Friday, September 8, 2017

कन्याकुमारी यात्रा (भाग 1) : सनराइज व्यू पॉइंट

कन्याकुमारी यात्रा (भाग 1) : सनराइज व्यू पॉइंट



रामश्वेरम में जो ट्रेन में बैठे तो कन्याकुमारी पहुंचने से कुछ मिनट पहले ही नींद खुली। घड़ी देखा तो सुबह के 4 बजने वाले थे मतलब ट्रेन पहुंचने ही वाली थी क्योंकि ट्रेन के पहुंचने का समय 4 बजकर 5 मिनट था और देखते ही देखते ट्रेन अपने समय से कुछ पहले ही स्टेशन पहुंच गई। लोग ट्रेन से उतरने के लिए आपा धापी करने लगे, पर हमें कोई जल्दबाजी नहीं थी क्योंकि कन्याकुमारी इस ट्रेन का गंतव्य स्टेशन था और वैसे भी कन्याकुमारी आने वाली हरेक ट्रेन का ये गंतव्य स्टेशन ही होता है। सब लोगों के ट्रेन से उतर जाने के बाद हम आराम से ट्रेन से उतरे और स्टेशन से बाहर आ गए। अभी 4 बजे थे और हर तरफ घना अँधेरा था। यहाँ से हमें विवेकानंद आश्रम जाना था जहाँ पहले से हमने कमरा बुक करवा रखा था। स्टेशन से बाहर आया तो ऑटो वाला कोई 200 तो कोई 150 मांग रहा था और ये मेरे हिसाब से बहुत ज्यादा था क्योंकि मेरे एक घुम्मकड़ मित्र नरेंद्र शेलोकर ने जैसा बताया था उस हिसाब से 50 रूपये में कोई भी ऑटो वाला स्टेशन से विवेकानंद आश्रम पहुंचा देगा और हुआ भी यही। कुछ मिनट इंतज़ार के बाद एक ऑटो वाला खुद ही 50 रुपये में आश्रम पहुँचाने के लिए तैयार हो गया। जब ऑटो वाला खुद ही 50 रूपये मांगे तो मोल-तोल करने की भी कोई आवश्यकता नहीं थी और हम ऑटो में बैठ गए और करीब 10 मिनट में ही आश्रम पहुंच गए। 


अभी 4:30 बज रहे थे और आश्रम में कमरे की बुकिंग 8 बजे से थी और मुझे अभी कमरा मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी कि क्योंकि रिसेप्शन पर कुछ लोग 8 बजने का इंतज़ार कर रहे थे। नाउम्मीदी होते हुए भी मैंने वहां के स्टाफ से पूछा तो उन्होंने कमरा अभी तुरंत देने के लिए हां कर दिया क्योंकि हमने कमरा ऑनलाइन पहले ही बुक करा रखा था, पर साथ ही उन्होंने जिस कमरे की बुकिंग मैंने करवाई थी वो कमरा देने में असमर्थता जाहिर की क्योंकि उस कमरे में रुके हुए लोग सूर्योदय देखने के बाद जाएंगे और मैंने भी दूसरा कमरा लेना सहर्ष स्वीकार कर लिया क्योंकि बाहर बैठने से अच्छा हम किसी स्थायी जगह पर चले जाएं। कागजी कार्रवाई करने के बाद उन्होंने मुझे 4 बेड का एक कमरा दे दिया और साथ ही एक व्यक्ति को हमें कमरे तक पहुँचाने के लिए भी कह दिया। रास्ते में मैंने उससे सनराइज व्यू पॉइंट पर जाने के बारे में जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने थोड़ी थोड़ी हिंदी बोलकर मुझे जानकारी दे दिया कि अधिकतम 5:30 तक मैं कमरे से निकल जाऊं तभी मैं सूर्योदय का मज़ा ले सकता हूँ। मैंने उनको कहा कि 5:30 बजे क्यों मैं अभी सामान रखकर निकल जाऊंगा तो उन्होने 5:30 बजे से पहले वहां ना जाने की सलाह दी क्योंकि उससे पहले वहां जाने के लिए दरवाजे खोले ही नहीं जाएंगे। 5:30 बजने में अभी एक घंटा था और इतना समय हम सबके लिए तैयार होने के लिए काफी था और वैसे हम लोग इससे भी कम समय में तैयार होकर 5:15 बजते ही सनराइज देखने के लिए निकल पड़े। 

