Friday, September 15, 2017

कन्याकुमारी यात्रा (भाग 2) : भगवती अम्मन मंदिर और विवेकानंद रॉक मेमोरियल

कन्याकुमारी यात्रा (भाग 2) :
भगवती अम्मन मंदिर और विवेकानंद रॉक मेमोरियल 




विवेकनन्द आश्रम में स्थित सनराइज व्यू पॉइंट से सूर्योदय का विस्मरणीय और मनमोहक नजारा देखने के बाद आइये अब हम चलते है भगवती अम्मन मदिर, विवेकानंद रॉक मेमोरियल और फिर उसके बाद कुछ और जगहों की सैर करेंगे। 8 बज चुके थे और हम अपने कमरे से निकलकर उस जगह पर आकर बस का इंतज़ार करने लगे जहाँ से आश्रम की बसें यहाँ आने वाले लोगों को लेकर संगम तक जाती है। बस आने का समय 9:30 बजे था और फिर यहाँ से जाने का समय 10:30 बजे था। 2 घंटे तक यहाँ बैठकर इतंजार करना तो ठीक बिलकुल भी नहीं था तो हमने ऑटो से जाना ही अच्छा समझा। अब सड़क पर होते तो कोई ऑटो बहुत आसानी से मिल जाती पर आश्रम के अंदर ऑटो तभी आती है जब वो किसी को यहाँ छोड़ने आया हो। कुछ मिनट के इंतज़ार के बाद भी जब कोई ऑटो नहीं आया तो हम पैदल ही चल पड़े। अभी कुछ ही कदम चले थे कि एक ऑटो आता हुआ दिखाई दिया जो कुछ लोगो को स्टेशन से लेकर यहाँ आया था। हमने उस ऑटो वाले को संगम तक छोड़ने को कहा तो उसने 5 आदमी का 50 रुपये  माँगा। हम भी ख़ुशी खुशी ऑटो बैठ गए और करीब 10 मिनट के सफर के बाद हम उस जगह पर पहुंच गए जहाँ से एक रास्ता मंदिर की तरफ और एक विवेकनन्द रॉक मेमोरियल की तरफ जाता है और किसी भी प्रकार की गाड़ी का यहाँ से आगे जाना निषेध है।

  
8:30 बज चुके थे। ऑटो से उतरकर हम पहले मंदिर की तरफ चले गए। कुछ देर तक यही चहलकदमी करने के बाद मंदिर में प्रवेश के लिए मंदिर के प्रवेश द्वार पर गए तो कुछ अजीब बात पता लगी। मंदिर के अंदर प्रवेश करने वाले पुरुषो को ऊपर के वस्त्र उतारना जरूरी था। ये बात मुझे बड़ी अजीब लगी पर परम्पराओं का पालन करना भी जरूरी था, तो हमने भी अपने शर्ट और बनियान उतारकर बैग में रखा और चल पड़े माँ भगवती के दर्शन करने। भीड़ ज्यादा नहीं थी फिर भी करीब 200 लोग तो होंगे ही। धीरे धीरे लाइन आगे बढ़ रही थी और दर्शन करने तक में करीब एक घंटे का समय हो चुका था। मंदिर के अंदर ही दीपक जलाने के लिए पुजारी लोग तेल बेच रहे थे जिसकी कीमत 10 रुपए थी। हमने भी 10 रूपये की एक शीशी तेल लिया और दीपक जला लिया। मंदिर के गर्भ गृह में जाने के बाद यहाँ भी और जगह की तरह पण्डे का प्रकोप देखने को मिला, यहाँ वो आने वाले श्रद्धालुओं से सौदा करने में लगे थे। नजदीक से दर्शन करने के 50 रूपये और दूर से दर्शन करने के मुफ्त। यहाँ मैंने दूर से ही दर्शन करना अच्छा समझा , क्योंकि ऐसा तो है नहीं कि नज़दीक से दर्शन करने पर माता ज्यादा आशीर्वाद देंगी और दूर से दर्शन करने पर आशीर्वाद नहीं देंगी और वैसे भी मेरे असली देवता (माता-पिता) तो मेरे साथ थे ही। मंदिर में दर्शन करके बाहर निकलते निकलते 9:45 बज चुके थे।मंदिर में दर्शन के पश्चात हमारा अगला पड़ाव विवेकानन्द रॉक मेमोरियल था जो यहीं पास में ही समुद्र के बीच खड़ा हमारा इंतज़ार कर रहा था। 

