Tuesday, March 14, 2017

राजगीर (राजगृह, Rajgir)

राजगीर (राजगृह, Rajgir)


राजगीर जाने का प्लान कल नालन्दा में घूमते हुए ही तय हो गया था। बात ये तय हुई थी कि सुबह 6 बजे तक राजगीर के लिए निकल जाना है। 2 दिन का भारतीय रेल का सफर, 1 दिन शादी समारोह और 1 दिन नालंदा घूमते हुए कुल मिलाकर 4 दिन की जो थकान थी उसके कारण ऐसी गहरी नींद आयी कि हम लोग 6 बजे तक सोते ही रह गए। 6 बजे जागने के बाद हम लोग जल्दी जल्दी ब्रश किये और एक बैग में कपडे रखे और निकल गए। नहाने का प्लान तो राजगीर के गरम कुंड में ही था। 6:30 बजे घर से निकले और एक ऑटो में बैठकर बस स्टैंड आ गए। बिहार शरीफ से राजगीर की दूरी 25 किलोमीटर है और यहाँ से राजगीर के लिए हर 5 मिनट में बस मिल जाती है। बस स्टैंड आया तो राजगीर के लिए एक बस खुलने के लिए तैयार थी। कुछ सीटें भर चुकी थी और कुछ खाली थी। हम तीनों बस में बैठ गए। वही तीन प्राणी आज भी थे जो कल नालंदा में भटक रहे थे। 




बस करीब 7:15 बजे बिहार शरीफ से खुली और 8:15 बजे नालंदा और सिलाव होते हुए राजगीर पहुँच गयी। सिलाव की एक मशहूर मिठाई है जिसका नाम खाजा है। ये बहुत स्वादिस्ट होती है और वजन में बहुत हल्की होती है। राजगीर बस स्टेशन से कुण्ड की दूरी करीब 2 किलोमीटर है और वहां जाने और राजगीर घूमने का एकमात्र साधन तांगा है। हम लोग एक तांगे पर बैठे तो उसने हमसे पूछा कि आप पूरा दिन घूमेंगे या केवल कुण्ड तक जायेंगे। मैंने उसे कहा कि पहले तो अभी कुंड तक ही जाएंगे उसके बाद वहां नहाने के बाद आगे का प्लान करेंगे। तांगे वाला और सवारी आने का इंतज़ार करने लगा। कुछ ही उसके टाँगे पर 6 लोग हो गए।तांगे को सवारियों से भर लेने के बाद वो सबको कुंड की तरफ ले चला। 10 मिनट से भी कम समय में हम पवित्र कुण्ड के पास पहुँच गए। हम लोग पहले तो गरम पानी के कुंड में नहाये। वैसे तो यहाँ गरम पानी के बहुत सारे कुंड है पर इनमे से सबसे प्रमुख कुंड ब्रह्मकुंड और सप्तधारा है। सप्तधारा एक पंक्ति में सात जगह से पानी गिरता रहता है उसे ही सप्तधारा कहते हैं।  भोला और राजा तो नहाने से इनकार करने लगे तो मैंने तो यही जवाब दिया की आप लोग नहाये या नहीं नहाये पर मैं तो नहाऊँगा। फिर राजा भी तैयार हो गया उसके बाद भोला ने भी हामी भर दी। पहले मैं और राजा नहाने गए। हम दोनों जब नहा कर आये तो भोला नहाने गए और राजा फिर से नहाने के लिए उनके साथ गया। 


नहाने के बाद जब हमने अपनी घड़ी पर निगाह डाली तो 9:30 बज चुके थे। अब तक हमारे पेट में भूख की ज्वाला भड़कने लगी थी। हम सब कुंड के पास से सड़क पर आये और कुछ खाने के लिए इधर-उधर देख रहे थे तो एक तांगे (टमटम) वाले ने पूछा कि सर कहाँ जायेंगे तो भोला ने जवाब दिया कि विश्व शान्ति स्तूप जाएंगे। इसके बाद तो वो हम लोगों के पीछे ही लग गया।  मैंने उसे कहा कि अभी हम लोग पहले कुछ खाएंगे फिर कहीं जाएंगे।  उसके बाद हम तीनों नाश्ता किया और कुछ सामान पहाड़ के ऊपर जाने के बाद खाने के लिए ले लिया। हम लोग इधर उधर घूमने लगे तो तांगा वाला भी हम लोगो के पीछे ही लगा रहा। 

