Monday, April 10, 2017

काँगड़ा वैली ट्रेन यात्रा (Kangra Valley Train Journey)

काँगड़ा वैली ट्रेन यात्रा (Kangra Valley Train Journey)



पठानकोट से ज्वालामुखी रोड (Pathankot to Jwalamukhi Road)

पठानकोट में ट्रेन से उतरने के बाद टिकट लेकर और कुछ फोटो खीचने के बाद मैं सीधा प्लेटफार्म 4 पर चला गया। अभी सुबह के 8 :45 बजे थे। वहां पहले से ही एक ट्रेन लगी थी। मैंने गार्ड से पूछा तो उसने बताया कि ये तो अभी आयी ही है। ये ट्रेन यार्ड में जाएगी और जो जाएगी वो कुछ देर में यहाँ लगा दी जाएगी। मैं पहली बार इतनी छोटी ट्रेन देख रहा था। ट्रेन की पटरियों की चौड़ाई बहुत ही कम थी। देखकर मन प्रफुल्लित हो रहा था। बस जल्दी से ट्रेन में बैठ जाने का मन रहा था। वहीं पर एक चाय की दुकान थी मैंने एक कप चाय लिया और पीने लगा। मेरी चाय ख़त्म होने से पहले ही पहले वहां खड़ी ट्रेन को एक इंजन खीचकर यार्ड की तरफ ले गया। यार्ड में खड़ी दूसरी ट्रेन प्लेटफार्म पर लगा दी गयी। मैं जल्दी से ट्रेन में घुसा और खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गया। 


अभी 9 ही बजे थे और ट्रेन खुलने में अभी पूरा एक घंटा बाकी था। ट्रेन में भीड़ बहुत हो चुकी थी। जिन लोगों ने पहले सीट ले ली थे वो तो बैठे हुए थे और बाद में आने वाले को खड़ा होकर ही जाना था। 10 बजते बजते ट्रेन के अंदर पैर रखने की भी जगह नहीं बची थी। मेरे मन में इस समय यही ख्याल आ रहा कि यदि हमारी ट्रेन 20 मिनट लेट हो जाती तो मुझे भी इस ट्रेन में बैठने के लिए जगह नहीं मिलती। इस ट्रेन की एक ख़ास बात यह है कि इसकी खिड़कियों में और ट्रेनों की तरह लोहे की रॉड लगी नहीं होती, जिस करना आप सिर बहार निकालकर बाहर हिमालय की खूबसूरत वादियों को निहारते हुए पुरे रास्ते जा सकते है।  इस ट्रेन में विंडो साइड की सीट मिलना अपने आप में दिल को खुश करने वाली बात है।  


एक बात अब हमारे उन शुभचिंतकों के लिए जो इसे पढ़ रहे होंगे अगर आपको कभी आना हो तो आप उस ट्रेन से आइयेगा जो पठानकोट कैंट सुबह 6 से 7 के बीच पहुँचा देती हो और आप वहां से ऑटो से पठानकोट जंक्शन आ आकर कुछ देर आराम कर सके और जल्दी आकर इस ट्रेन में सीट हासिल कर सकें। अब आप ये मत कहना कि हम खुद तो पठानकोट जंक्शन चले गए और दूसरे लोगों को पठानकोट कैंट स्टेशन उतरकर ऑटो से आने कह रहे हैं। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि पठानकोट कैंट के लिए आपको बहुत ट्रेनें मिल जाएगी पर पठानकोट जंक्शन के लिए 2 -3 ट्रेन ही है। और वैसे भी दोनों स्टेशनों के बीच ज्यादा नहीं बस 4 किलोमीटर है।


