बदरीनाथ : एक अदभुत अहसास
वैसे तो पूरा उत्तराखंड ही देव भूमि कहा जाता है। उत्तराखंड का हिन्दू संस्कृति और धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। यहां गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ जैसे कई सिद्ध तीर्थ स्थल हैं। पूरे देश में में भगवान विष्णु के हज़ारों मंदिर हैं परन्तु उत्तराखंड स्थित पंच बदरी सर्वोपरि हैं। बदरीनाथ को चारधामों में से एक माना जाता है। मुझे भी इस धाम पर जाने और वहाँ एक दिन बिताने का सौभग्य मिला।
समुद्र के तल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर बदरीनाथ धाम स्थित है। माना जाता है कि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया था। वर्तमान में शंकराचार्य की निर्धारित परंपरा के अनुसार उन्हीं के वंशज नंबूदरीपाद ब्राह्मण भगवान बदरीविशाल की पूजा-अर्चना करते हैं। बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यान मुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ, तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचार यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्त कुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की।