दिल्ली से चेन्नई : एक लम्बी ट्रेन यात्रा
4 महीने से जिस दिन का इंतज़ार कर रहा था आख़िरकार वो दिन आ गया। आज रात 10 बजे तमिलनाडु एक्सप्रेस से चेन्नई के लिए प्रस्थान करना था। मम्मी पापा एक दिन पहले ही दिल्ली पहुंच चुके थे। यात्रा की सारी तैयारियां भी लगभग पूरी हो चुकी थी। मैं सुबह समय से ऑफिस के लिए निकल गया। चूंकि ट्रेन रात में 10:30 बजे थी इसलिए ऑफिस से भी समय से पहले निकलने की कोई जल्दी नहीं थी, पर ये घुम्मकड़ मन कहाँ मानता है और 4 बजे ही ऑफिस से निकल गया। घर आकर तैयारियों का जायजा लिया और बची हुई तैयारियों में लग गया। 7 बजे तक सब कुछ तैयार था, बस अब जाते समय सामान उठाकर निकल जाना था। साढ़े सात बजे तक सब लोग खाना भी खा चुके और 9 बजने का इंतज़ार करने लगे। अभी एक घंटा समय हमारे पास बचा हुआ था और इस एक घंटे में मेरे मन में अच्छे-बुरे खयाल आ रहे थे, अनजान जगह पर जहाँ भाषा की समस्या सबसे ज्यादा परेशान करती है उन जगहों पर पता नहीं क्या क्या समस्या आएगी। इसी उधेड़बुन में कब एक घंटा बीत गया पता नहीं चला।
8:30 बज चुके थे और अब हम घर से निकलने के लिए तैयार हुए। पहली समस्या यहाँ से नई दिल्ली तक पहुंचने की थी। मेट्रो में इस समय इतनी भीड़ होती है कि सपरिवार यात्रा करना आसान काम नहीं था। ऑटो से जाने पर 2 ऑटो चाहिए वो भी दिक्कत वाली बात थी। अब ये तय किये कि जिंदगी में पहली बार ओला कैब से सफर किया जाये और झट ओला कैब का ऐप डाउनलोड किया और उसके बाद घर से निकल लिए। ठीक 9 बजे घर से निकले और मुख्य सड़क पर जाकर ओला कैब बुक किया तो नई दिल्ली का किराया 178 रुपये दिखा रहा था मैंने झट से कैब बुक किया। कुछ देर में कैब आ गयी हम सब बैठ गए और ठीक 10 बजे नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गए। प्लेटफार्म पर जाते जाते 10:15 बज चुके थे। वहां गया तो देखा कि ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहले से ही मेरा इंतज़ार कर रही थी। हम 5 लोग थे और सीट भी इस बार बहुत तरीके से मिली थी और केवल इस ट्रेन में ही नहीं, इस समूची यात्रा में जितने भी टिकट थे सब एक ही तरह से था। 5 सीटों में लोअर, मिडिल, अपर, साइड लोअर और साइड अपर बर्थ थी और किसी दूसरे से कोई मतलब नहीं जब मर्ज़ी सो जाओ और जब मर्ज़ी बैठो। ठीक 10:30 बजे ट्रेन नई दिल्ली से चेन्नई के लिए रवाना हो गई। कुछ ही देर में ट्रेन हज़रत निजामुद्दीन स्टेशन को पार कर गई।
11 बज चुके थे और 10 बजते बजते सो जाने वाले मुझ जैसे आदमी को नींद अपनी आगोश में ले लेने को आतुर था। हमने बर्थ लगाया और सो गए। इसी बीच ट्रेन कब आगरा पहुंची पता नहीं ही नहीं चला। रात में 1 बजे कुछ पल के लिए नींद खुली तो देखा कि ट्रेन आगरा स्टेशन पर खड़ी है और उसके बाद ट्रेन के आगरा से खुलने के बाद मैं फिर से सो गया। उसके बाद ट्रेन ग्वालियर से कब गुजर गयी कुछ पता नहीं चला। इधर कुछ कुछ बरसात हुई थी इस कारण हलकी हल्की ठण्ड लगने लगी थे और इसी ठण्ड ने नींद में खलल डाल दिया। अब तक पहाड़ी रास्ते आरंभ हो चुके थे और कुछ ही देर में ट्रेन झाँसी स्टेशन पहुंच गयी। घड़ी देखा तो तारिख 7 जून से 8 जून हो चुके थे और समय सुबह के 4 बज चुके थे। झांसी में हमारी कोच जिस जगह खड़ी थी वहां पर प्लॅटफॉम के विपरीत साइड में ट्रेन में पानी भरने वाले पाइपलाइन से पानी गिरता हुआ दिख गया। पानी गिरता हुआ देख मेरी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि मुझे नहाने के लिए पानी मिल गया था और मैं आराम से नहा सकता था। मैं जल्दी से उतरा और पानी की टैप खोला और नहा कर जल्दी से ट्रेन में वापस चढ़ गया। नहाने का ये आईडिया मुझे एक मित्र संजय कौशिक जी ने दिया था और उनका ये आईडिया आज मुझे पूरे दिन भूखे रहने से बचा लिया। नहाने के बाद मैं फिर से ट्रेन में बैठ गया। अब तक सुबह की आहट होने लगी थी। अब ट्रेन में सवार लोग एक एक करके जागने लगे थे।
