Sunday, February 11, 2018

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर (Vikrmaditya ka Teela and Harsiddhi Temple)

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर (Vikrmaditya ka Teela and Harsiddhi Temple)



महाकालेश्वर मंदिर में भोलेनाथ के दर्शन के बाद आइए अब चलते हैं उज्जैन के अन्य दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करते हैं। मंदिर में दर्शन, पूजा-पाठ आदि कार्यकलापों को पूरा करते-करते तीन बज चुके थे। स्थानीय लोगों से पूछने पर पता चला कि अन्य स्थानों पर जाने के लिए आॅटो हरसिद्धी मंदिर के पास बहुत ही आसानी से मिल जाएगी। रामघाट से यहां आते समय हमें हरसिद्धी मंदिर के दर्शन हुए थे इसलिए वहां तक के लिए किसी से रास्ते के बारे में पूछने की कोई आवश्यकता नहीं थी। अपनी आदत के अनुसार रास्ते में दाएं-बाएं निहारते हुए अपनी ही मस्ती में अकेला चला जा रहा था। अभी कुछ ही दूर गया था कि बाएं तरफ एक बड़ा सा दरवाजा दिखा। पहले तो मन में आया कि ऐसे ही कुछ होगा, पर नहीं पास जाने पर बोर्ड पर विक्रमादित्य का टीला लिखा हुआ दिख गया। विक्रमादित्य का नाम आते ही बचपन में विक्रम-वैताल की कहानियां याद आ गई और अब तक की पढ़ी गई सारी कहानियां दिमाग में ऐसे घूमने लगी जैसे अभी मेरे सामने से राजा विक्रमादित्य गुजर रहे हैं और उनके कंधे पर वो वैताल बैठ कर कहानी सुनाता हुआ जा रहा है। बचपन में जब उन कहानियों को पढ़ा करता था तो ये सोचा भी नहीं था कि हम कभी विक्रमादित्य की उस नगरी में जाएंगे जहां से ये कहानियां आरंभ हुई है।

विक्रमादित्य का टीला : सम्राट विक्रमादित्य की एक 25 फीट ऊंची बहुत ही भव्य और मनोहारी प्रतिमा महाकाल मंदिर के पास ही रूद्रसागर में एक टीले पर स्थापित किया गया है। उस विशाल प्रतिमा के बगल में विक्रमादित्य के दरबार के नौ रत्नों (धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेताल भट्ट, घटकर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि) की प्रतिमाएं भी लगाई हैं। इन नौ रत्नों के अलावा उन 32 पुतलियों की प्रतिमाएं भी लगाई गई हैं जो कहानियों में पढ़ने के लिए मिलती हैं। सभी पुतलियों की प्रतिमाओं के पास उनके नाम और कुछ रोचक वर्णन भी लिखा गया है, जिसे पढ़कर बचपन में पढ़ी कहानियों की याद ताजा हो उठती है।

धन्वन्तरि : वैद्य और औषधिविज्ञान (मेडिसिन व फॉर्मेसी) का अविष्कार किया।
क्षणपक : व्याकरणकार और कोषकार थे। उस काल में उन्होंने गणित विषय पर काम किया।
अमरसिंह : कोष (डिक्शनरी) का जनक माना जाता है। इन्होंने शब्दकोष बनाया। साथ ही शब्द ध्वनि आदि पर काम किया।
शंकु : नीति शास्त्र व रसाचार्य थे।
वेताल भट्ट : युद्ध कौशल में महाराथी थे। वह हमेशा विक्रमादित्य के साथ ही रहे। साथ ही सीमवर्ती सुरक्षा के कारण इन्हें द्वारपाल भी कहा गया।
घटकर्पर : साहित्य के विद्वान रहे। उन्होंने नई शैली का निर्माण किया।
कालिदास : महान कवि रहे। जिन्होंने परंपरागत काव्य की अवधारणा को तोड़ नवीन काव्य सृजन किया, जो आज भी श्रेष्ठ माना जाता है।
वराहमिहिर : ज्योतिर्विदों में अग्रणी माने गए। उन्होंने ही काल गणना, हवाओं की दिशा, पशुधन की प्रवृत्ति, वृक्षों से भूजल का आकलन आदि विषयों की खोज की।
वररुचि : व्याकरण के विद्वान व कवियों में श्रेष्ठ। शास्त्रीय संगीत के भी जानकर रहे।

