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Friday, October 6, 2017

त्रिवेंद्रम से दिल्ली : एक रोमांचक रेल यात्रा

त्रिवेंद्रम से दिल्ली : एक रोमांचक रेल यात्रा



14 जून 2017 : आठ दिन से घूमते हुए अब यात्रा बिल्कुल अंतिम दौर में पहुंच चुकी थी। पद्मनाभ स्वामी मंदिर और कोवलम बीच से आने के बाद अब हमें वापसी की राह पकड़नी थी। तिरुवनंतपुरम् सेंट्रल स्टेशन से हमारी ट्रेन (ट्रेन संख्या 22633) दोपहर 2:15 पर थी। वैसे तो आम दिनों में इस ट्रेन को त्रिवेंद्रम से दिल्ली पहुंचने में 48 घंटे का समय लगता है पर माॅनसून के समय यही ट्रेन दिल्ली पहुंचाने में 52 का घंटे का समय लेती है। एक बजे तक हम लोगों ने सारा सामान पैक किया और खाने के लिए निकल पड़े और स्टेशन परिसर में ही बने फूड प्लाजा में खाना खाया और फिर वापस आकर सामान उठाकर प्लेटफार्म की तरफ चल पड़े। हमें प्लेटफाॅर्म पर पहुंचते पहुंचते 1:45 बज चुके थे। प्लेटफाॅर्म पर गया तो तो देखा कि ट्रेन पहले से ही खड़ी है और अधिकतर यात्री अपनी अपनी सीटों पर बैठ चुके हैं। जब हम अपनी सीट पर गए तो देखा कि कुछ लोग हमारी सीट पर भी कब्जा जमाए हुए हैं। अपनी सीट प्राप्त करने के लिए पहले तो उन लोगों से बहुत देर तक मुंह ठिठोली करनी पड़ी। इस सीट पर से हटाएं तो उस सीट पर बैठ जाएं, वहां से हटाएं तो फिर दूसरी पर। थक हार कर मुझे ये कहना पड़ा कि इस कूपे की सारी सीटें मेरी है। 4 लोगों में से 3 लोग तो आराम से निकल लिए पर चाौथे ने जिद पकड़ रखी थी नहीं जाने की और हमारी भी जिद थी हटाने की, लेकिन फिर हमने सोचा कि चलिए कुछ देर बैठने ही देते हैं फिर देखा जाएगा। इसी दौरान उन महाशय ने ये कह दिया कि क्या आपने ट्रेन खरीद लिया है और इसी बात की जिद से हमने भी उनको सीट से हटा कर ही दम लिया। अपनी ही जगह के लिए इतनी मशक्कत इस यात्रा में पहली ही बार हुआ। खैर मुझे सीट मिल गई और वो भाई साहब कहीं और जाकर बैठ गए।

Friday, September 22, 2017

त्रिवेंद्रम यात्रा : पद्मनाभस्वामी मंदिर और कोवलम बीच

त्रिवेंद्रम यात्रा : पद्मनाभस्वामी मंदिर और कोवलम बीच


आज हमारी यात्रा का आठवां दिन था और हमारी यात्रा अब धीरे धीरे अंतिम अवस्था में पहुंच रही थी। त्रिवेंद्रम से दिल्ली की हमारी ट्रेन दोपहर बाद 2ः15 बजे थी। तब तक पहले की बनी योजना के अनुसार आज पद्मनाभ स्वामी मंदिर में भगवान विष्णु के दर्शन करना और उसके बाद कोवलम बीच जाना था। उसके बाद वापसी में समय बचने पर गणपति मंदिर में गणपति जी के दर्शन करना था। तड़के सुबह 3 बजे अलार्म बजने के साथ ही नींद खुल गई। रात में 11 बजे के बाद तो सोए थे और 4 घंटे में नींद ठीक से पूरी हुई भी नहीं कि जागना पड़ रहा था। वैसे भी घुम्मकड़ी में नींद और भूख दोनों को त्यागना पड़ता है तभी घुमक्कड़ी हो सकती है। खैर जैसे तैसे आंखे मलते हुए उठे और दूसरे कमरे में सो रहे सभी लोगों को जगाया। यहां कमरा भी ऐसा मिला था कि हरेक व्यक्ति के लिए एक छोटा कमरा था और हम पांच लोगों के लिए पांच अलग अलग कमरे थे। हमारी योजना मंदिर 5 बजे से पहले पहुंचने की थी इसलिए सब जल्दी जल्दी नहा धो कर निकलने की तैयारी करने लगे। 4 बजते बजते हम लोग तैयार हो गए। सारा सामान पैक कर लिया गया कि आने के बाद ज्यादा समय न लगे और गीले कपड़े सूखने के लिए कमरे में ही डाल दिया गया। इतना सब करते करते 4ः15 बज गए। मंदिर जाने के लिए हम कमरे से निकले तो अभी बाहर बिल्कुल घना अंधेरा था। स्टेशन से बाहर आते ही हमें पद्मनाभ स्वामी मंदिर जाने के लिए केवल 50 रुपए में एक आॅटो मिल गया। आॅटो वाले से हमने मंदिर के मुख्य दरवाजे की तरफ छोड़ने का कहा। केवल 10 मिनट के सफर में हम मंदिर के पास पहुंच गए और आॅटो वाले को पैसे देकर हम मंदिर की तरफ बढ़ गए।