विवेकानंद रॉक मेमोरियल जाने के लिए एक मात्र साधन मोटर बोट है जिसके लिए दो श्रेणी के टिकट उपलब्ध थे। पहली श्रेणी के टिकट का मूल्य 34 रुपए था जो सामान्य श्रेणी का टिकट था और दूसरी श्रेणी के टिकट का मूल्य 169 रुपए था जिसे स्पेशल एंट्री टिकट नाम दिया गया था। 34 रुपए और 169 रुपए में आना और जाना दोनों शामिल था। मैंने 34 रुपए का 5 टिकट लिया और आने वाले बोट का इंतज़ार करने लगे, क्योंकि जो बोट डॉक किनारे) पर लगी थी वो भर चुकी थी। कुछ देर के इंतज़ार के बाद दूसरी बोट आ गयी और लोग उसमें सवार होने लगे और हम भी जल्दी से चढ़े और 5 सीटों पर कब्ज़ा जमकर बैठ गए। इतने में ही कुछ और लोग चढ़े जिनके पास 169 रुपए वाला टिकट था वो भी हमारी तरफ भागा भागी करके ही बोट में सवार हुए। उनमें से एक मेरे पीछे वाली सीट पर बैठा और मुझसे पूछा कि क्या आपने भी 169 रुपए वाला टिकट लिया तो जब मैंने उसे बताया कि नहीं जी मैंने तो बस 34 रुपए वाला टिकट लिया है और यहाँ तो एक ही तरह की सीट है और जब सीट एक ही है तो कीमत अलग क्यों और केवल 5 या 10 मिनट के सफर लिए 34 रुपए के बदले 169 रूपए देना मुझे उचित नहीं लगता इसलिए मैंने कम पैसे वाला टिकट ख़रीदा। मेरी बात सुनकर उस बेचारे ने बस इतना ही कहा कि पहली बार ज्यादा पैसे देकर स्पेशल एंट्री का टिकट ख़रीदा पर यहाँ तो सब एक जैसे हो गए, पैसे भी ज्यादा लगे और वीआईपी का अहसास भी नहीं हुआ। उनकी इन बातों से मुझे हंसी आ रहे थी और वो चिढ़ रहे थे। अंततः वो इतना चिढ़ गए कि जोर से बोले कि पहली बार वीआईपी बना और यहाँ आकर जनरल से भी बदतर हो गए। उनकी बात सुनकर जितने लोगों ने 169 का टिकट लिया था सब हो-हल्ला करने लगे। अंततः यही निष्कर्ष निकला कि टिकट चाहे कोई भी लोग सीट एक ही है। 