करीब 10 मिनट में हम वहां पहुंच गए जहाँ से सैकड़ों लोग सूर्योदय को देखने के लिए आते हैं। सुबह हो चला था फिर भी पश्चिम दिशा में चाँद अभी तक अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था। सूर्योदय होने में अभी कुछ समय बच रहा था और मुझ जैसा मैदानी इलाके में रहने वाला आदमी समुद्र को देखकर फिर से पागल हो चुका था। धीरे धीरे यहां आने वाले लोगो की संख्या में इजाफा होते गया और कुछ ही देर में करीब 500 लोग सूर्योदय के उस दृश्य को देखने के लिए पहुंच चुके थे। आज तक बहुत लोगो से सुना और बहुत जगह पढ़ा था कि कन्याकुमारी में सूर्योदय का जो नज़ारा देखने को मिलता है वो एक अविस्मरणीय पल होता है जिसे देखने के लिए पूरे देश से लोग यहाँ आते हैं और ये नज़ारा कुछ लोगों को यहाँ आकर भी नहीं मिलता क्योंकि सूर्योदय के समय बादल अपना डेरा जमा कर बैठ जाते हैं और अभी जो हालत थे उसके हिसाब से मुझे भी उस नज़ारे को देखने का सौभाग्य मिलना मुश्किल ही लग रहा था। अब यहाँ आये तो इसी उम्मीद से थे कि मुझे उस दृश्य को देखना है तो अब आगे देख पाना या नहीं देख पाना अपने हाथ में तो था नहीं इसलिए वहीं बालू और पानी में एक छोटे बालक की तरह धमा-चौकड़ी में व्यस्त हो गए और कुछ मिनट बाद उस पत्थर के बने दीवार पर चले गए जो समुद्र में बनाया हुआ था या तो सूर्योदय का नज़ारा देखने के लिए या पानी के लहरों के वेग को कम करने के लिए। दूर दूर तक बस समुद्र ही समुद्र था और हो भी क्यों नहीं आखिर यहाँ समुद्रों का संगम जो है। बादलों का जमघट देखकर यहाँ आये हरेक व्यक्ति के चेहरे पर उदासी साफ झलक रही थी और उसका दर्द कुछ लोगों के होठों पर भी आ चुका था तभी तो कुछ आवाज़ें ये भी सुनने को मिली कि "लगता है हमारा यहाँ आना व्यर्थ ही हो जायेगा"। खैर ये तो उन पर्यटकों की बात थी और हम ठहरे घुम्मकड़ तो हमें तो उम्मीद थी कि हमें सूर्य देव के दर्शन होंगे और हुए भी। 

कुछ ही पलों में आसमान बिलकुल साफ हो गया और ऐसा लग ही नहीं रहा था कि उस तरफ अभी कुछ मिनट पहले इतने बादल थे। धीरे धीरे सूर्य देव के आगमन का आभास होने लगा और अभी जहाँ कुछ देर पहले काली घटाओं ने डेरा जमा रखा था वहां अब स्वर्णिम प्रकाश फैलने लगा था और मायूस चेहरों पर मुस्कराहट आने लगी थी। जैसे जैसे सूर्य देव ऊपर आ रहे थे वैसे वैसे यहाँ आये हुए सभी लोगों के चेहरों पर व्याप्त उदासी खुशियों की चमक में बदलने लगी। हम भी इस नज़ारे को देखकर बिलकुल स्तब्ध रह गए। बचपन से आज तक जिस सूरज को हम बहुत दूर उगते हुए देखते थे आज वही सूरज हमारे इतना पास था कि बस हाथ बढाकर पकड़ लें। अब तक हमने सूरज को एक गोले के रूप में देखा था लेकिन यहाँ हमें सूरज के अलग ही रूप के दर्शन हुए, जो कभी भी भूलने वाला नहीं था। यहाँ से सूरज को निकलते देखना एक अलग ही रोमांच पैदा करता है। उगते सूरज को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे आग का कोई गोला समुद्र से धीरे धीरे बाहर निकल रहा हो और लोग पागलों की तरह उसे पकड़ लेने की कोशिश में हों। हम इन दृश्यों को अपने कैमरे में उतारने में लगे हुए थे और कब सूर्य देव समुद्र से निकल कर आकाश में चले गए पता ही नहीं चला। अब तक जो भीड़ यहाँ इकट्ठे होकर धमा-चौकड़ी में लगी थी वो धीरे धीरे अपने घरों/होटलों की तरफ जाने लगे थे और मुश्किल से 20 लोग वहीं रूककर कुछ देर फोटो लेने और समुद्र में उछलने कूदने में लग गए और हम भी उन्हीं में शामिल हो गए और लग गए समुद्र के साथ मस्ती करने। 