Friday, September 15, 2017

कन्याकुमारी यात्रा (भाग 2) : भगवती अम्मन मंदिर और विवेकानंद रॉक मेमोरियल

कन्याकुमारी यात्रा (भाग 2) :
भगवती अम्मन मंदिर और विवेकानंद रॉक मेमोरियल 




विवेकनन्द आश्रम में स्थित सनराइज व्यू पॉइंट से सूर्योदय का विस्मरणीय और मनमोहक नजारा देखने के बाद आइये अब हम चलते है भगवती अम्मन मदिर, विवेकानंद रॉक मेमोरियल और फिर उसके बाद कुछ और जगहों की सैर करेंगे। 8 बज चुके थे और हम अपने कमरे से निकलकर उस जगह पर आकर बस का इंतज़ार करने लगे जहाँ से आश्रम की बसें यहाँ आने वाले लोगों को लेकर संगम तक जाती है। बस आने का समय 9:30 बजे था और फिर यहाँ से जाने का समय 10:30 बजे था। 2 घंटे तक यहाँ बैठकर इतंजार करना तो ठीक बिलकुल भी नहीं था तो हमने ऑटो से जाना ही अच्छा समझा। अब सड़क पर होते तो कोई ऑटो बहुत आसानी से मिल जाती पर आश्रम के अंदर ऑटो तभी आती है जब वो किसी को यहाँ छोड़ने आया हो। कुछ मिनट के इंतज़ार के बाद भी जब कोई ऑटो नहीं आया तो हम पैदल ही चल पड़े। अभी कुछ ही कदम चले थे कि एक ऑटो आता हुआ दिखाई दिया जो कुछ लोगो को स्टेशन से लेकर यहाँ आया था। हमने उस ऑटो वाले को संगम तक छोड़ने को कहा तो उसने 5 आदमी का 50 रुपये  माँगा। हम भी ख़ुशी खुशी ऑटो बैठ गए और करीब 10 मिनट के सफर के बाद हम उस जगह पर पहुंच गए जहाँ से एक रास्ता मंदिर की तरफ और एक विवेकनन्द रॉक मेमोरियल की तरफ जाता है और किसी भी प्रकार की गाड़ी का यहाँ से आगे जाना निषेध है।