खैर टिकट कितने का भी हो, हम आज पहली बार समुद्र में सैर कर रहे थे। बोट स्टार्ट हुई और हिलते डुलते चलने लगी और हम आनंदविभोर होने लगे। सफर कैसे पूरा हुआ कुछ पता ही नहीं चला। कुछ ही देर में हम विवेकानंद रॉक मेमोरियल पहुंच गए। यहाँ डॉक पर उतरकर आगे बढ़े और जोरदार बारिश शुरू हो गई। करीब 20 मिनट तक जोरदार बारिश होती रही। एक तो चारो तरफ समुद्र ऊपर से ये बारिश, हर तरफ पानी ही पानी था; आकाश से लेकर पाताल सब पानी से सराबोर था। ये पल मेरे जीवन के उन पलों में शामिल हो गए जिसे कभी भूलना तो दूर, भूलने का खयाल भी नहीं आएगा। कुछ देर बरसने के बाद बादलों ने राहत दी और कहीं दूर निकल गए। मौसम बिलकुल साफ था, जहाँ तक नज़र दौड़ाये बस पानी ही पानी था। पानी की बड़ी बड़ी लहरें आती और बड़े बड़े पत्थरों से टकराकर लौट जाती। इन दृश्यों को देखकर ये समझ पाना मुश्किल था कि यहाँ पानी की लहरें पत्थरों से टकराने के बाद कमजोर पड़ कर वापस जा रही थी या फिर पत्थरों से उसे इतना प्यार है कि वो गले मिलकर वापस जा रही थी। अब जो भी ये मेरी समझ से बाहर की चीज़ थी और हम समझना भी नहीं चाहते थे। ऐसे ही हर चीज़ को देखते देखते 12 बज गए और अब हम यहाँ से वापस जाने की सोचकर फिर से डॉक पर आ गए।  कुछ ही देर में बोट आई, उसमें सवार सभी लोग के उतरने के बाद हम बोट में दाखिल हुए और इस बार भी वो 169 रुपए वाले महाशय मिल गए। मुझे देखते ही उन्होंने अपना दर्द बयान करना शुरू कर दिया और कहने लगे आप ही अच्छे हैं और जो आनंद आपने 34 रुपये खर्च करके ले लिया वो हम 169 रुपये खर्च करके भी नहीं लिया। अब मैं भी उनकी बातों से पूरी तरह कंफ्यूज हो गया। मैंने उनसे सवाल लिया कि भाई साहब जितना सफर मैंने किया किया उतना ही आपने किया, जिस सीट पर आप बैठे उसी सीट पर मैं भी बैठा तो इसमें आनंद में कमी या ज्यादा कहाँ से हो गई। उनका जवाब भी सुनिए, अजी हम तो 169 रुपये बर्बाद हो जाने के गम में डूबे रहे और आप आनंद लेते रहे। मैंने उनको कहा कि कभी कभी आम नागरिक भी बनिए और हर जगह वीआईपी मत बनिए क्योंकि कभी कभी वीआईपी से ज्यादा मज़ा आम लोग ही ले लेते हैं। 

खैर ये उनकी समस्या थी और मैंने तो इन पलों का पूरा आनंद लिया और मुझे कोई गम नहीं था। विवेकानंद रॉक मेमोरियल से वापस आते आते 12:30 बज चुके थे। एक बार हम फिर से मंदिर की तरफ गए तो देखा कि कुछ देर पहले मेरी माता जी ने एक भिखारी को कुछ पैसे दिए थे वो दुकान का मालिक निकला तथा वो एक दुकान पर आसन जमा कर बैठा है और इसलिए मैं कभी भिखारियों को पैसे नहीं देता। चलिए अब आगे चलते हैं। मंदिर के पास पहुंचे तो देखा की मंदिर बंद हो चुका है और वहीं पर एक जगह संगम और गाँधी मंडपम जाने वाले रास्ते का बोर्ड लगा दिख गया तो हम बढ़ चले उसी तरफ और कुछ ही मिनट में गाँधी मंडपम पहुंच गए। गाँधी मंडपम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित है। यही पर महात्मा गांधी की चिता की राख रखी हुई है। इस स्मारक की स्थापना 1956 में हुई थी। महात्मा गांधी 1937 में यहां आए थे। उनकी मृत्‍यु के बाद 1948 में कन्याकुमारी में ही उनकी अस्थियां विसर्जित की गई थी। स्मारक को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर सूर्य की प्रथम किरणें उस स्थान पर पड़ती हैं जहां महात्मा गांधी की राख रखी हुई है। कुछ पल हमने यहाँ भी व्यतीत किया। हम इसकी तीसरी मंज़िल पर गए जहाँ से समुद्र का बहुत ही विहंगम दृश्य देखने को मिला। ऐसा अद्भुत दृश्य की नजरे तो बिलकुल हट ही नहीं रही थी और साथ ही इतनी ऊंचाई से देखने पर भगवती मंदिर भी पूरी तरह दिख रहा था, अगर आप कन्याकुमारी आते है तो एक बार गाँधी स्मारक आकर इस विहंगम दृश्य को जरूर देखें।