कुछ देर ऐसे ही फोटो का दौर चलता रहा। समुद्र और फोटो में हम ऐसे खो गए कि हम कहाँ खड़े इस बात का अहसास ही नहीं रह गया था। एक फोटो और एक फोटो और करते करते पत्थर की उस दीवार पर हम कुछ ज्यादा ही आगे निकल गए और कंचन से अपनी दो-चार फोटो लेने को कहा। उस समय एक कैमरा बेटे के पास था जो अपने दादा-दादी के साथ और मुझसे दूर किनारे पर खेलने में व्यस्त था। एक कैमरा पत्नी के हाथ में तथा एक कैमरा और एक मोबाइल मेरे हाथ में था। जब मैं फोटो लेने की बात की तो कंचन ने कैमरा और मोबाइल दोनों मुझसे मांगे पर मोबाइल तो मैंने उसे दे दिया और कैमरा अपने पॉकेट में ही रख लिया और फोटो खिचवाने लगा। फोटो की धुन में हम ऐसे खो गए कि ध्यान ही नहीं रहा कि हम समुद्र के किनारे खड़े है जहाँ बड़ी बड़ी लहरें आती है और सबको अपने रंग में रंग कर चली जाती है। यहाँ मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ, एक बड़ी लहर आयी और मुझे बिल्कुल भीगा गई और बचने की कोशिश में मैं गिरा और कैमरा पॉकेट से निकल कर कहीं और गिरा और नज़रों से ओझल हो गया। इतना होते ही कंचन जी के होठ रूपी धनुष से शब्दों के वाण मेरे ऊपर चलने आरंभ हो गए कि अगर मोबाइल के साथ कैमरा भी दे देते तो अभी नुकसान तो नहीं होता और साथ में कुछ उपदेश भी मिलने लगे कि अच्छा हुआ जो मैं आपसे मोबाइल ले ली वरना कैमरा तो गया ही मोबाइल भी चला जाता, आप मेरी बात मानते ही कब हो अगर अभी मेरी बात मान लेते तो नुकसान नहीं होता। अब एक हारे हुए खिलाड़ी की तरह मैं बस इतना ही बोला कि कोई बात नहीं मोबाइल का तो बीमा करवाया हुआ था और वो चला जाता तो दूसरा मिल जाता और उसके बाद हम कंचन के साथ मिलकर कैमरे को खोजने की जद्दोजहद में लग गए। करीब 10 मिनट ऐसे ही बीत गया पर कैमरा नहीं मिला। उन बड़े बड़े चट्टानों के बीच वो कहाँ चला गया कुछ अंदाज ही नहीं लग रहा था। 