Friday, September 8, 2017

कन्याकुमारी यात्रा (भाग 1) : सनराइज व्यू पॉइंट

कन्याकुमारी यात्रा (भाग 1) : सनराइज व्यू पॉइंट



रामश्वेरम में जो ट्रेन में बैठे तो कन्याकुमारी पहुंचने से कुछ मिनट पहले ही नींद खुली। घड़ी देखा तो सुबह के 4 बजने वाले थे मतलब ट्रेन पहुंचने ही वाली थी क्योंकि ट्रेन के पहुंचने का समय 4 बजकर 5 मिनट था और देखते ही देखते ट्रेन अपने समय से कुछ पहले ही स्टेशन पहुंच गई। लोग ट्रेन से उतरने के लिए आपा धापी करने लगे, पर हमें कोई जल्दबाजी नहीं थी क्योंकि कन्याकुमारी इस ट्रेन का गंतव्य स्टेशन था और वैसे भी कन्याकुमारी आने वाली हरेक ट्रेन का ये गंतव्य स्टेशन ही होता है। सब लोगों के ट्रेन से उतर जाने के बाद हम आराम से ट्रेन से उतरे और स्टेशन से बाहर आ गए। अभी 4 बजे थे और हर तरफ घना अँधेरा था। यहाँ से हमें विवेकानंद आश्रम जाना था जहाँ पहले से हमने कमरा बुक करवा रखा था। स्टेशन से बाहर आया तो ऑटो वाला कोई 200 तो कोई 150 मांग रहा था और ये मेरे हिसाब से बहुत ज्यादा था क्योंकि मेरे एक घुम्मकड़ मित्र नरेंद्र शेलोकर ने जैसा बताया था उस हिसाब से 50 रूपये में कोई भी ऑटो वाला स्टेशन से विवेकानंद आश्रम पहुंचा देगा और हुआ भी यही। कुछ मिनट इंतज़ार के बाद एक ऑटो वाला खुद ही 50 रुपये में आश्रम पहुँचाने के लिए तैयार हो गया। जब ऑटो वाला खुद ही 50 रूपये मांगे तो मोल-तोल करने की भी कोई आवश्यकता नहीं थी और हम ऑटो में बैठ गए और करीब 10 मिनट में ही आश्रम पहुंच गए। 

Friday, September 1, 2017

रामेश्वरम यात्रा (भाग 2): धनुषकोडि बीच और अन्य स्थल

रामेश्वरम यात्रा (भाग 2): धनुषकोडि बीच और अन्य स्थल



रामेश्वरम मंदिर में दर्शन के बाद आइये अब चलते हैं रामेश्वरम के अन्य दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करते हैं। मंदिर में दर्शन, पूजा-पाठ, कुछ शॉपिंग आदि करते-करते 10:30 बज चुके थे। लोगों से पूछने पर पता चला कि अन्य स्थानों पर जाने के लिए बस या ऑटो अग्नितीर्थम के पास ही मिलेंगे तो हम एक बार फिर से अग्नितीर्थम के पास आ गए। यहाँ कुछ ऑटो वाले खड़े थे जो रामेश्वरम घूमने के लिए लोगों से पूछ रहे थे। हमने कई ऑटो वाले से बात किया तो सबने सब जगह घुमाकर फिर से यहीं पर या रेलवे स्टेशन तक छोड़ने के लिए 500 रुपए की मांग की। पैसे तो वो ज्यादा नहीं मांग रहे थे पर समय 2 घंटे से ज्यादा देने के लिए तैयार नहीं थे, पर 2 घंटे में इतनी जगह घूम पाना बिल्कुल ही असंभव था। बहुत करने पर एक ऑटो वाला 2:30 घंटे समय देने के लिए तैयार हुआ पर इतना समय भी बिल्कुल अपर्याप्त था, लेकिन ऑटो वाले इस बात की गारंटी ले रहे थे कि इतने समय में सब पूरा हो जायेगा और यदि उनकी बात मानकर हम चले भी जाते हैं तो चेन्नई की तरह यहाँ भी लफड़ा होना निश्चित था। यही सब सोचकर मैंने बस से ही जाना उचित समझा और एक दुकान से पानी लिया और बातों बातों में उनसे बस के बारे में कुछ जानकारी ले लिया और चल पड़े बस स्टैंड के ओर।  