कुछ देर यहाँ गुजारने के बाद हम त्रिवेणी संगम की तरफ गए जो बिलकुल वहीं पास में ही है। यहाँ हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का संगम स्थल है, जिसकी छटा बहुत ही निराली है। यहाँ बिखरे रंग बिरंगे रेत इस खूबसूरती को और ज्यादा बढ़ा देते हैं। यहाँ आते ही देखा कि बहुत लोग नहा रहे हैं तो मेरे जैसा फक्कड़ घुम्मकड़ कैसे पीछे रहता और हमने भी एक बार फिर समुद्र में गोता लगाना शुरू कर दिया। उधर मैं गोता लगाने में व्यस्त था तो ईधर कंचन सीपियाँ और मोतियां चुनने तथा रंग बिरंगे बालू इकठ्ठा करने में व्यस्त थी और आदित्या कैमरा लेकर फोटो लेने में। माता जी कंचन के साथ तो पिताजी आदित्या के साथ और मैं समुद्र में गोते लगाने में व्यस्त था। इन ख़ुशी के पलों में समय कब बीत गया कुछ पता ही नहीं चला और 1:30 बज चुके थे। अब तक हमारा कैमरा भी जवाब दे चुका था और अब कोई भी फोटो लेना संभव नहीं था तो हम यहां से सीधे उस जगह चले गए जहां सुबह यहां आते समय आॅटो वाले ने हमें उतारा था। यहां से विवेकानंद आश्रम जाने के लिए आॅटो मिल गई और केवल 50 रुपए में हमें उसने आश्रम पहुंचा दिया। अब तक 2 बज चुके थे। यहां पहुंचकर सबसे पहले हमने कैमरे और मोबाइल को चार्ज पर लगाया और आश्रम में ही कुछ जगहों को देखने के लिए निकल पड़े। वैसे तो पूरा आश्रम ही अपने आप में अनूठा है। यहां की हर चीज निराली है। यहां शांति का जो आभास होता है वो शहरों में बहुत मुश्किल से ही मिल पाता है। समूचे आश्रम में अगर सबसे ज्यादा किसी चीज की आवाज सुनाई देती है तो वो मोर की सुरीली आवाज है तथा ये सुरीली आवाज बिलकुल ही मंत्रामुग्ध कर देती है। आश्रम में हमें जितनी चीजें देखने को मिली उसमें से मुझे सबसे ज्यादा अच्छा भारत माता मंदिर लगा। मैं यहां आपसे क्षमा भी मांगना चाहूंगा कि मैं यहां की फोटो आपको नहीं दिखा सकता क्योंकि इस समय कैमरा हमारे पास उपलब्ध नहीं था। आश्रम में हमने एक घंटे से ज्यादा समय बिताया और फिर कमरे पर आ गए। कन्याकुमारी के बाद हमारा अगला पड़ाव त्रिवेंद्रम था और त्रिवेंद्रम की ट्रेन शाम 4ः30 बजे थी। 3:30 बज चुके थे और अब हमारा यहां से विदा लेने का समय हो रहा था। 