करीब 8 बजे ट्रेन भोपाल स्टेशन पहुंच गई। यहाँ उतर कुछ हमने कुछ फोटो ली फिर वापस ट्रेन में बैठ गए। जल्दी ही ट्रेन भोपाल को भी अलविदा कहते हुए आगे बढ़ गई। अगला पड़ाव इटारसी था। करीब 10 बजे ट्रेन इटारसी पहुंच गयी और और कुछ देर में ही इटारसी को भी अलविदा कहते हुए आगे के सफर पर चल पड़ी। इटारसी के बाद अगला पड़ाव नागपुर था। इटारसी और नागपुर के बीच कई छोटे बड़े स्टेशन आये उनमें से कुछ के नाम भी बड़े अजीब थे। इटारसी से एक घंटे के सफर के बाद एक स्टेशन आया जिसका नाम सहेली था, मैं जब तक तक कैमरा निकलता तब तक वो इठलाती हुई दूर जा चुकी थी और मैं फोटो लेने से वंचित रह गया।
भोपाल के बाद ही पहाड़ और जंगलों का क्षेत्र आरंभ हो चुका था और इटारसी तक यही हाल था। इटारसी से कुछ आगे तक तो जंगल साथ साथ चलते रहे और आगे जाकर ये जंगल बंजर भूमि में बदल गए। दूर दूर तक केवल बंजर भूमि और पहाड़ के अलावा कुछ और नहीं था। अब तक दक्षिण भारत वाली गरमी का अहसास होने लगा था, और इस गर्मी से बचने के लिए घर से ही लाये हुए नीम्बू-पानी, रूह अफ्जा और तरबूज से गर्मी को भगाने असफल प्रयास जारी रहा। पहली बार के सफर के रोमांच के आगे गर्मी का अहसास तो कुछ भी नहीं था, इटारसी से नागपुर के बीच मैं अपनी सीट पर कुछ देर के लिए ही बैठा और बाकी समय कैमरा लेके दरवाजे पर ही खड़ा रहा। इसी बीच अमला (स्टेशन) और कोहली (स्टेशन) से मुलाकात हुई, अमला जी से तो बहुत छोटी मुलाकात हुई पर कोहली से एक लम्बी मुलाकात हुई क्योकि उस समय ट्रेन की गति कम थी तो आराम से उनकी फोटो ले लिया।
इसी तरह चलते हुए नागपुर आ गया और पहली बार हमने इडली और सांभर का स्वाद लिया। नागपुर आने से पहले GDS के कुछ सदस्यों ने डायमंड क्रासिंग की फोटो लेने की बात कही पर ट्रेन की गति के कारण संभव नहीं हो सका। 15 मिनट नागपुर में रुकने के बाद 2:30 बजे ट्रेन नागपुर से चली और अब अगला पड़ाव बल्हारशाह था। बल्हारशाह पहुचंते पहुचंते गरमी से राहत मिलने लगी थी जिसके दो कारण थे एक तो शाम होने वाली थी और दूसरी बात ये कि इधर हल्की बरसात भी हुई थी। यहाँ हमने रात में खाने के लिए कुछ खाने पीने का सामान ले लिया और ट्रेन में बैठ गए। कुछ देर में ट्रेन चली और फिर वही घने जंगल और पहाड़ दिखने लगे, अगर कहीं ट्रेन की गति कुछ कम होती तो खूबसूरत नज़ारों को कैमरे में कैद कर लेता और फिर बाकी समय उन दृश्यों को देखकर मन ही मन खुश हो लेता। करीब 9 बजे ट्रेन वारंगल पहुंच गई। वारंगल से थोड़ा पहले ट्रेन जब गोदावरी नदी को पार कर रही तो वह दृश्य बिलकुल देखने लायक था। वारंगल पहुंचते ही सबने खाना खाया और सो गए। रात करीब 12 बजे ट्रेन विजयवाड़ा पहुँची और कुछ देर बाद अपने अगले और अंतिम पड़ाव चेन्नई के लिए चल पड़ी। विजयवाड़ा से ट्रेन के चलने के बाद जल्दी ही ट्रेन कृष्णा नदी को पार कर गयी। रात होने के कारण मैं न तो गोदावरी और न ही कृष्णा नदी को ठीक से देख सका। अब हम फिर से सोने की कोशिश करने लगे और जल्दी ही कामयाब भी हो गए।
