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Thursday, May 4, 2017

बैजनाथ महादेव (Baijnath Mahadev), हिमाचल प्रदेश

बैजनाथ महादेव, पालमपुर
(Baijnath Mahadev, Palampur)

सबसे पहले आपको आज की योजना के बारे में बता दूँ। आज की मेरी योजना चिंतपूर्णी देवी से सीधे बैजनाथ जाने की है। साधन कुछ हो हो सकता है। चिंतपूर्णी देवी से ज्वालामुखी रोड तक बस से और वहां से ट्रेन से या फिर चिंतपूर्णी देवी से सीधे बैजनाथ तक बस से। उसके बाद 2:30 बजे वाली ट्रेन से बैजनाथ से पठानकोट और रात में पठानकोट में विश्राम और अगले दिन सुबह दिल्ली के लिए रवाना।

Tuesday, April 25, 2017

भागसू नाग मंदिर और झरना (Bhagsu Naag Temple and Waterfall)

भागसू नाग मंदिर और झरना
(Bhagsu Naag Temple and Waterfall)


भागसू नाग मंदिर और झरना, मैक्लोडगंज (Bhagsu Naag Temple and Waterfall, McLeodganj)

काँगड़ा से धर्मशाला पहुंचकर बस से उतरने के बाद आने के बाद कुछ इधर उधर घूमा और फिर मैक्लोडगंज जाने वाली बस में जाकर बैठ गया। अभी 11 बजे थे। बस खुलने ही वाली थी। वैसे ये बस मैक्लोडगंज से आगे नड्डी गांव तक जा रही थी। नड्डी गांव गाड़ियों का अंतिम गंतव्य स्थल है इससे आगे कोई गाड़ी नहीं जाती। 11:30 बजे बस मैक्लोडगंज पहुँच गयी। हम बस से उतरकर बिना किसी से पूछे जिस और कुछ लोग जा रहे थे उधर ही चल दिए।  बस स्टैंड ऐसे बना हुआ था जैसे एक बड़ी से बिल्डिंग हो। मैं सीढिया चढ़कर ऊपर पहुँचा। वहीं बहुत सारी टैक्सियां खड़ी जो पर्यटकों के इंतज़ार में थी। ऐसा लग रहा था कि यही जगह मैक्लोडगंज का मुख्य बाजार है। पूरा चहल-पहल था।  यहीं से आगे तीन रास्ते थे।  मैं बिना किसी से कुछ पूछे ऐसे ही बीच वाली सड़क पर चलने लगा। बाजार पर करने के बाद रास्ता बेहद ही मनभावन और शांति लिए हुए था। दूर पैराग्लइडिंग करते हुए लोग दिख रहे थे। 

Tuesday, April 18, 2017

धर्मशाला : हिमाचल का गहना (Dharamshala)

धर्मशाला : हिमाचल का गहना (Dharamshala)


कल पूरे दिन के सफर की थकान और बिना खाये पूरे दिन रहने के बाद रात को खाना खाने के बाद जो नींद आयी वो एक ही बार 4:30 बजे मोबाइल में अलार्म बजने के साथ ही खुला। बिस्तर से उठकर जल्दी से मैं नहाने की तैयारी में लग गया। फटाफट नहा-धोकर तैयार हुआ और सारा सामान पैक किया। इतना करते करते 5 :30 बज गए। अब कल की योजना के मुताबिक एक बार फिर माँ ज्वालादेवी के दर्शन के लिए चल दिया। बाहर घुप्प अँधेरा था। इक्का-दुक्का लोग ही मंदिर के रास्ते पर मिल रहे थे। कुछ देर में हम मंदिर पहुँच गए। यहाँ मुश्किल से इस समय 25 -30 लोग ही थी। अभी मंदिर खुलने में कुछ समय था। कुछ देर में आरती आरम्भ हो गयी। आरती समाप्त होते होते मेरे पीछे करीब 300 से 400 लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी। आरती के बाद 6:30 पर मंदिर के कपाट खोल दिए गए। बारी बारी से श्रद्धालु एक एक करके मंदिर में प्रवेश कर रहे थे और दर्शन के बाद दूसरे दरवाजे से निकल रहे थे। 20 मिनट में मेरी बारी आयी तो मैंने भी एक बार फिर से दर्शन किये। 7 :00 बज चुके थे उसके बाद सीधा मैं गेस्ट हाउस आया और अपने बैग उठाकर नीचे आया। यहाँ से मुझे बस से ज्वालामुखी रोड जाना था उसके बाद वहां से ट्रेन से बैजनाथ जाना था।