ट्रेन अपने निर्धारित समय 10 बजे पठानकोट से खुल गयी। पठानकोट शहर पार करते ही धौलाधार पर्वत दिखने लगा। वैसे ये पूरा रास्ता मनोरम है। रेलवे ट्रैक के दोनों तरफ दूर दूर तक बस पहाड़ और जंगल। इन मनोरम वादियों को देखकर लगता है कि बस यहीं रह जाएं। इस पूरे रास्ते में कभी ट्रेन एक किलोमीटर सीधी नहीं चलती। कभी दाएं तो कभी बाएं होते हुए चलती है। इस ट्रेन यात्रा की मैं जितनी सराहना करूँ बहुत ही कम होगी। इस ट्रेन में खिडकी में लोहे के रॉड नहीं लगे हुए थे। सब लोग पूरे रास्ते खिड़की से अपना सिर निकालकर इन खूबसूरत मनमोहक वादियों का आनंद उठा रहे थे। ट्रेन चलने के बाद जो सबसे पहला स्टेशन आया वो था डलहौजी रोड, छोटा लेकिन खूबसूरत और शांत स्टेशन।

मेरे पास टिकट काँगड़ा मंदिर तक का था। एक आदमी को मैंने ये कहते सुना कि ज्वाला देवी धाम जाने के लिए ज्वालामुखी रोड ही उतरना ठीक होता है। कांगड़ा मंदिर ज्वालामुखी रोड से 3 स्टेशन आगे था। ज्वालामुखी रोड के बाद पहले कोपड़लहड़, फिर काँगड़ा और उसके काँगड़ा मंदिर आता है। फिर आप वहां से ज्वालादेवी जायेगे तो बस फिर इधर ही वापस आएगी ज्वाला देवी धाम जाने इधर से होकर ही जाएगी। उन लोगों की बात सुनकर मैं ज्वालामुखी रोड पर उतर जाने का मन बना लिया।

पठानकोट में ट्रेन में जितने लोग थे सब कांगड़ा मंदिर जाने वाले ही थे। जिस डब्बे में मैं था उसमें से केवल 2-4 लोग ही ज्वालामुखी रोड पर उतरने वाले थे। ट्रेन में जितनी धक्का-मुक्की थी उसके हिसाब से ट्रेन ज्वालामुखी रोड पर पहुँचने के बाद उतर पाना आसान नहीं था। ज्वालामुखी रोड से पहले का स्टेशन त्रिपाल हॉल्ट है। यहाँ से ट्रेन खुलने के बाद ही मैं दरवाजे के पास आकर खड़ा हो गया कि जैसे ही ट्रेन ज्वालामुखी रोड पर रुकेगी मैं उतर जाऊंगा और मैंने किया भी वही। ट्रेन के रुकते ही मैं जल्दी से ट्रेन से उतर गया। जिस डब्बे में मैं था उसमें से मेरे अलावा केवल 2 और लोग उतरे और पूरे ट्रेन से मुश्किल से 25 से 30 लोग ही उतरे।  जहाँ हर डब्बे में 100 से ज्यादा लोग थे उनमे से बस 2-4 को उतरता देख कर मैं ये सोचने लगा कि कहीं मैं गलत फैसला तो नहीं ले लिया।  फोटो खीचने के बाद मैं सोचा कि चलो अब  फिर ट्रेन में ही बैठ जाते है और काँगड़ा टेम्पल पर ही उतरेंगे।  पर ये क्या फोटो लेने में मैं इतना मशगूल हो गया था कि ट्रेन कब चली गयी पता ही नहीं चला।  प्लेटफार्म और स्टेशन बिलकुल खाली हो चुका था। 


ट्रेन पठानकोट से 10 बजे चली थी और अभी 3 बज रहे थे। 5 घंटे का  सफर हिमालय की मनमोहक वादियों में कैसे पूरा हुआ पता ही नहीं चल पाया। अगर ये यात्रा 5 के बदले 15 घंटे की होती तो भी कम लगती। ट्रेन से उतरने के और कुछ फोटो लेने के बाद मैं स्टेशन से बाहर गया। अब तक भूख देवता भी अपना रंग दिखाने लगे थे। सुबह से कुछ खाया नहीं था।  मुझे बिना नहाये खाने की आदत नहीं है इसलिए मजबूरी में मुझे अभी कुछ और देर बिना कुछ खाये ही रहना था। एक बात और जो आदमी अपनी भूख को नहीं रोक सकता वो जिंदगी में घुमक्कड़ी का मज़ा नहीं ले सकता।  