Friday, August 25, 2017

रामेश्वरम यात्रा (भाग 1) : ज्योतिर्लिंग दर्शन

रामेश्वरम यात्रा (भाग 1) : ज्योतिर्लिंग दर्शन 





आज से एक साल पहले जब हमने भारत के उत्तर में हिमालय पर स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये थे तो ये सोचा भी नहीं था कि एक साल बाद देश के सबसे दक्षिण में स्थित भगवान शंकर के एक और ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। रामेश्वरम महादेव के ज्योतिर्लिंग के साथ साथ भगवान् विष्णु के चार धामों में से एक धाम भी है। रामेश्वरम शहर के पूर्वी भाग में स्थित श्री रामनाथ स्वामी मंदिर की ऊंची ऊंची दीवारें, सुन्दर कलाकारी से सजे हुए स्तम्भों की श्रृंखलाएं, बुलंद और सजे धजे गोपुरम (मंदिर का प्रवेश द्वार) के साथ साथ विशालकाय नंदी को देखना किसी सुन्दर कल्पना के सच होने जैसा लगता है। मंदिर का खूबसूरत विशाल गलियारा जिसे एशिया में मौजूद हिन्दू मंदिरों में सबसे लम्बा गलियारा होने का दर्जा प्राप्त है। यहाँ दो शिवलिंग की पूजा होती है, एक वो जिन्हें हनुमान जी कैलाश से लेकर आये थे और उसे विश्वलिंगम कहा जाता है जबकि दूसरे को जिसे भगवान राम ने बनाया था जिसे रामलिंगम कहा जाता है। मन्दिर परिसर में 24 कुंड है, जिसमें से 2 कुंड सुख चुके हैं और 22 कुंडों में पानी है पर यहाँ आने वाले लोगों को 21 कुंड के पानी से ही स्नान कराया जाता है क्योंकि 22वें कुंड में सभी कुंडों का पानी है। कुछ लोग जो लोग इन सभी कुंडों में नहीं करना चाहें उनके लिए इस 22वें कुंड में स्नान करना ही पर्याप्त है। इन सभी कुंडों के नाम रामायण और महाभारत कालीन लोगों के नाम पर रखे हैं जैसे अर्जुन तीर्थ, नल तीर्थ, नील तीर्थ, गायत्री तीर्थ, सावित्री तीर्थ और सरस्वती तीर्थ, गंगा-जमुना तीर्थ,आदि आदि। मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले भक्तगण इन कुंडों में स्नान के पश्चात ही मंदिर में दर्शन के लिए जाते है, वैसे इसके लिए कोई बाध्यता नहीं है, बिना इसमें स्नान के भी दर्शन किया जा सकता है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु चाहे इन कुंड में स्नान करें या न करें पर मंदिर से करीब 200 मीटर की दूरी पर यहाँ के महत्वपूर्ण स्नान अग्नितीर्थम (समुद्र) में स्नान जरूर करते हैं।

Friday, August 11, 2017

तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम की ट्रेन यात्रा

तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम की ट्रेन यात्रा 






तिरुमला स्थित भगवान् वेंकटेश्वर और तिरुपति स्थित देवी पद्मावती के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात हमारा अगला पड़ाव रामेश्वरम था, जिसके लिए हमें पहले तिरुपति से चेन्नई सेंट्रल तक एक ट्रेन के सफर के बाद चेन्नई एग्मोर से रामेश्वरम तक का सफर दूसरे ट्रेन से करना था। दोनों ट्रेन की हमारी बुकिंग पहले से ही थी इसलिए सीट की भी कोई चिंता नहीं थी। पद्मावती मंदिर के दर्शन करके मन में एक नई ऊर्जा भर गई थी, क्योंकि इस जगह पर जाने के लिए न तो मैंने सोचा था और न ही यहाँ जाने की कोई योजना थी और हम थोड़े से खाली समय का सदुपयोग करके इस मंदिर के दर्शन भी कर लिया। शायद इस मंदिर के दर्शन न करता और बाद में लोगों से ये सुनता कि जितना समय हमारे पास था उससे कम समय में इस मंदिर के दर्शन किये जा सकते थे तो बाद में बहुत अफ़सोस होता, पर अब कोई अफ़सोस नहीं था। अब अगर कुछ था तो एक नयी ऊर्जा के साथ आगे की यात्रा के लिए बढ़ना। हमारी ट्रेन 10 बजे थे और 9:30 बज चुका था और हमें यहाँ से निकलकर स्टेशन के लिए प्रस्थान करने का समय हो चुका था। 