Tuesday, January 3, 2017

केदारनाथ (Kedarnath)

केदारनाथ (Kedarnath)

चौथा दिन

सुबह के 3 बजते ही मोबाइल का अलार्म बजना शुरू हो गया। नींद पूरी हुई नहीं थी इसलिए उठने का मन बिलकुल नहीं हो रहा था।  सब लोगों को जगाकर मैं एक बार फिर से सोने की असफल कोशिश करने लगा।जून के महीने में भी ठण्ड इतनी ज्यादा थी कि रजाई से बाहर निकलने का मन नहीं हो रहा था। 5 बजे तक हम लोगों को तैयार होकर गेस्ट हाउस से केदारनाथ के लिए निकल जाना था इसलिए ना चाहते हुए भी इतनी ठण्ड में रजाई से निकलना ही था। पहले तो पिताजी और बेटे नहाने गए। उसके बाद माताजी और पत्नी की बारी आयी। मेरा मन गरम पानी के झरने में नहाने का करने लगा पर हिम्मत नहीं हो रही थी कि बाहर निकलें। कमरे के अंदर का तापमान जब 5 डिग्री के करीब था तो सोचिये बाहर का तापमान कितना होगा। फिर मैं टॉर्च और एक टॉवेल लिया और पिताजी को ये बोलकर कि मैं कुछ देर में आता हूँ और तेज़ी से कमरे से निकल गया। बाहर निकलते ही ठण्ड ने अपना असर दिखाया। ऐसा लग रहा था कि मैं किसी बर्फ से भरे  किसी टब में हूँ। मैं दौड़ता हुआ गेस्ट हाउस की 50 सीढियाँ उतर गया। हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। उस सन्नाटे में मन्दाकिनी नदी की पानी के बहने की जो आवाज़ थी बहुत ही मधुर लग रही थी। मन्दाकिनी की आवाज ऐसे लग रही थी जैसे कोई संगीत की धुन हो। मैं सीढ़ियों से उतरने के बाद मन्दाकिनी की तरफ गया और देखने लगा की गरम पानी का झरना किधर है।

Saturday, December 31, 2016

माणा : भारत का आखिरी गांव (Maana: Last Village of India)

बदरीनाथ से माणा गांव 


माणा गांव एक नजर में 

बदरीनाथ से तीन किमी आगे भारत का आखिरी गांव माणा सांस्कृतिक विरासत और अपनी अनूठी परंपराओं के लिए खासा महत्वपूर्ण है। लेकिन इससे भी ज्यादा यहां की प्राकृतिक सुंदरता देश विदेश के पर्यटकों के अपनी ओर खींचती है। मांणा गांव समुद्र तल से 10,200 फुट की ऊंचाई पर बसा है। भारत-तिब्बत सीमा से लगे यह गांव अपनी अनूठी परम्पराओं के लिए भी खासा मशहूर है। यहां रडंपा जनजाति के लोग निवास करते हैं। पहले बद्रीनाथ से कुछ ही दूर गुप्त गंगा और अलकनंदा के संगम पर स्थित इस गांव के बारे में लोग बहुत कम जानते थे लेकिन अब सरकार ने यहां तक पक्की सड़क बना दी है। इससे यहां पर्यटक आसानी से आ जा सकते हैं, और इनकी संख्या भी पहले की तुलना में अब काफी बढ़ गई है। भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित इस गांव के आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें व्यास गुफा, गणेश गुफा, सरस्वती मन्दिर, भीम पुल, वसुधारा आदि मुख्य हैं। मांणा में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। छह महीने तक यह क्षेत्र केवल बर्फ से ही ढका रहता है। यही कारण है कि यहां कि पर्वत चोटियां बिल्कुल खड़ी और खुष्क हैं। सर्दियां शुरु होने से पहले यहां रहने वाले ग्रामीण नीचे स्थित चमोली जिले के गांवों में अपना बसेरा करते हैं। शायद ही कोई ऐसा पर्यटक होगा जो बद्रीनाथ धाम से 3 किलोमीटर आगे इस दुकान पर लगे ‘भारत की आखिरी चाय की दुकान’ के बोर्ड के सामने फोटो न खिंचवाता हो. इस बोर्ड पर अंग्रेजी और हिन्दी सहित 10 भारतीय भाषाओं में लिखा है ‘भारत की आखिरी चाय की दुकान में आपका हार्दिक स्वागत है'.