बिना कोई समय गंवाए मैं सीधा स्टेशन से बाहर निकला। स्टेशन के बाहर कुछ छोटी छोटी दुकानें थी और वही सड़क पर कुछ टैक्सियां भी खड़ी थी।  बहुत सोच विचार के बाद कि किससे पूछें , कौन क्या जवाब देगा।  अनजान जगह पर अनजान लोगों को वैसे भी पता नहीं लोग क्यों तिरछी नज़रों से देखते है ये वो देखने वाले ही जानें। इससे पूछें कि उससे पूछें की उधेड़बुन में मैं एक टैक्सी वाले से पूछा (अब वो संवाद देखिये ):

मैं : ज्वालादेवी की गाड़ी कहाँ मिलेगी।
टैक्सीवाला : कितने आदमी हैं। 
मैं : अकेले हूँ। 
टैक्सीवाला : टैक्सी से जायेंगे या बस से। 
मैं : अकेला आदमी हूँ भाई टैक्सी से नहीं से नहीं बस से जाऊँगा और वैसे भी मैं घुमक्कड़ हूँ पर्यटक नहीं। 
टैक्सीवाला : (आगे और ऊपर की तरफ इशारा करते हुए)  ऊपर उस पेट्रोल पंप के पास चले जाइये वही मिल जाएगी बस। 

मैं उसके बताये अनुसार पेट्रोल पंप के पास गया।  जाते ही एक बस आयी जिस पर बोर्ड लगा हुआ था "काँगड़ा से ज्वालादेवी"। मैंने बस पर चढ़ने से पहले कंडक्टर से पूछा कि क्या ये बड़ी ज्वालादेवी जाएगी तो उसने बताया कि हम तो ज्वालादेवी से आ रहे है, आप दूसरे साइड में चले जाओ।  मैं दूसरे साइड में जाकर खड़ा हो गया। मैंने एक निगाह घड़ी पर डाली तो देखा की 3 :15 बज चुके हैं। हिमाचल में बस के लिए आपको ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ता है। यहाँ हर 5 मिनट में आपको बस मिल जाएगी। एक बात और यहाँ बस में सीट के लिए भी कोई मारा-मारी नहीं रहती।  दूसरी बात ये कि यहाँ बसें ज्यादा रूकती नहीं है अपने टाइम-टेबल  के अनुसार चलती है। करीब 5 मिनट बाद बस आ गयी। मैं उस बस में सवार हो गया।  बस आधी से ज्यादा खाली थी। कंडक्टर आया और मुझसे 30 रूपये किराये के लिए। करीब एक किलोमीटर के सफर के बाद दो रास्ते हो जाते हैं।  एक रास्ता ज्वालादेवी जाती है और दूसरा रास्ता बगलामुखी मंदिर और चिंतपूर्णी मंदिर जाती है। करीब 30 मिनट के सफर के बाद हम ज्वालादेवी पहुँच गए।

 आज बस इतना ही।  उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरा संस्मरण पसंद आया होगा।  जैसी भी लगे कमेंट जरूर कीजियेगा।  बने रहिये मेरे साथ हम आते है छोटे से अंतराल के बाद।





अब कुछ फोटो हो जाये :








हिमालय की धौलाधार चोटी पठानकोट से

डलहौजी रोड स्टेशन पर खड़ी दूसरी ट्रेन

एक नदी को पर करती हुई ट्रेन

ट्रेन घने जंगलों से गुजरती हुई

ट्रेन घने जंगलों से गुजरती हुई

पहाड़ों के साथ चलती ट्रेन

हिमालय की सफेद चोटियां 

एक स्टेशन जिसका नाम कितना अलग तरह का है

भरमाड़ स्टेशन

एक विशाल नदी

पानी की कारनामा

नदी और उसमे घूमने जानवर

इसे क्या नाम दूं (आप ही कोई कैप्शन बता दो )