हमने देर न करते हुए अब यहां से निकलना ही उचित समझा और सामान उठाकर रिसेप्शन पर आ गया। कमरे की चाभी वहां के स्टाफ को सुपुर्द किया और स्टेशन के लिए निकल पड़े। वहीं कुछ आॅटो वाले खड़े थे उनमें से ही एक आॅटो पर बैठे और 4 बजे से पहले ही स्टेशन पहुंच गए। स्टेशन पहुंचकर कन्याकुमारी से त्रिवेंद्रम की पांच टिकटें ली और प्लेटफाॅर्म पर आ गए। ट्रेन खड़ी थी और इक्का-दुक्का आदमी ही उसमें दिख रहे थे। हमने भी एक बिल्कुल खाली बोगी में जगह देखकर अपना अड्डा जमा लिया। ठीक 4ः30 बजे ट्रेन कन्याकुमारी से त्रिवेंद्रम के लिए प्रस्थान कर गई। पूरे रास्ते केले और नारियल के हरे भरे पेड़ मंत्रमुग्ध करते रहे। अभी तक इस यात्रा में रामेश्वरम से कन्याकुमारी तक आने का सफर हमने रात में किया था और रात के कारण इन खूबसूरत नजारों से हमारा सामना नहीं हो सका था। अभी इन रास्तों को देखकर ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम हकीकत की दुनिया में है, सब कुछ सपने के जैसा लग रहा था। कुछ ही देर में हम नागरकोइल जंक्शन पहुंच गए। यहां से ट्रेन के खुलने के बाद एक बार फिर बरसात आरंभ हो गई। पहाड़ों के ऊपर बादल बहुत सुहावने लग रहे थे। करीब एक घंटे तक बरसात होती रही और जब तक बरसात बंद हुई तब तक बाहर अंधेरा हो चुका था। इस दौरान ट्रेन विभिन्न स्टेशनों से गुजरती हुई अपने समय 7ः30 बजे से आधा घंटा पहले 7 बजे ही त्रिवेंद्रम पहुंच गई। त्रिवेंद्रम में रुकने के लिए हमने पहले से ही रेलवे रिटायरिंग रूम बुक करवा रखा था जो रेलवे स्टेशन में ही पहली मंजिल पर स्थित है। ट्रेन से उतर कर पूछते हुए सीधे पहली मंजिल पर गए। वहीं मुझे कमरा दे दिया गया और फिर उसके बाद हम थोड़ा त्रिवेंद्रम घूमने निकले और पद्मनाभ स्वामी मंदिर और कोवलम बीच की जानकारी प्राप्त करने के बाद रेलवे स्टेशन परिसर में ही बने फुड प्लाजा में खाना खाए और फिर कल के लिए तैयारी करके सोने की तैयारी करने लगे। थकान इतनी थी कि नींद कब आ गई पता ही नहीं चला। आज के लिए बस इतना ही इससे आगे की जानकारी अगले पोस्ट में जिसमें पद्मनाभ स्वामी मंदिर में गोविंदा के दर्शन और फिर उसके बाद कोवलम बीच की सैर पर चलेंगे। तब तक के लिए आज्ञा दीजिए। 


कुछ प्रमुख दर्शनीय स्मारकों के खुलने का समय

देवी कन्याकुमारी मंदिर
सुबह 4:30 बजे से दोपहर 12:15 बजे तक
शाम 4:30 बजे से रात्रि 8:15 बजे तक

विवेकानन्द राॅक मेमोरियल
सुबह 8:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक

तिरुवल्लुवर मूर्ति
सुबह 8:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक

वांडरिंग मांक एक्जीबिजशन
सुबह 8:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक
शाम 4:00 बजे से रात्रि 8:00 बजे तक

गांधी मेमोरियल और कामराज मेमोरियल
सुबह 7:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक
दोपहर 2:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक

गुगनाथेश्वर मंदिर (रेलवे स्टेशन के पास)
सुबह 5:30 बजे से सुबह 10:00 बजे तक
शाम 5:30 बजे से रात्रि 8:00 बजे तक

त्रिवेणी संगम, शंकराचार्य मंदिर और मोम संग्रहालय 
सुबह 9:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक  


रेलवे रिटायरिंग रूम बुक करने की विधि

यदि आपके पास कन्फर्म या आरएसी टिकट है तभी आप रिटायरिंग बुक कर सकते हैं। इसकी बुकिंग https://www.irctc.co.in या http://www.irctctourism.com वेबसाइट पर होती है। Accomodation में जाकर आप रिटायरिंग रूम पर क्लिक करें। अब एक पेज खुलेगा जिस पर आप अपना पीएनआर नम्बर टाइप करें और उसके बाद ओके बटन पर क्लिक करें। इसके बाद जो पेज खुलेगा उस पर आप किस स्टेशन पर बुक करना चाहते हैं उसके बारे में पूछा जाएगा, ये आपके ट्रेन के प्रस्थान का स्टेशन होगा या गंतव्य स्टेशन होगा। जहां से आप यात्रा आरंभ करते हैं या जहां आपकी यात्रा समाप्त हो रही है। उसके बाद आप तिथि और रूम का टाइप सेलेक्ट करें उसके बाद यात्रिायों का नाम और जानकारी भरें तथा उसके बाद पेमेंट करें।



इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें  

भाग 3 : मरीना बीच, चेन्नई (Marina Beach, Chennai)
भाग 4: चेन्नई से तिरुमला
भाग 5: तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन
भाग 6: देवी पद्मावती मंदिर (तिरुपति) यात्रा और दर्शन
भाग 7: तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम की ट्रेन यात्रा
भाग 8: रामेश्वरम यात्रा (भाग 1) : ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: रामेश्वरम यात्रा (भाग 2): धनुषकोडि बीच और अन्य स्थल
भाग 10: कन्याकुमारी यात्रा (भाग 1) : सनराइज व्यू पॉइंट
भाग 11 : कन्याकुमारी यात्रा (भाग 2) : भगवती अम्मन मंदिर और विवेकानंद रॉक मेमोरियल



आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :




देवी कन्याकुमारी मंदिर (भगवती अम्मन मंदिर)

देवी कन्याकुमारी मंदिर (भगवती अम्मन मंदिर)

मंदिर के पास आदित्या 

विवेकानंद रॉक मेमोरियल

विवेकानन्द रॉक मेमोरियल और तिरुवल्लुवर की मूर्ति 

मंदिर के पास बाजार 

किनारे पर खड़ी नावें  

इसी में से एक बोट से हम विवेकानंद रॉक मेमोरियल गए थे 

किनारे पर खड़ी नावें 

समुद्र में विचरता नाव 

विवेकानन्द रॉक मेमोरियल (बोट से लिया गया फोटो)

विवेकानन्द रॉक मेमोरियल पर बरसात से बचते लोग 

तिरुवल्लुवर की मूर्ति 

समुद्र में चट्टान 

चट्टान से टकराती लहरें 

चट्टान से टकराती लहरें

समुंदर में मोटरबोट 

विवेकानन्द रॉक मेमोरियल का एक दृश्य 

बरसात के लक्षण 

विवेकानन्द रॉक मेमोरियल और तिरुवल्लुवर की मूर्ति 

गाँधी मंडपम 

गांधी मंडपम 

समुद्री लहरें पत्थरों से टकराती हुई 

त्रिवेणी संगम का एक दृश्य 

त्रिवेणी संगम पर धर्म ध्वजा 

समुद्री किनारा 

वाह क्या दृश्य है 

विवेकानन्द आश्रम में एक मंदिर का विहंगम दृश्य 

कन्याकुमारी स्टेशन 

कन्याकुमारी से त्रिवेंद्रम के रास्ते में बरसात 

नागरकोइल जंक्शन 

पहाड़ के ऊपर बादल 

पहाड़ के ऊपर बादल

केले और नारियल का पेड़ 

कुलित्तुरै वेस्ट स्टेशन 

पारश्शाला स्टेशन 



इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें  

भाग 3 : मरीना बीच, चेन्नई (Marina Beach, Chennai)
भाग 4: चेन्नई से तिरुमला
भाग 5: तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन
भाग 6: देवी पद्मावती मंदिर (तिरुपति) यात्रा और दर्शन
भाग 7: तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम की ट्रेन यात्रा
भाग 8: रामेश्वरम यात्रा (भाग 1) : ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: रामेश्वरम यात्रा (भाग 2): धनुषकोडि बीच और अन्य स्थल
भाग 10: कन्याकुमारी यात्रा (भाग 1) : सनराइज व्यू पॉइंट
भाग 11 : कन्याकुमारी यात्रा (भाग 2) : भगवती अम्मन मंदिर और विवेकानंद रॉक मेमोरियल