बदरीनाथ (Badrinath)

बदरीनाथ (Badrinath)

बदरीनाथ  के बारे में 
बदरीनाथ भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक स्थान है जो हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ है। यह उत्तराखण्ड के चमोली जिले में स्थित एक नगर पंचायत है। यहाँ बद्रीरीनाथ मन्दिर है जो हिन्दुओं के चार प्रसिद्ध धामों में से एक है। बदरीनाथ जाने के लिए तीन ओर से रास्ता है रानीखेत से, कोटद्वार होकर पौड़ी (गढ़वाल) से ओर हरिद्वार होकर देवप्रयाग से। ये तीनों रास्ते रूद्वप्रयाग में मिल जाते है। रूद्रप्रयाग में मन्दाकिनी और अलकनन्दा का संगम है। जहां दो नदियां मिलती है, उस जगह को प्रयाग कहते है। बदरी-केदार की राह में कई प्रयाग आते है। रूद्रप्रयाग से जो लोग केदारनाथ जाना चाहतें है, वे उधर चले जाते है। भारत के प्रसिद्ध चार धामों में द्वारिका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर व बदरीनाथ आते है. इन चार धामों का वर्णन वेदों व पुराणौं तक में मिलता है. चार धामों के दर्शन का सौभाग्य पूर्व जन्म पुन्यों से ही प्राप्त होता है. इन्हीं चार धामों में से एक प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ धाम है. बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है. बद्रीनाथ धाम ऎसा धार्मिक स्थल है, जहां नर और नारायण दोनों मिलते है. धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार इसे विशालपुरी भी कहा जाता है. और बद्रीनाथ धाम में श्री विष्णु की पूजा होती है. इसीलिए इसे विष्णुधाम भी कहा जाता है. यह धाम हिमालय के सबसे पुराने तीर्थों में से एक है. मंदिर के मुख्य द्वार को सुन्दर चित्रकारी से सजाया गया है. मुख्य द्वार का नाम सिंहद्वार है. बद्रीनाथ मंदिर में चार भुजाओं वली काली पत्थर की बहुत छोटी मूर्तियां है. यहां भगवान श्री विष्णु पद्मासन की मुद्रा में विराजमान है. बद्रीनाथ धाम से संबन्धित मान्यता के अनुसार इस धाम की स्थापना सतयुग में हुई थी. यहीं कारण है, कि इस धाम का माहात्मय सभी प्रमुख शास्त्रों में पाया गया है. इस धाम में स्थापित श्री विष्णु की मूर्ति में मस्तक पर हीरा लगा है. मूर्ति को सोने से जडे मुकुट से सजाया गया है. यहां की मुख्य मूर्ति के पास अन्य अनेक मूर्तियां है. जिनमें नारायण, उद्ववजी, कुबेर व नारदजी कि मूर्ति प्रमुख है. मंदिर के निकट ही एक कुंड है, जिसका जल सदैव गरम रहता है. बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है, इसीलिए इसे वैकुण्ठ की तरह माना जाता है. यह माना जाता है, कि महर्षि वेदव्याज जी ने यहीं पर महाभारत और श्रीमदभागवत महान ग्रन्थों की रचना हुई है. यहां भगवान श्री कृ्ष्ण को केशव के नाम से जाना जाता है. इसके अतिरिक्त इस स्थान पर क्योकि देव ऋषि नारद ने भी तपस्या की थी. देव ऋषि नारद के द्वारा तपस्या करने के कारण यह क्षेत्र शारदा क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है. यहां आकर तपस्या करने वालों में उद्वव भी शामिल है. इन सभी की मूर्तियां यहां मंदिर में रखी गई है. मंदिर के निकट ही अन्य अनेक धार्मिक स्थल है. जिसमें नारद कुण्ड, पंचशिला, वसुधारा, ब्रह्माकपाल, सोमतीर्थ, माता मूर्ति,शेष नेत्र, चरण पादुका, अलकापुरी, पंचतीर्थ व गंगा संगम.