Friday, August 4, 2017

देवी पद्मावती मंदिर (तिरुपति) यात्रा और दर्शन

देवी पद्मावती मंदिर (तिरुपति) यात्रा और दर्शन



तिरुमला की सप्तगिरि पहाड़ियों में स्थित भगवान् वेंकटेश के दर्शन के उपरांत हम कल ही तिरुमला से तिरुपति आ गए थे और आज हमें तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम जाना था। हमारी ट्रेन दिन में 10 बजे थी और प्लान तो यही था कि सुबह सुबह तिरुपति शहर में एक दो घंटे घूमने के बाद निर्धारित समय पर स्टेशन पहुंचना है, पर एक मित्र के सुझाव के अनुसार मुझे अपनी योजना बदलनी पड़ी। अब हम तिरुपति के बाज़ारों में भटकने के बजाय देवी पद्मावती के दर्शन के लिए जाना था। वैसे तो पद्मावती मंदिर के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी थी कि ये मंदिर तिरुपति में स्थित है पर यहाँ कैसे जाएं और जाने के बाद कितना टाइम लगेगा ये सब पता नहीं होने के कारण मैंने इसे अपनी योजना में शामिल नहीं किया था। कभी कभी बिना सोचे हुए भी कुछ हो जाता है और यही मेरे साथ हुआ। कल रात में एक मित्र नरेंद्र शोलेकर ने मुझे पद्मावती मंदिर और वहां जाने के बारे में बताया और मैं वहां जाने को झट तैयार हो गया। शायद उनका मार्गदर्शन न होता तो शायद इस मंदिर के दर्शन से मैं वंचित रह जाता। 

Friday, July 28, 2017

तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन

तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन





एक बहुत लम्बे इंतज़ार और लम्बे सफर के बाद हम आज उस जगह पर पहुंचे हुए थे, जहाँ हर दिन लाख लोग अपनी अपनी मुरादें लेकर आते रहते हैं लेकिन मैं यहाँ कोई मुराद या मन्नत लेकर नहीं आया था, मैं तो बस उस दिव्य जगह के दिव्य दर्शन के लिए यहाँ आया था। हर दिन सोचा करता था कि आखिर ऐसा क्या है उस जगह पर जहाँ हर दिन इतने सारे लोग जाते हैं और आज हम भी उसी जगह पर पहुंचे हुए हैं। शहरों की भाग दौड़ वाली जिंदगी से दूर यहाँ एक अलग ही शांति थी और इतने सारे लोग एक दूसरे से अनजान होते हुए भी अनजान नहीं दिख रहे थे। यहाँ एक साथ पूरे देश से आये हुए लोग देखे जा सकते हैं। सबकी अलग भाषा, अलग रहन सहन, अलग खान पान होते हुए भी यहाँ सब एक ही रंग में रंगे हुए नज़र आ रहे थे और वो रंग था भक्ति का। इस भीड़ में कुछ दूसरे देश के लोग भी दिखाई दे जाते थे और वो भी यहाँ आकर भक्ति के रंग में सराबोर थे। यहाँ आया हुआ हर व्यक्ति देश, राज्य, जाति, वर्ग, गरीब, अमीर को भूल कर बस भक्ति में लीन अपनी ही धुन में चला जा रहा था। यहाँ की स्थिति को देखकर मन में बस एक ही ख्याल आ रहा था कि काश हर जगह बस ऐसी ही शांति हो, जहाँ कोई किसी के आगे या पीछे न होकर बस एक साथ चल रहे हों। 

Friday, July 21, 2017

चेन्नई से तिरुमला

चेन्नई से तिरुमला


चेन्नई के बाद हमारा अगला पड़ाव तिरुमला था, जहाँ पहुँच कर रात में रुकना था और अगले दिन भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करना था। चेन्नई से तिरुपति तक का सफर ट्रेन और तिरुपति से तिरुमला तक का सफर बस से करना था। भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर तिरुमला की पहाड़ियों में स्थित है जो तिरुपति से बस से द्वारा 22 किलोमीटर और पैदल जाने वाले के लिए 10 किलोमीटर की चढ़ाई है। तिरुपति से तिरुमला पर्वत पर गाड़ियों के लिए जाने का अलग और आने का अलग मार्ग है, मतलब एकतरफा रास्ता है। वैसे चेन्नई से तिरुपति तक बस या ट्रेन दोनों से जाया जा सकता है। चेन्नई से तिरुपति की बसें बहुतायत में मिलती है। तिरुपति के पास में रेलवे का बड़ा स्टेशन रेनिगुंटा है, जहाँ के लिए चेन्नई से दर्जन भर से ज्यादा ट्रेनें है पर तिरुपति के लिए कुछ ही ट्रेन है।आप अगर ट्रेन से जा रहे हैं तो रेनिगुंटा या तिरुपति दोनों जगह से आपको तिरुमला के लिए बस और जीप बहुत आसानी से और बहुतायत में मिलती है। चेन्नई से तिरुपति की हमारी ट्रेन दोपहर 2:15 बजे थी और करीब 1:30 बजे हम वेटिंग रूम से प्लेटफार्म पर आकर ट्रेन का इंतज़ार करने लगे। 