मैंने तांगे वाले से विश्व शान्ति स्तूप जाने के लिए किराया पूछा तो उसने 35 रूपये प्रति व्यक्ति बताया और पूरे राजगीर में घुमाने का 440 रूपये।  मैंने उसे कि पहले तो हमें विश्व शान्ति स्तूप ले चलो उसके बाद पूरे दिन घूमने के लिए सोचेंगे। इतना कहकर हम लोग तांगे पर बैठ गए। तांगे से मुझे मेरा बचपन याद आ जाता है जब मेरे गांव से कहीं जाने का एकमात्र साधन तांगा ही था। कुछ ही देर में हम विश्व शान्ति स्तूप पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर हमने यही फैसला किया कि पूरा राजगीर इसी तांगे से घूमना है। मैंने तांगे वाले से कहा कि पैसे अभी दे दे या बाद में लेंगे तो उसने कहा कि पहले आप घूम लीजिये जहाँ जहाँ घूमना है फिर पैसे दीजियेगा।  

विश्व शान्ति स्तूप पहाड़ के ऊपर स्थित है।  वहां तक पहुँचने के लिए दो रास्ते हैं।  एक रास्ता पैदल का है और दूसरा रोप-वे (रज्जु मार्ग) है। अब पैदल तो रोज रोज चलते ही हैं और यहाँ आये ही हैं तो रोप-वे का भी मज़ा ले ही लेते हैं। यहाँ रोप-वे का टिकट केवल जाने या केवल आने का नहीं मिलता, यहाँ जो टिकट मिलता है वो आने जाने दोनों का होता है और कीमत केवल और केवल 80 रूपये है। केवल पहाड़ से नीचे उतरने का टिकट 50 रूपये का है जो यहाँ नहीं ऊपर ही मिलता है।  हम लोगो ने भी 80-80 रूपये का तीन टिकट लिया और लाइन में खड़े हो गए। हाँ एक बात और रोप-वे पर यदि आपके पास छोटा बच्चा है तो नहीं जा सकते क्योकि गोद में बच्चे को लेकर बैठ नहीं सकते तब आपको पैदल ही जाना होगा। टिकट लेकर हम लाइन लग गए। लगभग 100 लोगों की लाइन थी। करीब 20-25 मिनट के बाद हमारी बारी भी आ गयी। सबसे आगे के डोली में भोला, उसके बाद राजा और उसके बाद की डोली में मैं बैठा। इस रोप-वे पर बैठकर हम बहुत ही रोमांचित थे। कुछ ही देर में हम पहाड़ के ऊपर थे। ये कुछ ही देर भी करीब 15 मिनट का था। इन 15 मिनटों में कभी कभी तो डर, कभी घबराहट भी हुई। ऊपर से नीचे देखने पर डर और रोमांच दोनों एक साथ महसूस होता था। खैर जो भी हो हम ऊपर पहुँच चुके थे। यहाँ कुछ देर गुजारने और कुछ फोटो लेने के बाद हम लोग वापस आने लगे। इस जगह पर बंदरों और बबूनों की बहुत बड़ी फ़ौज निवास करती है। राजा और भोला तो बोले कि हम पैदल ही जायेंगे और वो दोनों नीचे आते समय पैदल का रास्ता पकड़ लिए और मैं फिर से उसी झूले में बैठने के लिए चल पड़ा और कुछ देर में हम नीचे आ गए।


नीचे आने पर हम तांगे (टमटम) पर बैठ गए। टमटम वाले ने घोड़े को चाबुक मारी और घोड़ा दौड़ने लगा। रास्ते में एक जगह मिलती है जिसे बिम्बिसार जेल कहते हैं। कहते है कि अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार को यही कैद करके रखा था और इस जगह का चुनाव खुद बिम्बिसार ने किया था क्योकि इस जगह से उन्हें भगवान बुद्ध के दर्शन हो जाया करते थे।  

यहाँ से कुछ आगे बढ़ने पर बायीं ओर एक रास्ता आता है।  जहाँ सबसे पहले मनियार मठ आता है, फिर मृग विहार, उसके बाद सोन भण्डार और तत्पश्चात जरासंध का अखाड़ा। हम सबसे पहले सबसे अंत में स्थित जरासंध के अखाड़े पर पहुँचे जहाँ महाभारत काल में भीम और जरासंध का युद्ध हुआ था। यही पास में एक मृग विहार है जहाँ बहुत से मृगों का निवास है पर अफसोस मैं किसी भी मृग का फोटो नहीं ले सका, जैसे ही कैमरा निकालो मृग जी रफू-चक्कर। जरासंध के अखाड़े से वापस आते हमे हम स्वर्ण भंडार (सोन भंडार) के पास रुके और सोन भंडार के पास से चलके मनियार मठ देखा। अब तक हमारे पास जो खाने पीने की चीज़े थी वो ख़तम हो चुकी थी। 