बत्तीस पुतलियां पौराणिक कथाओं के आधार पर न्यायप्रिय सम्राट विक्रमादित्य की बत्तीस पुतलियां हुआ करती थीं। ये पुतलियां राजा को न्याय करने में सहायक होती थीं। यह एक लोककथा संग्रह भी कहलाता है। इसी में बेताल पच्चीसी का भी जिक्र मिलता है। प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है, जिसमें 32 पुतलियां विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा रूप में वर्णन करती हैं। विक्रमादित्य जनता के कष्टों को जानने के लिए छद्मवेष धारण कर रात में भम्रण करते थे।


हां तो हम बात कर रहे थे कि जैसे ही हमें विक्रमादित्य का टीला लिखा हुआ नजर आया तो हम उसी तरफ मुड़ गए। अकेला आदमी न तो किसी से पूछना, न किसी से कहना, न ही किसी के इंकार और न ही किसी के सहमति की प्रतीक्षा थी, जिधर मन हो उधर ही मुड़ जाओ। एक बड़े से दरवाजे से प्रवेश करने के बाद बाद एक छोटे से पुल को पार करते हुए हम पहुंच गए एक टीले के पास। टीले की ऊंचाई करीब दस फुट है। वहीं एक कोने में अपने चप्पल उतारे और सीढि़यां चढ़ते हुए टीले पर पहुंच गए। टीले पर पहुंचकर वहां का जो आकर्षक नजारा दिखा वो बहुत ही मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। सम्राट विक्रमादित्य की एक सुनहरे रंग की बहुत बड़ी प्रतिमा और उनके अगल बगल उसी रंग की उनके नौ रत्नों और पुतलियों की प्रतिमाएं देखकर नजरें जो वहां टिकी तो हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। इतने सुंदर दृश्य सामने हो और मुझ जैसा आदमी फोटो न ले ये तो हो ही नहीं सकता था। मैंने झट कैमरा निकाला और फोटो लेना आरंभ कर दिया। अभी कुछ ही फोटो लिए थे कि आसमान में पहले से ही मंडरा रहे काले बादलों ने बरसना आरंभ कर दिया। पहले तो बूंदा-बांदी से आरंभ हुई जो धीरे-धीरे तेज बरसात में बदल गई। किसी तरह कुछ फोटो लेने के बाद वहीं सीढि़यों से उतरकर दीवार के सहारे खड़े होकर अपने को भींगने से बचाता रहा।

बादलों के रंगत को देखकर तो लग रहा था कि ये बरसात लंबी चलेगी पर ऐसा हुआ नहीं। करीब 10 मिनट में ही बरसात बंद हो गई। बरसात बंद होते ही हम फिर से एक बार उस टीले पर गए और कुछ और फोटो लिया। इसी दौरान हमें टीले के पीछे की तरफ भी सीढि़यां दिखीं तो हम उसी तरफ उतर गए। टीले के पीछे की दीवारों को भी बहुत ही सुंदर तरीके से सुसज्जित किया है और दीवारों में उज्जैन के पुराने सिक्कों और अन्य प्रतीकों की नक्काशी की गई है। इन चीजों को देखने के बाद हमने वहां से आगे के लिए प्रस्थान किया और पुलिया को पार करके हम सड़क पर आ गए। अब यहां से आगे के सफर के लिए पहले तो हमें आॅटो की तलाश थी और आॅटो की तलाश करते हुए हम आगे बढ़ रहे थे।

