पठानकोट से दिल्ली (Pathankot to Delhi)
इस पोस्ट को लिखने से पहले मैं बार बार यही सोच रहा था कि मैं अगर इससे पीछे वाली पोस्ट को ही अगर मैं थोड़ा और बड़ा कर देता तो ये पोस्ट लिखनी नहीं पड़ती, और अगर उसी पोस्ट में इसे जोड़ भी देता तो शायद पोस्ट लम्बी और उबाऊ हो जाती। खैर रहने दीजिये इन बातों को, इन बातों का कोई निष्कर्ष तो निकलने वाला है नहीं तो उसके बारे में बोलने या लिखने से क्या फायदा। अब आज की यात्रा की बात करते हैं।
5 दिन पहले में जिस सफर की शुरुआत की थी आज उसके अंजाम तक पहुँचने का दिन आ चुका था। कल पूरे दिन बस और ट्रेन का सफर (करीब 110 किलोमीटर बस और करीब 220 किलोमीटर ट्रेन का सफर) और इधर उधर की भागा-दौड़ी का ये प्रभाव हुआ कि आज सुबह उठने का मन बिलकुल नहीं हो रहा था। 4 :30 बजे अलार्म बजने के साथ ही नींद टूटी तो मैं अलार्म बंद करके फिर सो गया, दूसरी बार अलार्म 5:00 बजे बजा तो उठा और 5:30 बजते बजते जल्दी जल्दी नहा धोकर तैयार हुआ और ये सोचकर स्टेशन से बाहर गया कि कुछ खा-पी लिया जाये क्योकि ट्रेन पर का खाना मुझे बिलकुल पसंद नहीं है, यदि यहाँ नहीं खाया तो पूरे दिन बिना कुछ खाये ही रहना पड़ेगा। स्टेशन से बाहर जाकर भी निराशा ही हाथ लगी, एक चाय की दुकान तक नहीं खुली थी, इधर उधर देखा और कुछ दूर तक भी गया फिर भी कुछ खाने पीने के लिए नहीं मिला। एक कहावत है न कि अपना सा मुँह बना लेना, वही मेरे साथ हुआ, जिसे फुर्ती से मैं स्टेशन से बाहर चाय पीने गया था और कुछ न मिलने के कारण उसी फुर्ती से मुँह बना कर वापस आ गया।
5 दिन पहले में जिस सफर की शुरुआत की थी आज उसके अंजाम तक पहुँचने का दिन आ चुका था। कल पूरे दिन बस और ट्रेन का सफर (करीब 110 किलोमीटर बस और करीब 220 किलोमीटर ट्रेन का सफर) और इधर उधर की भागा-दौड़ी का ये प्रभाव हुआ कि आज सुबह उठने का मन बिलकुल नहीं हो रहा था। 4 :30 बजे अलार्म बजने के साथ ही नींद टूटी तो मैं अलार्म बंद करके फिर सो गया, दूसरी बार अलार्म 5:00 बजे बजा तो उठा और 5:30 बजते बजते जल्दी जल्दी नहा धोकर तैयार हुआ और ये सोचकर स्टेशन से बाहर गया कि कुछ खा-पी लिया जाये क्योकि ट्रेन पर का खाना मुझे बिलकुल पसंद नहीं है, यदि यहाँ नहीं खाया तो पूरे दिन बिना कुछ खाये ही रहना पड़ेगा। स्टेशन से बाहर जाकर भी निराशा ही हाथ लगी, एक चाय की दुकान तक नहीं खुली थी, इधर उधर देखा और कुछ दूर तक भी गया फिर भी कुछ खाने पीने के लिए नहीं मिला। एक कहावत है न कि अपना सा मुँह बना लेना, वही मेरे साथ हुआ, जिसे फुर्ती से मैं स्टेशन से बाहर चाय पीने गया था और कुछ न मिलने के कारण उसी फुर्ती से मुँह बना कर वापस आ गया।