अब इतने चीज़ों को देखने के बाद हम फिर से वापस कुंड के रास्ते पर थे। कुंड के पास पहुँच हम सबने पहले पानी पिया और 2 बोतल पानी ले लिया।  फिर बाकी बची चीज़े देखने चल दिए।  कुछ ही देर में हम वीरायतन के गेट पर थे। यहाँ अंदर जाने का प्रति व्यक्ति 15 रूपये का टिकट लगता है। यहाँ हमने 3 टिकट ली और अंदर गए।  यहाँ फोटो लेना मना है फिर भी हमने चोरी-छुपे किसी तरह कुछ फोटो ले लिया। वीरायतन के बाद हम जापानी मंदिर गए।  जापानी मंदिर के अंदर स्थापित मूर्तियाँ सोने की बनी है।

जापानी मंदिर के बाद हम वेणुवन घूमे। यहाँ भी अंदर जाने का 5 रुपये का टिकट लगता है। हमने टिकट लिया और अंदर गए। वेणु पाली का शब्द है और वेणु का हिंदी अर्थ होता है बांस जिसे अंग्रेजी में bamboo कहते हैं, तो आप समझ ही गए होंगे की वेणुवन का मतलब बांस का जंगल या बांस का बगीचा। यहाँ भी विश्व शांति स्तूप की तरह बंदरों का डेरा था। वेणुवन के अंदर एक तालाब है जिसे कलंदकनिवाप कहते हैं। पहले के समय में इस तालाब में कलन्दक नाम का एक नाग रहता था जिसके नाम पर ही इसका नामकरण कलंदकनिवाप रखा गया। वेणुवन के अंदर इस समय सैकड़ो  की संख्या में बौद्धभिक्षु विराजमान थे। वैसे तो अभी भी राजगीर में देखने के लिए बहुत कुछ बाकी था पर अब तक हम लोग थक चुके थे इसलिए अब और कुछ नहीं देखकर वापस जाने का निश्चय किया। वेणुवन से बाहर आकर हमने टमटम  वाले को 440 रूपये दिए और उसके बाद यहाँ से बस स्टेशन जाने के लिए एक दूसरे टमटम पर सवार हो गए। अब तक घडी में 2:30 बज चुके थे। कुछ देर में हम बस स्टेशन पहुँच गए और टमटम वाले को 3 लोगो का किराया 30 रूपये दिया और कुछ खाने के लिए चल दिया। यहाँ हम एक मिठाई के दुकान पर गए और स्पंज वाले रसगुल्ले  का कीमत पूछा तो उसने जो कीमत बताया वो बहुत ही हैरान करने वाला था। जो स्पंज वाले रसगुल्ले की कीमत दिल्ली में 20 रूपये है उससे अच्छी गुणवत्ता और आकार में 3 गुना बड़े रसगुल्ले की कीमत केवल और केवल 12 रूपये थी।  हम सब ने 2-2 रसगुल्ले खाया और दुकान वाले को पैसे दिए और बस स्टेशन आकर एक चलने के लिए बस में बैठ गए।  अब तो आप समझ ही गए होंगे कि बस पर बैठने के बाद हम कहाँ जायेंगे।अरे इतना मत चौकिये अब हम वापस घर जा रहे है और आपको अलविदा कह रहे हैं।


राजगीर के बारे में 

तापमान: गर्मियों अधिकतम 40 °C, न्यूनतम 20 °C तथा जाड़ों में अधिकतम 28 °C, न्यूनतम 6 °C
वर्षा: 1,860 मिमी (मध्य-जून से मध्य-सितंबर)
सबसे उपयुक्त: अक्टूबर से अप्रैल

