बदरीनाथ यात्रा-1 : दिल्ली से हरिद्वार (Delhi to Haridwar)
एक बहुत ही लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर से एक छोटी या बड़ी घुमक्कड़ी का संयोग बन रहा था, जिसमें जाने की तिथि तो हमने तय कर लिया था कि अमुक दिन हमें जाना है लेकिन वापसी की तिथि का कुछ पता नहीं था कि वापसी कब होगी, क्योंकि पहले यही नहीं पता था कि जाना कहां है, किस ओर कदम बढ़ेंगे, कितने दिन लगेंगे, और कौन साथ में चलेंगे या फिर अकेले ही जाना होगा, अगर कुछ तय था तो जाने का दिन और जाने की दिशा। अब जब जाने का दिन और दिशा तय था ही तो हमने सोचा कि क्यों न जाने का एक टिकट करवा लेता हूं और यही सोचकर हमने दिल्ली से हरिद्वार का एक टिकट बुक कर लिया। टिकट बुक करने के बाद कुछ साथियों को पूछा कि इतने तारीख को हम कहीं जाएंगे अगर आपका विचार बनता है तो साथ चलिए, जगह आप जहां कहेंगे हम वहां चले जाएंगे, पर वही ढाक के ढाई पात, ओह साॅरी ढाई नहीं तीन पात वाली बात हुई। कोई भी साथी जाने को तैयार न हुए।