Friday, July 14, 2017

मरीना बीच, चेन्नई (Marina Beach, Chennai)

मरीना बीच, चेन्नई (Marina Beach, Chennai)





सुबह 7 बजे चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतरते ही हमारे सफर का पहला पड़ाव पूरा हो चुका था। यहाँ से आगे का हमारा अगला पड़ाव तिरुमला था, जिसका सफर हमें चेन्नई से तिरुपति तक ट्रेन से और उसके आगे तिरुपति से तिरुमला तक बस से तय करना था। चेन्नई से तिरुपति जाने वाली हमारी ट्रेन दोपहर बाद 2:15 बजे थी और अभी सुबह के 7 ही बजे थे मतलब मेरे पास 7 घंटे का समय था। अब 7 घंटे स्टेशन पर बैठ कर व्यतीत करना मुझे उचित नहीं लगा। अब बात ये थी कि जाएँ तो जाएं कहाँ। चेन्नई में कहीं जाना या रुकना नहीं था इसलिए यहाँ के लिए कुछ सोचा नहीं था। सोच कर तो यही आये थे कि ट्रेन 2-4 घंटे दो देर होगी ही, पर ट्रेन ने समयानुसार मुझे चेन्नई पंहुचा दिया इसलिए अभी मेरे साथ 'किं कर्तव्य विमूढ़' वाली स्थिति पैदा हो गयी थी। हम सोचने में लगे हुए और समय अपनी ही गति से चला जा रहा था। 

Friday, July 7, 2017

दिल्ली से चेन्नई : एक लम्बी ट्रेन यात्रा

दिल्ली से चेन्नई : एक लम्बी ट्रेन यात्रा



4 महीने से जिस दिन का इंतज़ार कर रहा था आख़िरकार वो दिन आ गया। आज रात 10 बजे तमिलनाडु एक्सप्रेस से चेन्नई के लिए प्रस्थान करना था। मम्मी पापा एक दिन पहले ही दिल्ली पहुंच चुके थे। यात्रा की सारी तैयारियां भी लगभग पूरी हो चुकी थी। मैं सुबह समय से ऑफिस  के लिए निकल गया। चूंकि ट्रेन रात में 10:30 बजे थी इसलिए ऑफिस से भी समय से पहले निकलने की कोई जल्दी नहीं थी, पर ये घुम्मकड़ मन कहाँ मानता है और 4 बजे ही ऑफिस से निकल गया। घर आकर तैयारियों का जायजा लिया और बची हुई तैयारियों में लग गया। 7 बजे तक सब कुछ तैयार था, बस अब जाते समय सामान उठाकर निकल जाना था। साढ़े सात बजे तक सब लोग खाना भी खा चुके और 9 बजने का इंतज़ार करने लगे। अभी एक घंटा समय हमारे पास बचा हुआ था और इस एक घंटे में मेरे मन में अच्छे-बुरे खयाल आ रहे थे, अनजान जगह पर जहाँ भाषा की समस्या सबसे ज्यादा परेशान करती है उन जगहों पर पता नहीं क्या क्या समस्या आएगी। इसी उधेड़बुन में कब एक घंटा बीत गया पता नहीं चला।

Friday, June 30, 2017

दक्षिण भारत यात्रा की शुरुआत

दक्षिण भारत यात्रा की शुरुआत



करीब 3 साल पहले तिरुपति जाने का विचार किया था पर तब से वहां जाने का समय नहीं निकाल पाया।समय नहीं निकल पाने का कारण भी कम रोचक नहीं है। जब भी तिरुपति जाने की बात घर में करता तो पत्नी साथ साथ रामेश्वरम भी निपटा लेने की बात कहती। उसके बाद मैं भी कुछ और जोड़ देता कि जब तिरुपति और रामेश्वरम निपटा ही देना है तो मदुरै का मीनाक्षी मंदिर और कन्याकुमारी को क्यों छोड़ें, लगे हाथ यहाँ भी हो लें और इसी चक्कर में योजना बन ही नहीं पा रही थी। गर्मियों में उधर पड़ने वाली भयंकर गर्मी के कारण उधर जाने का सोच भी नहीं सकता था और सर्दियों में इतनी लम्बी छुट्टी मिल पाना भी मुमकिन नहीं था। इसी बीच केदार-बदरी यात्रा भी कर ली पर तिरुपति जाने का समय निकल नहीं पाया।