दर्शनीय स्थल

गृद्धकूट पर्वत : इस पर्वत पर बुद्ध ने कई महत्वपूर्ण उपदेश दिये थे। जापान के बुद्ध संघ ने इसकी चोटी पर एक विशाल “शान्ति स्तूप” का निर्माण करवाया है जो आजकल पर्यटकों के आकर्षण का मूख्य केन्द्र है। स्तूप के चारों कोणों पर बुद्ध की चार प्रतिमाएं स्थापित हैं। स्तूप तक पहुंचने के लिए पहले पैदल चढ़ाई करनी पड़ती थी पर बाद में एक “रज्जू मार्ग” भी बनाया गया है जो यात्रा को और भी रोमांचक बना देता है।

वेणुवन : बाँसों के इस रमणीक वन में बसे “वेणुवन विहार” को बिम्बिसार ने भगवान बुद्ध के रहने के लिए बनवाया था।

गर्म जल के झरने : वैभव पर्वत की सीढ़ियों पर मंदिरों के बीच गर्म जल के कई झरने (सप्तधाराएं) हैं जहां सप्तकर्णी गुफाओं से जल आता है। इन झरनों के पानी में कई चिकित्सकीय गुण होने के प्रमाण मिले हैं। पुरुषों और महिलाओं के नहाने के लिए 22 कुन्ड बनाए गये हैं। इनमें “ब्रह्मकुन्ड” का पानी सबसे गर्म (४५ डिग्री से.) होता है।

स्वर्ण भंडार : यह स्थान प्राचीन काल में जरासंध का सोने का खजाना था। कहा जाता है कि अब भी इस पर्वत की गुफ़ा के अन्दर अतुल मात्रा में सोना छुपा है और पत्थर के दरवाजे पर उसे खोलने का रहस्य भी किसी गुप्त भाषा में खुदा हुआ है। वह किसी और भाषा में नहीं बल्कि शंख लिपि है और वह लिपि बिंदुसार के शासन काल में चला करती थी। 

जैन मंदिर : पहाड़ों की कंदराओं के बीच बने 26 जैन मंदिरों को आप दूर से देख सकते हैं पर वहां पहुंचने का मार्ग अत्यंत दुर्गम है। लेकिन अगर कोई प्रशिक्षित गाइड साथ में हो तो यह एक यादगार और बहुत रोमांचक यात्रा साबित हो सकती है। जैन मतावलंबियो में विपुलाचल, सोनागिरि, रत्नागिरि, उदयगिरि, वैभारगिरि यह पांच पहाड़ियाँ प्रसिद्ध हैं। जैन मान्यताओं के अनुसार इन पर 23 तीर्थंकरों का समवशरण आया था तथा कई मुनि मोक्ष भी गए हैं।

राजगीर का मलमास मेला : राजगीर की पहचान मेलों के नगर के रूप में भी है। इनमें सबसे प्रसिद्ध मकर और मलमास मेले के हैं। शास्त्रों में मलमास तेरहवें मास के रूप में वर्णित है। सनातन मत की ज्योतिषीय गणना के अनुसार तीन वर्ष में एक वर्ष 366 दिन का होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस अतिरिक्त एक महीने को मलमास या अतिरिक्त मास कहा जाता है।

ऐतरेय बह्मण के अनुसार यह मास अपवित्र माना गया है और अग्नि पुराण के अनुसार इस अवधि में मूर्ति पूजा–प्रतिष्ठा, यज्ञदान, व्रत, वेदपाठ, उपनयन, नामकरण आदि वर्जित है। लेकिन इस अवधि में राजगीर सर्वाधिक पवित्र माना जाता है। अग्नि पुराण एवं वायु पुराण आदि के अनुसार इस मलमास अवधि में सभी देवी देवता यहां आकर वास करते हैं। राजगीर के मुख्य ब्रह्मकुंड के बारे में पौराणिक मान्यता है कि इसे ब्रह्माजी ने प्रकट किया था और मलमास में इस कुंड में स्नान का विशेष फल है।

मलमास मेले का ग्रामीण स्वरूप : राजगीर के मलमास मेले को नालंदा ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों में आयोजित मेलों मे सबसे बड़ा कहा जा सकता है। इस मेले का लोग पूरे तीन साल इंतजार करते हैं। कुछ साल पहले तक यह मेला ठेठ देहाती हुआ करता था पर अब मेले में तीर्थयात्रियों के मनोरंजन के लिए तरह-तरह के झूले, सर्कस, आदि भी लगे होते हैं। युवाओं की सबसे ज्यादा भीड़ थियेटर में होती है जहां नर्तकियाँ अपनी मनमोहक अदाओं से दर्शकों का मनोरंजन करती हैं।