सोचा तो यही था कि पहले आॅटो लेकर दूर वाले स्थानों को देख लेते हैं और फिर वापसी के समय हरसिद्धी मंदिर में दर्शन करते हुए इंदौर निकल जाएंगे। मन में यही विचार करते हुए आते-जाते कुछ आॅटो वालों को हाथ के ईशारे से रुकवाने का असफल प्रयास करते हुए हम आगे बढ़ते जा रहे थे। कोई भी आॅटो वाला रोकने के लिए तैयार नहीं था और इसके दो कारण हो सकते थे या तो मुझे अकेला देखकर या फिर उसके आॅटो में बैठी सवारियों ने आॅटो को रिजर्व कर लिया हो। चलिए अब जो भी हो, हमें कोई न कोई आॅटो तो मिल ही जाएगा। इसी तरह धीरे-धीरे चलते हुए हम हरसिद्धी मंदिर के चौराहे पर पहुंच गए। यहां पहुंचते ही कुछ देर पहले मन में सोचा हुआ प्लान हमने बदल दिया कि अब जब यहीं पर हैं तो पहले हरसिद्धी मंदिर के दर्शन ही कर लेते हैं। क्या पता रात में समय मिल पाए या न मिल पाए तो बिना दर्शन ही जाना पड़ जाए।

हरसिद्धी मंदिर : 51 शक्तिपीठों में से एक माता हरसिद्धि का मंदिर महाकाल मंदिर से पश्चिम की ओर महाकाल मंदिर और रामघाट के बीच में स्थित है। माता का यह मंदिर उज्जैन शहर का एक महत्वपूर्ण पौराणिक मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शिव सती के शरीर को ले जा रहे थे, तब उसकी कोहनी इस जगह पर गिरी थी। साथ ही यह भी मान्यता है कि माता हरसिद्धी प्रत्येक सुबह गुजरात के हरसद गांव स्थित हरसिद्धी मंदिर जाती है तथा रात्रि विश्राम के लिए शाम को उज्जैन के इस मंदिर में आती है, इसलिए यहां संध्या आरती महत्व है। तांत्रिक क्रियाओं में विश्वास रखने वाले लोग नवरात्रों में यहां साधना के लिए आते हैं।

मंदिर तक पहुंचते-पहुंचते फिर से हल्की-फुल्की बूंदा-बांदी शुरू हो गई। पता नहीं इस बर्षा रानी को हमसे प्यार है या हमसे गुस्सा रहती है जो हम चाहे कहीं भी जाएं ये हमारे साथ-साथ जरूर चलती हैं। सीढि़यों से चढ़कर हमने मंदिर में प्रवेश किया। प्रवेश करते ही सबसे पहले दो दीप-स्तंभों से सामना हुआ जिसके बारे में वहीं द्वार पर खड़े गार्ड महोदय से पूछने पर पता चला कि इस दीपस्तंभ में लगे हुए सारे दीपों को शाम के समय प्रज्वलित किया जाता है। उनकी बातें सुनकर मन में एक अजीब सी उत्सुकता जागने लगी कि वो कैसा दृश्य होता होगा जब दोनों स्तंभों में लगे हुए दीपों को एक साथ जलाया जाता होगा। इन्हीं ख्यालों में मन ऐसा खोया कि कुछ देर तक बस उस दीपस्तंभ को निहारते ही रह गया। अंततः गार्ड ने जब कहा कि भाई साहब आप तो यहीं जम गए मंदिर के अंदर तो दर्शन कर लीजिए, तब जाकर तंद्रा टूटी। साथ ही उसने ये भी बताया कि ऐसा ही दीप स्तंभ कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर में भी बना हुआ है।