इतने में ही जिस मुख से अब तक शब्दों के वाण चल रहे थे उसी मुख से एक सुझाव दिया गया कि क्यों न हम मोबाइल का टॉर्च जलाकर पत्थरों के नीचे देखे तो क्या पता मिल जाए। मैंने भी उनकी बात को मान लिया कि चलो कम से कम इस समय उनकी बात मानकर शब्द-वाण से घायल होने से बचा जाये और वही किया और जल्दी ही सफलता हाथ लगी। एक पत्थर के नीचे कैमरा घायल हालत में पड़ा हुआ दिख गया। मैं किसी तरह से कैमरे को निकाला तो देखा कि वो बहुत ही बुरी तरह से घायल हो चुका है पर अभी उसकी सांसे चल रही थी और वो भी ज्यादा देर तक नहीं चल सकी तथा कुछ ही पलों में कैमरे ने दम तोड़ दिया, हालांकि दिल्ली वापस आने के बाद वारंटी में होने के कारण बिना एक पैसा खर्च किये ही बन गया। हम तो पूरी तरह से भीग चुके ही थे तो थोड़ा आती जाती लहरों के साथ भी दो-चार फोटो ले लिए गए। अब तक 7:30 बज चुके थे और कब 2 घंटे बीत गए कुछ पता नहीं चला। अब यहाँ से जाने का समय हो गया था। अधिकतर लोग जा चुके थे कोई इक्का दुक्का लोग ही यहाँ बचे हुए थे तो हम भी चल दिए अपने आशियाने की तरफ और कमरे पर आकर एक बार फिर से स्नान किया और कुछ देर रुक कर हम संगम, भागीरथी अम्मन मंदिर और रॉक मेमोरियल देखने चल पड़े जिसका वृतांत अगले पोस्ट में। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये और आपको ये पोस्ट कैसी लगी जरूर बताइयेगा। इस पोस्ट में जितने भी फोटो लगाए गए हैं वो सब सूर्योदय के ही हैं और कुछ फोटो आश्रम में विचरण करते मोरों के हैं। 



कुछ बातें कन्याकुमारी के बारे में 

देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक कन्याकुमारी सिर्फ धर्म की दृष्टि से ही नहीं बल्कि सभी देशों के टूरिस्ट की पसंदीदा जगहों में से एक है। यह देश के दक्षिण कोने में बसा हुआ है। इस जगह पर हर साल लाखों टूरिस्ट आते हैं।  तमिलनाडु में स्थित कन्याकुमारी पहले केप कोमोरन के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में इसका नाम देवी कन्या कुमारी के नाम पर रखा गया, जिन्हें भगवान कृष्ण की बहन माना गया हैं। कन्याकुमारी में तीन समुद्रों बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागर का मिलन होता जिसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। 

कन्याकुमारी के दर्शनीय स्थल 
कन्याकुमारी में देखने के लिए ऐसी बहुत सी जगह है जहाँ आकर लोग बार बार आना चाहते है हैं। इस जगह की खूबसूरती यहाँ आने वाले लोगो के मन में बस जाती है और कोई भी इनका दीवाना हो जाता है। 

सनराइज और सनसेट (सूर्योदय और सूर्यास्त) : पूरी दुनिया में कन्याकुमारी अपने सनराइज और सनसेट के लिए मशहूर है। हर सुबह होटल की छत पर टूरिस्ट की भीड़ सूरज को उगते हुए देखती और शाम को शाम को अरब सागर में डूबते सूरज को देखना बहुत ही मनोहारी होता है। वैसे जहाँ तक मेरा मानना है और जैसा मैंने देखा है उस हिसाब से कन्याकुमारी में सूर्योदय का नज़ारा देखने के लिए विवेकानंद आश्रम से अच्छी जगह कन्याकुमारी में कोई भी जगह नहीं है। 

कन्याकुमारी अम्मन मंदिर : सागर के मुहाने के दाई और स्थित यह एक छोटा सा मंदिर है जो पार्वती को समर्पित है। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर बना हुआ है। यहां सागर की लहरों की आवाज स्वर्ग के संगीत की भांति सुनाई देती है। भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं जो मंदिर के बाई ओर 500 मीटर की दूरी पर है। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है क्योंकि मंदिर में स्थापित देवी के आभूषण की रोशनी से समुद्री जहाज इसे लाइटहाउस समझने की भूल कर बैठते है और जहाज को किनारे करने के चक्‍कर में दुर्घटनाग्रस्‍त हो जाते है। 

गांधी स्मारक : यह स्मारक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित है। यही पर महात्मा गांधी की चिता की राख रखी हुई है। इस स्मारक की स्थापना 1956 में हुई थी। महात्मा गांधी 1937 में यहां आए थे। उनकी मृत्‍यु के बाद 1948 में कन्याकुमारी में ही उनकी अस्थियां विसर्जित की गई थी। स्मारक को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर सूर्य की प्रथम किरणें उस स्थान पर पड़ती हैं जहां महात्मा की राख रखी हुई है।

