ खाने पीने की दुकानें भी सजी थी। फरवरी का महीना ऐसे भी सुहाना होता है। न ही ज्यादा गर्मी थी नहीं ही ठण्ड पर धूप में जाने पर हल्की गर्मी का अहसास हो रहा था।

यहाँ पहुंचकर हमने सबसे पहले 3 टिकट लिया। भारतियों के लिए टिकट 15 रुपये और विदेशी लोगों के लिए टिकट का मूल्य 200 रुपये है। टिकट काउन्टर के सामने वाले पार्क में एक बहुत बड़ी घंटी टंगी है और ऐसी ही एक घंटी राजगीर में विश्व शान्ति स्तूप के पास है। इस घंटी का वजन इतना है कि इसे एक जगह से दूसरे जगह ले जाने के लिए 5 से 6 लोगों जरूरत होगी। हम सबने सबसे पहले घंटी के पास कुछ फोटो लिए और उसके बाद हम नालंदा के भग्नावशेषों की तरफ बढे। एंट्री गेट पर ही खड़े गार्ड ने हमारी टिकटें देखी फिर हमें अंदर जाने दिया। गेट से आगे जाने पर एक 200 मीटर का लंबा गलियारा है जिसे दोनों तरफ बड़े बड़े पेड़ आगंतुकों का स्वागत करते है। अंदर बहुत से बौद्ध भिक्षु यहाँ मौजूद थे जिनकी गिनती 10, 20 या 50 में नहीं बल्कि ये सैकड़ों की संख्या में थे और 20 से 25 लोगों के ग्रुप में थे।


हमने यहाँ की हर चीज़ देखी। जो भी बोर्ड पर लिखा था उसे पढ़ा और उसी अनुसार हमने वहां पूरा क्षेत्र घूमा। जहाँ से भग्नावशेष आरम्भ होता है वहां दीवार पर चढ़कर कुछ फोटो लिया। वैसे दिवार पर चढ़ने मना है फिर भी हमने किसी तरह फोटो ले लिया।

हम सबने लगभग 3 घंटे में पूरा क्षेत्र घूम लिया और जो भी मुझे अच्छा लगा उसको अपने कैमरे में कैद कर लिया। मैं यहाँ आप लोगों के पढ़ने के लिए ज्यादा कुछ नहीं लिख रहा हूँ क्योकि ज्यादा कुछ लिखने के लिए है नहीं। पर हाँ यहाँ घूमने के लिए बहुत कुछ है। किसी और के लिए हो या नहीं पर मेरे लिए तो बहुत कुछ है। यहाँ ज्यादा कुछ नहीं लिख रहा हूँ उसकी कमी मैं अपनी राजगीर यात्रा में पूरा दूँगा। अब ऐसे ही कुछ बनावटी लिखने से अच्छा है कि कुछ न लिखू और वहां ली गयी कुछ फोटो आपसे शेयर करूँ।

पूरा क्षेत्र घूमते घूमते थकान भी होने लगी थी और थकान के साथ साथ प्यास भी लग रही थी। हम लोग बाहर आये कुछ खाया पिया और एक ई-रिक्शा से नालंदा के बस स्टॉप पर आ गए और फिर यहाँ से बिहार शरीफ के लिए बस में बैठ गए। 30 मिनट में बस बिहार शरीफ पहुँच गयी और वहां से ऑटो से हम लोग घर चले गए। वहां जाते ही जो पूरी रात की नींद बाकी थी उसे पूरा करने के लिए हम लोग सो गए क्योकि कल सुबह राजगीर के लिए निकलना जो था। कुछ घंटे के नींद लेने के बाद हम 9 बजे डिनर के लिए उठे फिर खाना खाकर दुबारा सो गए क्योंकि कल सुबह 6 बजे ही राजगीर के लिए निकलना था और वहीं जाकर नहाना था गरम पानी के झरने कुण्ड में।


कैसे जाएँ : 
वायुमार्ग: निकटतम हवाई-अड्डा पटना (90 किमी).

रेलमार्ग: पटना, गया , वाराणसी, हावड़ा एवं दिल्ली से सीधी रेल सेवा।

सड़क द्वारा: पटना, गया, दिल्ली एवं कोलकाता से सीधा संपर्क।
नालंदा सड़क मार्ग द्वारा कई निकटवर्ती शहरों से जुड़ा है:
राजगीर (12 किमी),
बोधगया (85 किमी लगभग),
गया (72 किमी 
लगभग),
पटना (90 किमी),
पावापुरी (26 किमी)
बिहार शरीफ (13 किमी)



बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम पटना स्थित अपने कार्यालय से नालंदा एवं राजगीर के लिए वातानुकूलित टूरिस्ट बस एवं टैक्सी सेवा भी उपलब्ध करवाता है।




अब हम आपसे आज्ञा लेते है और मेरे यात्रा वृतान्त को पढ़ने के लिए धन्यवाद भी कहते हैं। जल्दी ही एक और यात्रा संस्मरण के साथ आपके समक्ष आऊँगा। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये।

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अब कुछ फोटो हो जाये :