हिमाचल के घर

मेघराज पुरा स्टेशन

ट्रेन में भीड़ का अंदाज आप इसे देखकर लगा सकते हैं

नदी और खेत

इस हरी-भरी वादी में भी इस पेड़ पर कोई पत्ता नहीं है

लोगों से भरी ट्रेन जंगलों से होकर गुजरती हुई

पानी की कारगुजारी

एक स्टेशन का नाम नगरोटा है और एक का नाम नगरोटा सूरियां

जंगल, पहाड़ और बसावट 

जुगलबन्दी

कल-कल, झर-झर बहती नदी

ज्वालामुखी रोड से पहले का स्टेशन त्रिपल हाल्ट

ज्वालामुखी रोड स्टेशन

ज्वालामुखी रोड स्टेशन पर रेलवे समय-सारणी

ज्वालामुखी रोडस्टेशन के बाहर यहीं से बसें मिलती है

ज्वालामुखी स्टेशन के रानीखेत का बाजार

बिना पत्ते का पेड़

32 comments:

  1. बहुत बढ़िया यात्रा विवरण !

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    1. आपने अपना समय देकर इस पोस्ट को पढ़ा उसके लिए बहुत सारा धन्यवाद। मुग़ल गार्डन पर एक नयी पोस्ट लिखे है एक बार उसे भी पढ़ें

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    2. मै भी उस ट्रेन से यात्रा की है उस रेलगाड़ी सेजितनी बाहर की खूबसूरती उससे ज्यादा खूबसूरती वहां की औरतों की होती है। उस रेलगाड़ी से बैजनाथ तक जाती है बड़ा ही आनन्द उठाते हुए आप सफर कर सकते हैं। 👍👍👍👍🌹🌹🌹🌹🌹🌹❤️❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  2. पठानकोट स्टेशन पहले से था लेकिन पठानकोट केंट अभी हाल ही में बना है इसके पहले चक्की बेंक नाम था यही से जम्मू ,दिल्ली ,बॉम्बे की गाड़ियां चलती है। डलहौजी तो रेलमार्ग नही है फिर ये कौन सा स्टेशन है।जवालामाता मैं भी गई हूँ।

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    1. बुआ डलहौजी नहीं डलहौजी रोड है स्टेशन का नाम, पठानकोट जंक्शन मैं पहली बार गया था, वैष्णो देवी जाते समय तो ट्रेन पठानकोट कैंट से ही अलग हो जाती है

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  3. बहुत शानदार यात्रा विवरण

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको

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  4. मैंने कांगड़ा वैली वाली ट्रेन में पालनपुर से पठानकोट तक कि यात्रा की है, बहुत ही शानदार अनुभव रहा

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको। हमने दोबार इस रेल में सफर किया पहला पठानकोट से ज्वालादेवी रोड दूसरा बैजनाथ से पठानकोट।

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    1. बहुत सारा धन्यवाद आपको।

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  6. क्या छोटी ट्रेन में भीड अधिक होती है?

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    1. हां जी भीड़ तो होती है, और नवरात्राों के समय थोड़ा ज्यादा हो जाता है। और अगर आप पहले पहुंचकर सीट हासिल कर लेते हैं तो कोई दिक्कत नहीं।

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  7. आपने घूम कर बहुत अच्छी जानकारी दी है जय ज्वाला देवी

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको

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  8. Nice information who wants to visit jwala devi and kangra devi

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको

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  9. Mjhe y janna h pathankot s kangra k liye train ki timing kya kya h

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको

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  10. shach me aisha lagta hai jese vahi par rahe chhod do sab duniya jai mata di

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको

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  11. ज्वालाजी में परिवार के साथ आने पर रुकने की व्यवस्था कैसी है

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    1. ज्वालाजी में रहने की कोई दिक्कत नहीं है वहां हर बजट के लोगों के लिए हर तरह के कमरे बहुत आसानी से मिल जाते हैं। आप कभी भी किसी मौसम में जा सकते हैं, पर पर नवरात्रि के समय भीड़ बहुत रहती है।

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  12. Nice to know about kangra valley train journey experience. Pictures shared are really amusing. To hire taxi service in Darjeeling, kindly visit www.99carrentals.com.

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