अगले दिन यानी 9 जून को सुबह 6 बजे जब नींद खुली तो ट्रेन चेन्नई से कुछ दूर पहले थी। आसपास खेतों में काम करने वाले लोगो को देखकर ही चेन्नई के नज़दीक होने का अंदाज़ हो चुका था। उत्तर भारत में जहाँ जुलाई के अंत में धान की रोपाई होती है पर इधर जून के आरम्भ में ही धान की रोपाई हो रही थी। कुछ देर में ट्रेन एक नदी को पार करने लगी जिसका नाम कुछ टेढ़ा था जिसे मैंने डायरी में नोट कर लिया नहीं तो याद भी नहीं रह पाता। उस नदी का नाम था कोशाथालैयार जो आगे चलकर समंदर में मिल रही थी। ये मेरे लिए दूर से समंदर के प्रथम दर्शन थे। कुछ देर में ट्रेन चेन्नई में प्रवेश कर चुकी थी पर स्टेशन आने में अभी समय था। अब ट्रेन रुक रुक कर और धीरे धीरे चल रही थे और अंततः ट्रेन 7 बजे चेन्नई सेंट्रल स्टेशन पहुंच गयी और हमारा 33 घंटे का सफर पूरा हुआ। ये सफर मेरे जीवन की सबसे लम्बी ट्रेन यात्रा थी। करीब 2200 किलोमीटर का सफर पूरा करके ट्रेन अपने समय से 10 मिनट पहले ही अपने गंतव्य तक पहुंच गई और एक दिल्ली से हावड़ा रुट की ट्रेनें हैं जो 1000 किलोमीटर के सफर में 10 से 12 घंटे की देरी से चलती है। फर्क कहाँ है ये तो रेलवे को ही पता होगा। दिल्ली से पटना और पटना से दिल्ली आते जाते जहाँ हम 14 से 15 घंटे में ही ऊब जाते है, लेकिन ये 33 घंटे का सफर कैसे पूरा हुआ पता भी नहीं चल पाया। रेलवे का इतना आसान सफर मैंने आज तक नहीं किया, यहाँ न तो सीट के लिए कोई खींचतान थी और न कोई आपकी सीट पर कब्ज़ा करने वाला था।
आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं और अगला भाग लेकर जल्दी ही मैं आपके समक्ष हाज़िर होऊंगा। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये और बने रहिये मेरे साथ। जो भी गलती हो या कुछ सुधार की जरूरत हो एक टिप्पणी के माध्यम से जरूर बताइएगा।
आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :
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चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन |
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तमिलनाडु एक्सप्रेस की एक झलक |
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एक पल से कोयले से भरी मालगाड़ी |
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साँची स्टेशन (कभी बाद में यहाँ की यात्रा करनी है) |
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साँची और भोपाल के बीच पहाड़ |
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भदभदा स्टेशन (साँची और भोपाल के बीच) |
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भोपाल स्टेशन पर आदित्या |
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भोपाल स्टेशन |
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हबीबगंज स्टेशन |
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भोपाल और इटारसी के बीच कहीं भी |
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भोपाल और इटारसी के बीच कहीं भी |
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इटारसी स्टेशन पर मैं |
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इटारसी स्टेशन |
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थोड़रामोहर स्टेशन |
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एक सुरंग में प्रवेश करती ट्रेन |