इन दीपस्तंभों से आगे बढ़कर हमने मंदिर के अंदर प्रवेश किया और माता के सामने सिर झुकाया और दो-चार परिक्रमा करने के पश्चात कुछ समय हमने मंदिर परिसर में ही एक चबूतरे पर बैठ कर बिताया और मंदिर की खूबसूरती को निहारा। यहां कुछ पल बिताने के पश्चात हम माता के मंदिर से बाहर निकले तो एक गोलगप्पे वाले पर नजर पड़ गई। एक तो आज सुबह से अभी तक पेट में अन्न का एक दाना तक नहीं गया था और उस पर से ये खट्टे-मीठे पानी वाला गोलगप्पा देखकर मुंह में पानी आ गया। पहले तो हमने उस ठेले की तरफ कदम बढ़ाया पर दूसरे ही पल हमने अपने कदम पीछे कर लिए कि नहीं अभय कुछ नहीं खाना है यहां क्योंकि आज रात का खाना अपने मित्र सुमित शर्मा जी के यहां खाना है और उनका आदेश था कि पेट खाली ही रखिएगा, भर कर मत आइएगा इसलिए सुबह से एक अन्न का दाना नहीं खाया था। अब आप मुझे ऐसा मत समझ लीजिएगा कि ये भी अजीब पेटू है जो रात के खाने के लिए पूरे दिन भूखे घूम रहा है तो उसके पीछे मेरी मजबूरी थी। 12 बजे तो ट्रेन से उतरा और सीधा रामघाट पहुंचा और उसके बाद वहां नहाकर सीधा महाकाल के दर्शन और फिर उज्जैन घूमने के लिए समय भी तो बचाना था। एक तो भारतीय रेल की लापरवाही ने मेरा दो घंटा बर्बाद कर दिया और अगर मैं कहीं खाने-पीने के लिए बैठका लगा दिया तो आधे-पौन घंटे तो बर्बाद हो ही जाएंगे, इसलिए समय बचाने के लिए हमने भूखे रहना ही उचित समझा।

मंदिर से निकलने के बाद हम उस जगह की तरफ ही चल दिए जहां हमें आते समय आॅटो वाले ने उतारा था। वहां पहुंचकर एक-दो आॅटो वाले से बात किया पर कोई भी जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। मतलब ये आॅटो वालेे हर जगह बाहर के लोगों को परेशान करने से बाज नहीं आते। इसी तरह पूछते हुए अंततः एक आॅटो वाला तैयार हो गया जो हमें सभी जगहों (भरतरी गुफा, गढ़कालिका मंदिर, कालभैरव मंदिर, सिद्धवट मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम) से घूमा कर फिर से यहीं छोड़ने के लिए मुनासिब कीमत में तैयार हो गया। बात तय होने के बाद मैंने फिर से एक बार ठोक-बजा कर निश्चिंत हो जाना चाहता था कि कहीं चेन्नई के आॅटो वाले की तरह ये भी न करने लगे, इसलिए हमने उससे साफ शब्दों में पूछ लिया कि जितना समय आप कह रहे हो अगर उससे ज्यादा समय लग गया तो ऐसा तो नहीं कि फिर आप झगड़ा करो कि और पैसे चाहिए। मेरी बात का उसने बहुत ही शांत तरीके से जवाब दिया कि समय ज्यादा लगे या कम मैं आपको इतने ही पैसे में सारी जगहों पर ले जाऊंगा और एक पैसे ज्यादा नहीं लूंगा। उसकी बातों पर भरोसा करके हम उसकी आॅटो में बैठ गए और उसका वृत्तांत हम अपने अगले पोस्ट में आपको बताएंगे तब तक के लिए हम आपसे आज्ञा चाहते हैं।

धन्यवाद।


इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास




आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :



महाराजा विक्रमादित्य की मूर्ति

विक्रमादित्य के टीले की तरफ जाने वाला प्रवेश द्वार

विक्रमादित्य के टीले से दिखाई देता एक मंदिर

विक्रमादित्य के टीले से दिखाई देता एक मंदिरनुमा धर्मशाला

विक्रमादित्य के टीले से दिखाई देता एक महाकालेेेश्वर मंदिर

क्षपणक

वराहमिहिर

घटकर्पर

वररुचि

महाकवि कालिदास

धन्वंतरि

शंकु

अमरसिंह

वेताल भट्ट

टीले के पीछे के भाग में दीवारों पर की गई नक्काशी

टीले के पीछे के भाग में दीवारों पर की गई नक्काशी

टीले के पीछे के भाग में दीवारों पर की गई नक्काशी

टीले के पीछे के भाग में दीवारों पर की गई नक्काशी

टीले के पीछे के भाग में दीवारों पर की गई नक्काशी

टीले पर स्थित पुतलियों की मूर्ति

हरसिद्धी मंदिर का बोर्ड

हरसिद्धी मंदिर में दीपस्तंभों के बीच से झांकता मंदिर

हरसिद्धी मंदिर

हरसिद्धी मंदिर में दीपस्तंभ

हरसिद्धी मंदिर में दीपस्तंभों के बीच से झांकता मंदिर

हरसिद्धी मंदिर का प्रवेश द्वार

हरसिद्धी मंदिर के बगल में एक उद्यान का प्रवेश द्वार


इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास











11 comments:

