Sunday, February 25, 2018

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर (Kalbhairav Temple and Siddhvat Temple)

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर (Kalbhairav Temple and Siddhvat Temple)



उज्जैन के दर्शनीय स्थानों के भ्रमण की श्रृंखला में महाकालेश्वर मंदिर, विक्रमादित्य का टीला, हरसिद्धी मंदिर, भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर जैसी जगहों को देखने के पश्चात आइए अब हम आपको कालभैरव मंदिर, सिद्धवट मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम लेकर चलते हैं। गढ़कालिका मंदिर में दर्शन के पश्चात आॅटो वाला हमें अगले पड़ाव की तरफ ले चला। हमारे ये पूछने पर कि अब यहां के बाद आप किस जगह पर ले चलेंगे तो उनका जवाब मिला कि अब हम पहले कालभैरव मंदिर जाएंगे उसके बाद सिद्धवट मंदिर। हम आॅटो वाले से बातें करते हुए चले जा रहे थे। करीब दस-पंद्रह मिनट के सफर के बाद दूर से ही एक मंदिर की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने मुझे बताया कि वो मंदिर ही कालभैरव मंदिर है। साथ ही उन महाशय ने भी बताया कि यहां कालभैरव को प्रसाद के रूप में शराब चढ़ाया जाता है। मैंने उनसे कहा कि भाई मैं शराब नहीं पीता इसलिए मुझे शराब जैसी चीजों से कोई मतलब नहीं है। तब उन्होंने कहा कि आने वाला हर भक्त बाबा को शराब का भोग जरूर लगाता है इसलिए आप भी अपनी तरफ से बाबा को भोग लगा दीजिएगा। उनकी बातों पर मैंने कहा कि ठीक है भोग तो लगा देंगे पर हम उस भोग का करेंगे क्या क्योंकि मैं मदिरापान नहीं करता तो उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं आप हमें दे दीजिएगा। ठीक है बोलकर मैं चुप रहना ही उचित समझा और चुप बैठ गया। ऐसे ही चलते हुए कुछ देर में हम मंदिर के पास पहुंच गए।

Wednesday, February 14, 2018

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर (Bharthari Gufa and Gadhkalika Temple)

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर (Bharthari Gufa and Gadhkalika Temple)



विक्रमादित्य का टीला देखने और हरसिद्धी मंदिर में दर्शन करने के बाद हम उज्जैन के कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थानों (भतृहरि गुफा, गढ़कालिका मंदिर, कालभैरव मंदिर, सिद्धवट मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम) को देखने के लिए निकल पड़े। बड़ी मान-मनौती करने पर एक आॅटो वाला हमें इन जगहों पर घुमाने के लिए तैयार हो गया। मोल-तोल के बाद सौदा तय होने के बाद हम आॅटो में बैठ गए। मेरे आॅटो में बैठते ही उसने मेरे हाथ में एक कार्ड थमा दिया और खुद चाय पीने चला गया। मैंने कार्ड को उलट-पुट कर देखा तो एक तरफ किसी बड़े दुकान का विज्ञान छपा था और दूसरी तरफ उज्जैन के दर्शनीय स्थलों के नाम अंकित थे। कार्ड को देखने से ही पता चल रहा था कि दुकान वाले ने कार्ड छपवाकर आॅटो वालों को बांटा होगा कि इसी बहाने कुछ प्रचार-प्रसार हो जाएगा। पांच मिनट में ही आॅटो वाला भी अपनी चाय खत्म करके आ गया। उसके आते ही मैंने सबसे पहले उसे कहा कि भाई अब चलोगे या कुछ और बाकी है। जवाब मिला कि अब कुछ नहीं बस चलते हैं। इतना कहकर उसने आॅटो स्टार्ट किया और अपने मंजिल की तरफ बढ़ने लगा। अभी चले ही थे कि उसने अपने सवालों की बौछार आरंभ कर दिया कि कुछ खरीदना चाहते हैं, जैसे साड़ी, कपड़े, यहां की पुरानी चीजें आदि-आदि। मैंने उसे साफ मना कर दिया कि मैं कुछ खरीदने नहीं बस जगहों को देखने आया हूं। मेरी इन बातों को सुनते ही वो कुछ देर के लिए चुप हो गया।

