तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 3) : काशी विश्वनाथ मंदिर, गुप्तकाशी
तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा के इस भाग में आईए हम आपको ले चलते हैं गुप्तकाशी में स्थित भगवान भोलेनाथ के प्रसिद्ध और पुरातन मंदिर में जिसका संबंध महाभारत काल से ही है। गुप्तकाशी कस्बा केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव है। कहा जाता है कि पहले इसका नाम मण्डी था। जब पांडव भगवान् शंकर के दर्शन हेतु जा रहे थे तब इस स्थान पर शंकर भगवान् ने गुप्तवास किया था जिसके बाद पांडवों ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण किया था। इस कारण इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ा। काशी विश्वनाथ के मंदिर में एक मणिकर्णिका नामक कुंड है जिसमे गंगा और यमुना नामक दो जलधाराएं बहती है। हमने भी अपनी तुंगनाथ यात्रा के दौरान इस मंदिर में महादेव के दर्शन किया तो आइए आप भी हमारे साथ इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ के दर्शन करिए। कहा जाता है न कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। अगर कल शाम को बरसात न हुई होती तो शायद हम गुप्तकाशी न आकर उखीमठ ही चले जाते और उखीमठ जाते तो ये यात्रा केवल तुंगनाथ तक ही सीमित रह जाती और हम गुप्तकाशी में स्थित भगवान भोलेनाथ के दर्शन के से वंचित रह जाते वो भी श्रावण महीने के पूर्णिमा के दिन। मेरे सबसे पहले जागने और नहा-धो कर तैयार होने का मुझे एक फायदा यह मिला कि जब तक हमारे सभी साथी स्नान-ध्यान में लगे तब तक हम पहाड़ों की खूबसरती का दीदार करने के लिए गेस्ट हाउस की छत पर चला गया। यहां जाकर जो पहाड़ों में बरसात का जो नजारा दिखा वो कभी न भूलने वाले पलों में शामिल हो गया। बहुत लोगों को कहते सुना है कि बरसात में पहाड़ों की घुमक्कड़ी करने से बचना चाहिए और ये बात बहुत हद तक सही भी है। पर इस बरसात में यहां आकर हमने पहाड़ों का जो सौंदर्य देखा उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। जिस तरह शादी में नई दुल्हन सजी संवरी होती है ठीक वैसे ही पहाड़ भी इस मौसम में एक दुल्हन की तरह दिख रही थी। बरसात के कारण मुरझाए पेड़ों पर हरियाली छाई हुई थी। पिछले साल जब जून के महीने में हम यहां आए तो यही पहाड़ सूना-सूना लग रहा था पर बरसात में इन पहाड़ों का मुझे एक अलग ही रूप देखने को मिला। एक तो हरा-भरा पहाड़ उसके ऊपर से अठखेलियां करते बादल का आना और जाना मन को मुग्ध कर रहा था।