  1. काफी दिनों बाद अगली पोस्ट आई सर जी....
    वैसे मेरे ख्याल से बारिश को आपसे काफी लगाव है वह यह चाहती होगी कि आप खुशनुमा मौसम में यात्रा करें क्योंकि जिस मौसम में आप यात्रा कर रहें हैं उस मौसम में काफी गर्मी रहती हैं
    वैसे भी आप महाराज विक्रमादित्य के राज्य में आये थे तो उनके दर्शन तो होने थे
    लेकिन सर मेरे हिसाब से आपका पहला वाला प्लान सही था अगर आप माता के दरबार में रात को दर्शन करते तो आपको रात्रि में दीपस्तंभ के मनोहारी दर्शन हो जाते क्योंकि जैसा आपने बताया कि आप दीपस्तंभ देखकर मंत्रमुग्ध हो गये थे वास्तव में काफी मनोहारी दृश्य रहा होगा क्योंकि दिन में जब इतना सुंदर दृश्य है तो रात का क्या कहना.....

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    1. पहले तो आपका धन्यवाद जो आप यहां आए।
      देर से पोस्ट आने का कारण काम की व्यस्तता थी इसलिए नहीं लिख पा रहा हूं। हां सही कहा बारिश को ही हमसे प्यार है इसलिए वो मेरे साथ-साथ चलती है हर सफर में। दक्षिण की तरफ भी जब गए थे बारिश ने साथ नहीं छोड़ा था। जी हां बचपन की सुनी कहानियों वाली जगह देखने का मौका मिल गया। हां जी वो दृश्य कुछ अलग ही ऊर्जा प्रदान कर रहा था जब दीप-स्तंभ में सारे दीप जल रहे थे। रात को सब जगह से घूम कर आने के बाद आॅटो ने मुझे वहीं पर उतारा और उस दृश्य को देखने का मौका मिल गया था।

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  2. उज्जैन गया लेकिन विक्रमादित्य टीले के विषय में किसी ने नहीं बताया , गजब लोग हैं , ऐसी महत्वपूर्ण जगह क्यो नहीं बताते समझ नहीं आता

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    1. सर ट्रेवल वाले सारी जगहों पर इसलिए नहीं ले जाते कि उनका खर्चा बढ़ जाएगा और समय भी लगेगा, वैसे ये विक्रमादित्य का टीला मंदिर के समीप ही है।

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  3. जिस मौसम में घूम रहे है उसमे बारिश को आपसे नही आपको बारिश से प्यार होगा क्योंकि बारिश तो इस मौसम में सबके लिए बरसती है...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद प्रतीक जी!
      जी हां वैसे ये यात्राा तो बरसात के समय ही किया था हमने और गर्मी भी बहुत थी, संयोग से उस दिन बरसात हुई थी तो थोड़ी राहत मिली थी।

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  4. जय महाकाल !
    विक्रमादित्य के नवरत्नों के नाम का उल्लेख भी करना था, कम से कम महाकवि कालिदास का । खैर आपके साथ हमारी भी उज्जैन यात्रा की याद ताजा हो गयी ।

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    1. लेख को पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका और सुझाव देने के लिए बहुत सारा आभार। सभी नवरत्नों के प्रतिमा के नीचे उनका नाम लिख दिया गया है। आगे भी आपके ऐसे सुझावों का इंतजार रहेगा और स्वागत भी। लेख को अच्छा तो हर कोई कह देते हैं पर कोई कमियां नहीं बताते।

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  5. बहुत बढ़िया रही विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर की आपकी यात्रा, वर्णन और चित्र भी ..... बारिश से तो आपका पुराना नाता है जो आपके साथ ही रहती है ....

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी अपना समय निकालकर यहां तक आने के लिए। हां लगता तो कुछ ऐसा ही है कि जहां भी यात्रा पर गए हैं वर्षा रानी ने हर जगह स्वागत किया है।

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