तिरूवल्लुवर मूर्ति : तिरुक्कुरुल की रचना करने वाले अमर तमिल कवि तिरूवल्लुवर की यह प्रतिमा पर्यटकों को बहुत लुभाती है। 38 फीट ऊंचे आधार पर बनी यह प्रतिमा 95 फीट की है। इस प्रतिमा की कुल उंचाई 133 फीट है और इसका वजन 2000 टन है। इस प्रतिमा को बनाने में कुल 1283 पत्थर के टुकड़ों का उपयोग किया गया था। 

विवेकानंद रॉक मेमोरियल : यह तमिलनाडु के कन्याकुमारी में समुद्र में स्थित एक स्मारक है। यह भुमि-तट से लगभग 500 मीटर अन्दर समुद्र में स्थित दो चट्टानों में से एक के उपर निर्मित किया गया है। समुद्र में बने इस स्थान पर बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। इस पवित्र स्थान को विवेकानंद रॉक मेमोरियल कमेटी ने 1970 में स्वामी विवेकानंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए बनवाया था। इसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद गहन ध्यान लगाया था। इस स्थान को श्रीपद पराई के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर कन्याकुमारी ने भी तपस्या की थी। कहा जाता है कि यहां कुमारी देवी के पैरों के निशान मुद्रित हैं। इस स्मारक के विवेकानंद मंडपम और श्रीपद मंडपम नामक दो प्रमुख हिस्से हैं।


कैसे जाएँ : 
रेल मार्ग : कन्याकुमारी सड़क और रेलमार्ग द्वारा देश के सभी शहरों से जुड़ा है। देश के बड़े शहरों से कन्याकुमारी तक पहुँचने के लिए सीधी रेल सेवा है। इसके अलावा जिन शहरों से कन्याकुमारी तक रेल सेवा नहीं है वो चेन्नई, मदुरै या त्रिवेंद्रम होते हुए कन्याकुमारी तक बस या रेल से जा सकते हैं। त्रिवेंद्रम से कन्याकुमारी की दूरी करीब 90 किलोमीटर है जहाँ से बहुतायत में बसें उपलब्ध हैं। कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन से संगम, विवेकानंद रॉक मेमोरियल, भागीरथी मंदिर, त्रिवेणी संगम की दूरी करीब 2 किलोमीटर है और ये सब एक जगह ही स्थित है। 

वायु मार्ग : नजदीकी एयरपोर्ट तिरूअनंतपुरम है जो कन्याकुमारी से 89 किलोमीटर दूर है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है। 

सड़क मार्ग : बस द्वारा कन्याकुमारी जाने के लिए त्रिची, मदुरै, चैन्नई, त्रिवेंद्रम से नियमित बस सेवाएं हैं। तमिलनाड़ पर्यटन विभाग कन्याकुमारी के लिए सिंगल डे बस टूर की व्यवस्था भी करता है।

भ्रमण समय : समुद्र के किनारे होने के कारण कन्याकुमारी में साल भर मनोरम वातावरण रहता है। यूं तो पूरा साल कन्याकुमारी जाने लायक होता है लेकिन फिर भी पर्यटन के लिहाज से अक्टूबर से मार्च की अवधि सबसे बेहतर मानी जाती है। 

कहाँ ठहरे : कन्याकुमारी में ठहरने के लिए प्राइवेट होटल और गेस्ट हॉउस की कोई कमी नहीं है। यहाँ हर बजट के लिए लोगों के रहने के लिए आसानी से कमरे मिल जाते हैं। वैसे यहाँ ठहरने के लिए सबसे उपयुक्त और अच्छी जगह विवेकानंद आश्रम है जहाँ 60 रूपये से लेकर 400 रूपये में हर तरह के कमरे मिल जाते है लेकिन बुकिंग आश्रम के वेबसाइट www.vivekanandakendra.org पर पहले से ही करनी पड़ती है। 

इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें  

भाग 3 : मरीना बीच, चेन्नई (Marina Beach, Chennai)
भाग 4: चेन्नई से तिरुमला
भाग 5: तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन
भाग 6: देवी पद्मावती मंदिर (तिरुपति) यात्रा और दर्शन
भाग 7: तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम की ट्रेन यात्रा
भाग 8: रामेश्वरम यात्रा (भाग 1) : ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: रामेश्वरम यात्रा (भाग 2): धनुषकोडि बीच और अन्य स्थल
भाग 10: कन्याकुमारी यात्रा (भाग 1) : सनराइज व्यू पॉइंट
भाग 11 : कन्याकुमारी यात्रा (भाग 2) : भगवती अम्मन मंदिर और विवेकानंद रॉक मेमोरियल



आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :



सूर्योदय की झलक

सनराइज व्यू पॉइंट पर जाने का मार्गदर्शन 

जब हम व्यू पॉइंट पर पहुंचे तो चाँद दिख रहा था 

आश्रम स्थित सनराइज व्यू पॉइंट से दिखाई देता विवेकानंद रॉक मेमोरियल और तिरुवल्लुवर की मूर्ति 

सूर्योदय की झलक

सूर्योदय की झलक जिसमे सूरज समुद्र से निकलता हुआ प्रतीत हो रहा है 

पत्थरों के बीच से झांकते सूर्य देव 

सूर्योदय की झलक

दिल खुस करने देने वाला नज़ारा 

जिसे देखने देश विदेश से लोग यहाँ आते है 

बिलकुल मनोहारी 

सूर्य देव अपने रंग में 

बादलों से निहारते सूर्य देव 

बादल होने के बाद भी सूर्य देवता न हमें निराश नहीं किया 

आश्रम में विवेकानंद के प्रतिमा 

सूर्योदय से पहले निराश करते बादल पर निराश नहीं होना पड़ा 

सूर्य देवता की एक झलक 

ऐसा लग रहा है जैसे सूरज समुद्र से निकल रहा हो 

आदित्या 

आश्रम स्थित सनराइज व्यू पॉइंट से दिखाई देता विवेकानंद रॉक मेमोरियल और तिरुवल्लुवर की मूर्ति

आश्रम स्थित सनराइज व्यू पॉइंट से दिखाई देता विवेकानंद रॉक मेमोरियल और तिरुवल्लुवर की मूर्ति

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इन्हीं पत्थरों में कहीं कैमरा गिरा था 

समुद्री केकड़ा (या कुछ और है)

इन पत्थरों पर हमने भी फोटो खिचवाई थी 

समुद्र देवता दूर दूर तक 

अथाह जल भंडार 

सूर्योदय के एक घंटा बाद भी चाँद दिख रहा था 

आश्रम में मोर 

आश्रम में मोर

दाना चुगता हुआ मोर 

ध्यानमुद्रा में मोर महाराज 

आप ही बतायें मैं कौन 

नारियल का पेड़ 


इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें  

भाग 3 : मरीना बीच, चेन्नई (Marina Beach, Chennai)
भाग 4: चेन्नई से तिरुमला
भाग 5: तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन
भाग 6: देवी पद्मावती मंदिर (तिरुपति) यात्रा और दर्शन
भाग 7: तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम की ट्रेन यात्रा
भाग 8: रामेश्वरम यात्रा (भाग 1) : ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: रामेश्वरम यात्रा (भाग 2): धनुषकोडि बीच और अन्य स्थल
भाग 10: कन्याकुमारी यात्रा (भाग 1) : सनराइज व्यू पॉइंट
भाग 11 : कन्याकुमारी यात्रा (भाग 2) : भगवती अम्मन मंदिर और विवेकानंद रॉक मेमोरियल



26 comments:

  1. यात्रा विवरण बहुत ही शानदार रहा यात्रा के दौरान कीमती गेजेट और वस्तुओं का ध्यान रखना अति आवश्यक होता है और कैमरा की तो बहुत जरूरी क्योकि उसमे हमारे अद्वितीय पल संजोये हुए होते है अगले भाग का इंतज़ार रहेगा

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    1. बहुत धन्यवाद भाई जी, सही बात है यात्रा के दौरान अपने सामान और गैजेट का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है, थोड़ी सी असावधानी हमारा बहुत बड़ा नुकसान कर देती है, ये तो शुक्र था कि और भी कैमरा हमारे पास था, वरना इस यात्रा से तो हम बिना फोटो के ही लौटते जो सबसे बड़ा दुखदाई होता

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  2. बेहद सुंदर यात्रा व फोटो

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सचिन भाई

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  3. सूर्योदय के सभी दृश्य बेहतरीन हैं