जीवकर्म : बुद्ध के समय प्रसिद्ध वैध जीवक राजगीर से थे। उन्होंने बुद्ध के नाम एक आश्रम समर्पित किया जिसे कहा जाता है।

तपोधर्म : तपोधर्म आश्रम गर्म चश्मों के स्थान पर स्थित है। आज वहाँ एक हिन्दू मन्दिर का निर्माण किया किया गया है जिसे लक्ष्मी नारायण मन्दिर का नाम दिया गया है। पूर्वकाल में तपोधर्म के स्थल पर एक बौद्ध आश्रम और गर्म चश्मे थे। राजा बिम्बिसार यहाँ पर कभी-कभार स्नान किया करते थे।

सप्तपर्णी गुफा : सप्तपर्णी गुफा के स्थल पर पहला बौद्ध परिषद का गठन हुआ था जिसका नेतृत्व महाकस्सप ने किया था। बुद्ध भी कभी-कभार वहाँ रहे थे, और यह अतिथि संन्यासियों के ठहरने के काम में आता था।

जरासंध का अखाडा़ हिन्दू मान्यता के अनुसार महान परन्तु दुष्ट योद्धा जिसके बार-बार मथुरा पर हमले से श्री कृष्ण तंग आकर मथुरा-वासियों को द्वारका भेजना पड़ा, इसी स्थान पर हर दिन सैन्य कलाओं का अभ्यास करता था।

लक्ष्मी नारायण मंदिर : गुलाबी रंग वाली हिन्दू लक्ष्मी नारायण मन्दिर अपने दामन में प्रचीन गर्म चश्मे समाए हुए है। यह मन्दिर अपने नाम के अनुसार विष्णु भगवान और उनकी पत्नी लक्ष्मी को समर्पित है।

वास्तविक रूप में जल में एक डुपकी ही गर्म चश्मे को अनुभव करने का स्रोत था, परन्तु अब एक उच्च स्तरीय चश्मे को काम में लाया गया है जो कई आधूनिक पाइपों से होकर आता है जो एक हॉल की दीवारों से जुड़े हैं, जहाँ लोग बैठकर अपने ऊपर से जल के जाने का आनंद ले सकते हैं।

अन्य स्थान : अतिरिक्त पुरातत्व स्थलों में शामिल हैं:
  • कर्णदा टैंक जहा बुद्ध स्नान करते थे।
  • मनियार मठ जिसका इतिहास पहली शताब्दी का है।
  • मराका कुक्षी जहाँ अजन्मित अजातशत्रु को पिता की मृत्यु का कारण बनने का श्राप मिला
  • रणभूमि जहाँ भीम और जरासंध महाभारत की एक युद्ध लड़े थे
  • स्वर्णभण्डार गुफा
  • विश्वशांति स्तूप
  • एक पुराने दुर्ग के खण्डहर
  • 2500 साल पुरानी दीवारें

बिम्बिसार कारागार  : घाटी के बीच एक गोलाईदार ढाँचे के खण्डहर हैं जिसके हर कोने में एक बुर्ज है। बिम्बिसार को उसके बेटे अजतशत्रु ने बन्दी बनाया था। इसके बावजूद वह गृधाकुट और बुद्ध को खिड़की से देख सकते थे।



कैसे जाएँ : 
वायुमार्ग: निकटतम हवाई-अड्डा पटना (107 किमी).

रेलमार्ग: पटना, गया , वाराणसी, हावड़ा एवं दिल्ली से सीधी रेल सेवा।

सड़क द्वारा: पटना, गया, दिल्ली एवं कोलकाता से सीधा संपर्क।

बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम पटना स्थित अपने कार्यालय से नालंदा एवं राजगीर के लिए वातानुकूलित टूरीस्ट बस एवं टैक्सी सेवा भी उपलब्ध करवाता है।



अब हम आपसे आज्ञा लेते है और मेरे यात्रा वृतान्त को पढ़ने के लिए धन्यवाद भी कहते है। जल्दी ही एक और यात्रा संस्मरण के साथ आपके समक्ष आऊँगा। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये।



अब कुछ फोटो हो जाये :