Monday, February 12, 2018

पहाड़ : मेरा बालहठ

पहाड़ : मेरा बालहठ




हर इंसान की जिंदगी को कुछ न कुछ चीजें प्रभावित करती हैं। कुछ चीजों के प्रति उसका जुनून और पागलपन हमेशा उसके साथ रहता हैं। कुछ शब्द, कुछ वस्तुएं, शहर, गांव, नदियां, खेत, जानवर, पक्षी आदि बहुत सी चीजें हैं जिनसे इंसान प्रभावित होता है और किसी खास चीज से इंसान का खास लगाव भी रहता है। कुछ चीजें किसी खास इंसान को बहुत हद तक आकर्षित करती है। वैसे ही और लागों की तरह हमें भी बहुत सी देखी-अनदेखी चीजों ने आकर्षित किया है, जैसे पहाड़, समुद्र, नदी, झरने, सड़कें, बाढ़, हरे-भरे खेत आदि और भी न जाने कितनी चीजें हैं जिसके प्रति सदा ही मेरा आकर्षण रहा है। इन चीजों में पहाड़ और समुद्र दो ऐसे शब्द हैं जिसने मुझे बचपन से ही बहुत ज्यादा आकर्षित किया और इसका भी कुछ खास कारण रहा। वो कारण ये था कि और चीजें तो हम हर दिन देखते और महसूस करते थे पर पहाड़ और समुद्र से हम बहुत दूर थे। तो आइए आज हम आपको पहाड़ के बारे में अपने जुनून और पागलपन की बातें बताते हैं और समुद्र के बारे में फिर कभी। शुरुआत एक फिल्मी गाने से करता हूं, जो पता नहीं किस फिल्म का है जो मुझे पता नहीं क्योंकि मैं फिल्में नहीं देखता हूं और न ही गाने सुनता हूं। वैसे गाने की पंक्तियां तो न चाहते हुए भी सुननी पड़ती है क्योंकि बसों, दुकानों, चौक-चौराहे पर आते-आते गाने सुनने को मिल जाते हैं जिसे न चाहकर भी सुनना पड़ता है, उसमें ही कुछ पंक्तियां याद भी रह जाती है, तो दो पंक्तियां आपके सामने प्रस्तुत करता हूं :

Sunday, February 11, 2018

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर (Vikrmaditya ka Teela and Harsiddhi Temple)

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर (Vikrmaditya ka Teela and Harsiddhi Temple)



महाकालेश्वर मंदिर में भोलेनाथ के दर्शन के बाद आइए अब चलते हैं उज्जैन के अन्य दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करते हैं। मंदिर में दर्शन, पूजा-पाठ आदि कार्यकलापों को पूरा करते-करते तीन बज चुके थे। स्थानीय लोगों से पूछने पर पता चला कि अन्य स्थानों पर जाने के लिए आॅटो हरसिद्धी मंदिर के पास बहुत ही आसानी से मिल जाएगी। रामघाट से यहां आते समय हमें हरसिद्धी मंदिर के दर्शन हुए थे इसलिए वहां तक के लिए किसी से रास्ते के बारे में पूछने की कोई आवश्यकता नहीं थी। अपनी आदत के अनुसार रास्ते में दाएं-बाएं निहारते हुए अपनी ही मस्ती में अकेला चला जा रहा था। अभी कुछ ही दूर गया था कि बाएं तरफ एक बड़ा सा दरवाजा दिखा। पहले तो मन में आया कि ऐसे ही कुछ होगा, पर नहीं पास जाने पर बोर्ड पर विक्रमादित्य का टीला लिखा हुआ दिख गया। विक्रमादित्य का नाम आते ही बचपन में विक्रम-वैताल की कहानियां याद आ गई और अब तक की पढ़ी गई सारी कहानियां दिमाग में ऐसे घूमने लगी जैसे अभी मेरे सामने से राजा विक्रमादित्य गुजर रहे हैं और उनके कंधे पर वो वैताल बैठ कर कहानी सुनाता हुआ जा रहा है। बचपन में जब उन कहानियों को पढ़ा करता था तो ये सोचा भी नहीं था कि हम कभी विक्रमादित्य की उस नगरी में जाएंगे जहां से ये कहानियां आरंभ हुई है।