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद हर्षिता जी

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  4. सुरुचिपूर्ण जीवंत विवरण। सूर्योदय के दृश्य मनमोहक हैं। हाँ, घूमते हुए अपने गैजेट्स का ख्याल रखना पड़ता है। अक्सर बेख्याली में मुझसे भी चीज़ें टूट फूट जाती हैं। कुछ दिनों पहले मसूरी गया था तो कैमरा हाथ से छूट गया और स्क्रीन पे थोड़े स्क्रेच आ गये। भाभी जी से झिड़की पड़ने वाला प्रसंग फनी था। साथ में बेटर हॉफ हो तो और सावधान रहना चाहिए ताकि बेटर को ये जताने का मौका न मिले कि वो हमसे बेटर क्यों होते हैं। 😉😉
    मोर की तस्वीर भी शानदार। अब कोई पूछेगा आश्रम में मोर नाचा तो किसने देखा तो मैं कह दूँगा अभ्यानन्द जी ने देखा।(बुरे जोक के लिए माफी)
    अगली कड़ी का इंतजार है।
    duibaat.blogspot.com

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद विकाश भाई जी। हाँ वो सूर्योदय का दृश्य ऐसा दिखेगा इसकी तो मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी, बहुत आनंद आया। हाँ थोड़ी सी सावधानी से चुकने पर चीज़ों का नुकसान हो जाता है जो बहुत दुखदायी होता है खासकर कैमरे जैसे चीज़ों का नुकसान क्योकि उसमे हमारी यात्रा की यादें बसी होती है। अब क्या करें उनकी बात नहीं माना तो शब्द वाण सहन करने पड़े , और उनकी बात मान लेता तो नुकसान भी नहीं होता। हाँ कह दीजियेगा की मैंने मोर को नाचते देखा, सच में आश्रम भी बहुत सुन्दर और मनोहारी जगह है भाई भाई जी। और माफी मांगने की कोई बात ही नहीं है। जल्दी ही अगली कड़ी आपके सामने होगी

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  5. सूर्योदय के चित्र न्याभिराम लगे.... वाकई में कन्याकुमारी का सूर्योदय मशहूर है और आपने कैमरे की नजरो से दिखा भी दिया... | कोई बात नही छोटी मोटी घटनाए तो यात्रा का हिस्सा ही होती है और गृहमंत्री हमेशा बच रहना चाहिए....

    बढ़िया पोस्ट ..

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    1. अब ज्यादा धन्यवाद नहीं करुगा मैं आपका क्योंकि ज्यादा धन्यवाद करने से आपसी प्रेम कम हो जाता है , हां भाई जी मेरे मन तो बिल्कुल ही भा गया कन्यकुमारी का सूर्योदय, हाँ यात्रा में छोटी छोटी परेशानियां या घटनाएं होती है और यही हमें जीवन जीना सिखाती है , ये बात भी सही है गृह मंत्री से बच कर रहना चाहिए पर यही तो जीवन धारा है भाई जी

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  6. शानदार यात्रा चर्चा अभय जी।

    चित्रों ने सुंदरता में ओर भी वृद्धि की है। कन्याकुमारी के दर्शनीय स्थलों की जो जानकारी अपने दी है वो वाकई काबिल-ए-तारीफ़ है

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अक्षय भाई, सब लोग बढ़िया ही कहते है, कोई कुछ कमी बता दें , जो जानकारी मैं हासिल कर सका वो जानकारी यहाँ दे रहा हूँ।