विश्व शांति स्तूप
विश्व शांति स्तूप

विश्व शांति स्तूप के पास मैं, चंद्रशेखर और राजा

राजगीर का बस पड़ाव


कुंड की दीवार पर लगा एक बोर्ड 

ब्रह्मकुंड के अंदर का दृश्य 

ब्रह्मकुंड में जाने का रास्ता , वैसे यहाँ फोटो लेना मन है पर किसी तरह ले लिया

कुछ अवशेष 

ब्रह्मकुंड परिसर 

रोप-वे का टिकट काउंटर

रोप-वे  
रोप-वे  
रोप-वे से नीचे का दृश्य 

बबूनों का झुण्ड 

कुछ सूचनाएं देता एक बोर्ड 

विश्व शांति स्तूप परिसर 

विश्व शांति स्तूप के पास लगा एक पट्ट 

विश्व शांति स्तूप की दीवारों पर बंदी बुद्ध की लेती हुई प्रतिमा 

विश्व शांति स्तूप 


बबूनों का झुण्ड

कभी इसे बजाकर भी देख लें (ऐसी ही हूबहू एक घंटी नालंदा में भी है )


यह पता नहीं किया है मेरी तो समझ नहीं आया, आप समझ रहे तो मुझे बता देना



रोप वे 

नीचे से दीखता रोपवे और शांति स्तूप का गुम्बद 




बिम्बिसार जेल के बचे हुए अवशेष 


जरासंध के अखाड़े का दृश्य 


सोन भंडार

सोन भंडार के अंदर दीवारों पर अंकित आकृतियाँ 

सोन भंडार के अंदर का दृश्य 

सोन भंडार के अंदर दीवारों पर अंकित आकृतियाँ 

सोन भंडार के अंदर दीवारों पर अंकित आकृतियाँ 

सोन भंडार के अंदर दीवारों पर अंकित आकृतियाँ 

सोन भंडार

मनियार मठ के बारे में जानकारी देता बोर्ड 

मनियार मठ

वीरायतन संग्रहालय का रास्ता 



वेणुवन में लगे बांस के पौधे


वेणुवन में लगे बांस के पौधे 
वेणुवन के बारे में जानकारी देता बोर्ड 
भाई नया नया टांगा चला रहा हूँ आगे से हट जाइएगा 
कुंड के पास भोला (चंद्र शेखर) और राजा 
चंद्रशेखर (भोला )

मैं और राजा (यहाँ से गिरने के बाद शायद ही कोई बच पायेगा 
मनियर मठ के पास रास्ते को दर्शाता बोर्ड 

वीरायतन म्यूजियम के अंदर का दृश्य 

वीरायतन म्यूजियम के अंदर का दृश्य 

वीरायतन म्यूजियम के अंदर का दृश्य 

वीरायतन म्यूजियम के अंदर का दृश्य 

जापानी मंदिर के बहार लगी बुद्ध की प्रतिमा 

वेणुवन का प्रवेश द्वार 
वेणुवन के अंदर कलंदक निवाप के तालाब में बतख

वेणुवन के अंदर कलंदक बौद्ध भिक्षु 
वेणुवन के अंदर राजा और भोला 

वेणुवन में लगे बांस के पौधे 

वेणुवन के बारे में जानकारी देता बोर्ड 

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14 comments:

  1. राजगीर से नजदीकी हवाई अड्डा तो बोधगया होना चाहिए न कि पटना ।
    बढ़िया ,सहज सरल शैली में लिखी पोस्ट ।

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    1. मधुर मधुर धन्यवाद सर जी , जी हाँ नज़दीकी हवाई अड्डा तो बोधगया है पर बोधगया से फ्लाइट नहीं है

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  2. जरासंध का अखाडा़ : हिन्दू मान्यता के अनुसार महान परन्तु दुष्ट योद्धा जिसके बार-बार मथुरा पर हमले से श्री कृष्ण तंग आकर मथुरा-वासियों को द्वारका भेजना पड़ा, इसी स्थान पर हर दिन सैन्य कलाओं का अभ्यास करता था। ​ये तो एकदम नई जगह मिली है ! राजगीर के और भी ब्लॉग पढ़े हैं पहले लेकिन इस जगह के विषय में नहीं पढ़ने को मिला !! बहुत बढ़िया अभय जी

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको, आप तो इतने पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थलों की यात्राा कर चुके हैं। कभी एक बार इधर का भी रुख कीजिए। राजगीर, नालंदा, पावापुरी, गया, बोधगया होकर आइए और बिहार की संस्कृति को करीब से जानिए ऐसी मेरी शुभेच्छा है। वैसे एक बात है इस राजगीर के पोस्ट को पढ़कर अब तक 5 लोग राजगीर होकर आ गए हैं।

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