नालंदा महाविहार का आंतरिक दृश्य 

रास्ता दर्शाता बोर्ड 

टिकट काउंटर 

टिकट काउंटर के सामने वाले मैदान में लगा घंटी (घंटा)

घंटे के अंदर का दृश्य 

घंटे के ऊपर की कलाकृति 

महाविहार के अंदर 

एक मठ 

नालंदा के बारे में दर्शाता बोर्ड 

नालंदा के बारे में दर्शाता बोर्ड

महाविहार के अंदर 

विहार के बारे में दर्शाता बोर्ड 

आंतरिक दृश्य 

विहार की दीवार 

महाविहार का नक्शा 

विहार के बारे में विवरण देता सूचनापट्ट 

एक कोठरी में खिड़की का दृश्य 

कुछ अवशेष 

एक कोठरी का दरवाजा 

रास्ता 

एक कोठरी 

आंतरिक दृश्य 

विपश्यना करते बौद्ध भिक्षु 

विहार के बारे में विवरण देता सूचनापट्ट 

विहार में बौद्ध भिक्षु 

आंतरिक दृश्य

आंतरिक दृश्य

आंतरिक दृश्य

राजा और चंद्रशेखर 

मैं और चंद्रशेखर 

आंतरिक दृश्य

आंतरिक दृश्य

आंतरिक दृश्य 

जाली से ढंका कुआँ 

आंतरिक दृश्य

आंतरिक दृश्य

आंतरिक दृश्य

आंतरिक दृश्य 

विहार का विवरण दर्शाता बोर्ड

आँगन और उसके बीच में कुआँ (कुआँ 8 कोण का है )

मरम्मत करते कुछ लोग 

विहार का विवरण दर्शाता बोर्ड

पीपल का एक पुराना और बूढ़ा पेड़ 

विहार का विवरण दर्शाता बोर्ड

गंजा पेड़ 

विहार का विवरण दर्शाता बोर्ड

विहार का विवरण दर्शाता बोर्ड 

महाविहार के अंदर सैलानी 
भोला 

राजा 

मैं 
नालंदा बस स्टॉप के पास खड़े टाँगे 
टिकट घर 

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18 comments:

  1. बढ़िया । गया में ससुराल होते हुए भी कभी यहां जा नही पाया , जल्द ही जाऊंगा ।

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    Replies
    1. तो देर किस बात की, एक बार हो आइये, नालंदा, राजगीर, पावापुरी, बोधगया और साथ साथ ससुराल भी

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  2. बढ़िया । गया में ससुराल होते हुए भी कभी यहां जा नही पाया , जल्द ही जाऊंगा ।

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    1. तो देर किस बात की, एक बार हो आइये, नालंदा, राजगीर, पावापुरी, बोधगया और साथ साथ ससुराल भी

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  3. घुमक्कड़ को शादी में भी घुमक्कडी मिल ही जाती है

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    1. हां बस घुमक्क्ड़ों को मौका मिलना चाहिए

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  4. बढ़िया पोस्ट।

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    1. धन्यवाद प्रिया जी, संवाद बनाये रखियेगा

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  5. बहुत अच्छी जानकारी

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  6. नालन्दा की जानकारी देता बढ़िया लेख और चित्र

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    1. आभार मित्रवर, संवाद बनाए रखिएगा और त्रुटियों का भी आभास कराते रहिएगा

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  7. फिर से पढ़ लिया भाई। नालन्दा राजगीर बोधगया वैशाली पावा मुझे भी घूमने की इच्छा है। सोचता हूँ बिहार के ये पांचों स्थान एक ही बार में घूम लूँ।

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    1. धन्यवाद जी , नालन्दा राजगीर और पावापुरी तो एक जगह पर है, बोधगया थोड़ा फासले पर है, वैशाली थोड़ा हटके अलग रूट पर है, फिर भी एक बार में आसानी से घुमा जा सकता है, और साथ में आप ककोलत भी घूम लीजिये।

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  8. सही है ! एक पंथ दो काज ! जानकारी बहुत अच्छी और विस्तृत है नालंदा के विषय में !! फोटो , जबरदस्त और आकर्षक हैं !!

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    1. धन्यवाद भाई जी, संवाद बनाये रखियेगा।

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    2. मैं भी पटना बिहार से हूँ, राजगीर या राजगृह अपने में बड़ा स्वर्णिम इतिहास संजोए है इस यहाँ राजा जरासंध का इतिहास, पहाडों में अनसुलझे सोने की खानों का रहस्यमय इतिहास, तोप के गोले से भी ना टूटने वाली उसकी दीवार, पावापुरी का सफेद अलौकिक मन्दिर, काकोलत के खुबसुरत मनोहारी झरने जिसमें औषधिए गुण भी है तथा नवम्बर में लगने वाला राजगीर सांस्कृतिक महोत्सव, इन सबकी जितनी तारीफ़ की जाये कम हीं होगी ।

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    3. पहले तो आप मेरे ब्लॉग पर आये उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आपने अपना परिचय जिस अंदाज़ में दिया वो बहुत ही तारीफ की बात है, हाँ बिहार में भी बहुत खजाने है पर्यटकों के लिए

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