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  7. आपकी इस यात्रा से सन 2009 की अपनी यात्रा याद आ गयी। हमारी और आपकी यात्रा में बस इतना ही अंतर रहा कि हमने अपनी यात्रा तिरुअनंतपुरम से कन्याकुमारी आकर बस अड्डे के पास एक होटल में रुके। जबकि आप एक विवेकानं आश्रम में रुके।
    हम लोग कन्याकुमारी से मदुरै होते हुवे रामेश्वरम गये थे जबकि आप रामेश्वरम से कन्याकुमारी पहुंचे।
    पानी में कैमरे वाली घटना से कुछ साल पहले की दो दोस्तों के बीच घटी एक बात याद आती है।
    दो दोस्त कहीं गोकर्ण मुंबई के रूट पर घूमने गए थे और वहां एक दोस्त का कैमरा पानी में लहरों से भीग गया था जिस कारण उन दोस्तों में उस समय जो खटास बनी वो वह आज तक भी खत्म न हुई।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी, मुझे तो आपके कमेंट का बहुत बेसब्री से ज्यादा इंतज़ार रहता है। मैं तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम होकर कन्याकुमारी से त्रिवेंद्रम पंहुचा और आप उसके उल्टा त्रिवेंद्रम होते हुए कन्याकुमारी से रामेश्वरम पहुंचे। पर भाई जी यात्रा में कभी कभी ऐसी छोटी सी असावधानी हो जाती है जिससे हमारे गैजेट को नुकसान पहुँचता है पर इसके लिए मन में वैर पालना अच्छी बात नहीं है, थोड़ी देर के लिए नाराज़ होना तो चलता है पर सदा के लिए मन में खटास बना लेना मुझे कहीं से उचित नहीं लगता, जैसे बच्चे से कोई वस्तु टूट गई तो नाराज़गी और वही वस्तु खुद से टूट जाये तो।

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  8. जो जगह सूर्योदय और सूर्यास्त के लिए बहुत प्रसिद्ध है उसके साथ आपके फोटो ने बराबर न्याय किया है...बहुत ही शानदार जानदार फोटो और पोस्ट

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका प्रतीक भाई जी, आपने समय देकर मेरा लिखा हुआ पढ़ा

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  9. Bahut achha vivaran hai. Aisa man kar raha hai ki abhi chala jayu waha par.
    Bahut achhu jagah hai or aapki jankari bhi bahut khoob hai.
    aise hi jankaari dete rahana.
    Dhanywad.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद भाई।
      जब आपका मन कर रहा है तो चले जाइए एक बार।
      हां जगह तो बहुत अच्छी है, कोई जवाब नहीं इन जगहों का।
      हां जी जानकारियों ऐसे ही देते रहेंगे।
      आभार आपका।

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  10. कभी कभी अपनी शरीके हयात की बातें भी मान लेना हितकर होता है। मैं भी ऐसी लापरवाही कई बार कर चुका हूँ। एक बार पहाड़ पर तो एक बार समुद्र के किनारे। यात्रा में थोड़ी सतर्कता आवश्यक होती है।
    दक्षिण भारत के समुद्र तट बहुत ही सुन्दर हैं। बहुत बहुत धन्यवाद इनसे रूबरू कराने के लिए। प्राकृतिक दृश्य मुझे बहुत पसंद हैं। केवल दर्शन के लिए मंदिर जाना मुझे कम पसंद है। ऐतिहासिकता और वास्तुकला वास्तविक आकर्षण होते हैं।

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    1. जी हां सही कहा आपने कभी कभी उनकी बात मान लेने में भी भलाई होती है, अगर उनकी बात नहीं माने और कुछ अच्छा घटित नहीं हुआ तो शब्दों के वाण चलते ही हैं, जो थोड़ी कटु तो थोड़ी मधुर भी होती है। हां वाकई में दक्षिण भारत के समुद्र तट बहुत ही सुन्दर हैं। आभार आपका हमारे ब्लाॅग पर आकर अपना समय देकर पढ़ने के लिए। मंदिर की ऐतिहासिकता और वास्तुकला ही तो वहां आने जाने के लिए आकर्षित करती है

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  11. पढ़कर ऐसा लगा कि कन्याकुमारी में ही पहुंच गया हूं..
    बहुत शानदार...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद श्याम सुंदर जी

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  12. मुझे बताया गया है कि विवेकानंद केंद्र में सिंगल व्यक्ति को रूम नहीं दिया जाता है !
    कोई सस्ता सा लॉज या पीजी रूम मिल जाएगा, मेरा प्लान 15-20 रुकने का है !

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको।
      कन्याकुमारी में रुकने के लिए हर बजट में कमरे उपलब्ध हैं। और विवेकानन्द आश्रम में आप आॅनलाइन कमरे बुक कर सकते हैं। आप अकेले व्यक्ति के लिए भी कमरा बुक कर सकते हैं। कमरे के अलावा वहां हाॅल भी जहां एक साथ कई लोगों के रहने के लिए जगह मिल जाती है। उस समय तो 50 रुपये प्रति व्यक्ति थी और अब अगर बढ़ भी गया हो तो 100 रुपये होंगे।

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