11 comments:

  1. वो बोट में दो तरह की टिकट वाला किस्सा मजेदार लगा और घूम तो मजे से ही रहे है आपके साथ...बढ़िया पोस्ट

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी आपका, बस ऐसे ही संवाद बनाए रखिएगा, हां भाई जी मैंने भी पहले सोचा था कि 169 रुपए वाला ही टिकट लूं फिर सोचा कि 170 रुपए में सबका टिकट हो जाएगा और उतने ही पैसे में केवल एक टिकट तो ये पैसे की बरबादी होगी और 34 रुपए वाला टिकट ही लिया और उसका लुत्फ उठाया

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  2. अभयानंद जी, बहुत खूब आपने मेरी कन्याकुमारी यात्रा यात्राताज़ा कर दी... परन्तु आप नागरकोविल के पास सुचेन्द्रम् मंदिर छोड़ गए, यह बेहद खूबसूरत मंदिर ब्रह्मा विष्णु महादेव यानि त्रिदेव भगवान का पूरे विश्व में एक मात्र मंदिर है।

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    1. विकास नारदा जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका, आप जिस मंदिर के बारे में बता रहे हैं उसकी जानकारी पहले से नहीं थी और अगर जानकारी होती तो शायद वहां के दर्शन भी कर लेता, पर कोई बात नहीं कुछ छूटेगा तभी तो आगे फिर से जाने की इच्छा होगी

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  3. त्रिवेंद्रम में रेलवे रिटायरिंग रुम बुक करने की विधि समझाये। बहुत जनों को लाभ होगा।
    मुझे तो जरूर होगा।

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    1. रेलवे रिटायरिंग रूम बुक करने की विधि
      यदि आपके पास कन्फर्म या आरएसी टिकट है तभी आप रिटायरिंग बुक कर सकते हैं। इसकी बुकिंग https://www.irctc.co.in या http://www.irctctourism.com वेबसाइट पर होती है। Accomodation में जाकर आप रिटायरिंग रूम पर क्लिक करें। अब एक पेज खुलेगा जिस पर आप अपना पीएनआर नम्बर टाइप करें और उसके बाद ओके बटन पर क्लिक करें। इसके बाद जो पेज खुलेगा उस पर आप किस स्टेशन पर बुक करना चाहते हैं उसके बारे में पूछा जाएगा, ये आपके ट्रेन के प्रस्थान का स्टेशन होगा या गंतव्य स्टेशन होगा। जहां से आप यात्रा आरंभ करते हैं या जहां आपकी यात्रा समाप्त हो रही है। उसके बाद आप तिथि और रूम का टाइप सेलेक्ट करें उसके बाद यात्रिायों का नाम और जानकारी भरें तथा उसके बाद पेमेंट करें।

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    2. धन्यवाद, महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने के लिए,

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    3. बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी

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  4. लग रहा है आपने सारा दक्षिण भारत एक ही बार में निपटाने का फैसला कर लिया है।
    बोट के किराये यहाँ फिर भी सस्ते हैं। कई जगह तो इतने महँगे हैं कि बोटिंग का विचार ही त्यागना पड़ता है। ये कमरे वगैरह की बुकिंग आप यात्रा आरम्भ करने के पहले ही कर लेते हैं क्याǃ

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    1. जय हो, सारा दक्षिण भारत नहीं भाई जी, बस दक्षिण भारत का थोड़ा सा हिस्सा निपटाने की कोशिश में हूं जिसमें भी कुछ कुछ छूट रहा है जो अगली यात्राा में निपटाया जाएगा। यहां यहां बोट का किराया बहुत ही कम है, जी हां भाई जी हम कमरे की बुकिंग पहले से ही कर लेते हैं, जिससे बाद में मोल-तोल और परेशानी से बचा जा सके, जब पूरे परिवार के साथ जा रहे हैं तो पहले से ही बुक करना सुविधाजनक लगता है मुझे

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद आपको

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