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धाराखोह स्टेशन (यहाँ ट्रेन में 2 एक्स्ट्रा इंजन जोड़ा गया था ) |
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मरामझिरी (यहाँ इंजनों को ट्रेन से अलग कर दिया गया था ) |
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इटारसी और नागपुर के बीच कहीं भी |
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अमला (अंगरेजी में) या आमला (हिंदी में ) |
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पहाड़ों में गुजरती तमिलनाडु एक्सप्रेस |
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इटारसी और नागपुर के बीच कहीं भी बंजर जमीन |
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इटारसी और नागपुर के बीच कहीं भी बंजर जमीन |
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घुड़नखापा स्टेशन |
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इटारसी और नागपुर के बीच कहीं भी |
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इटारसी और नागपुर के बीच कहीं भी एक पहाड़ी पर मंदिर |
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कोहली (केवल कोहली न तो अरमान कोहली न ही विराट कोहली) |
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कमलेश्वर स्टेशन |
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भरतवाड़ा |
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गोधनी (नागपुर से कुछ पहले) |
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नागपुर |
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सिंदी स्टेशन नागपुर से चेन्नई की तरफ |
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तुलजापुर स्टेशन नागपुर से चेन्नई की तरफ |
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बल्हारशाह स्टेशन पर आदित्या |
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एक नदी |
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बल्हारशाह और वारंगल के बीच कहीं भी सूर्यास्त |
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चेन्नई शहर के अंदर एक स्टेशन |
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चेन्नई सेंट्रल स्टेशन पर कंचन और मैं |
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चेन्नई सेंट्रल स्टेशन पर माँ, कंचन, आदित्या और पिताजी |
चैन्नई तक पूरी यात्रा करा दी।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी, आपका मेरा पोस्ट पढ़ना ही मेरे लिए ख़ुशी की बात होती है , आते रहिएगा। ...
Deleteसहेली के फोटो नीरज भाई के पास हैं
Deleteसादर धन्यवाद और आभार।
Deleteचेन्नई एक ऐसा प्रदेश है जहां एक और धान की रोपाई होती है एक और कटाई यात्रा बहुत अच्छी चल रही है जय हो
ReplyDeleteसादर धन्यवाद विनोद जी, आपने अपना समय दिया। धान की कटाई पर तो ध्यान नहीं दिया पर रोपाई जरूर देखा
Deleteदक्षिण भारत की ट्रेनों में यात्रा का मजा ही कुछ अलग होता है। वरना हमलोगों की तरफ कोई भी बोगी हो यात्री अचार की तरह कसे रहते हैं। भीड़ वाली ट्रेनों में मैं तो बर्थ पर पसरे रहना ही पसंद करता हूँ।
ReplyDeleteरेल यात्रा में ये अब तक का ये मेरा सबसे यादगार सफर रहा। शायद ऐसा हावड़ा रूट के ट्रेनों में भी हो जाये। सोये रहने पर कोई सीट पर बैठ नहीं पाता तो आपका आईडिया भी बड़ा प्यारा है।
Deleteचेन्नई तो बढ़िया जगह है। आपके साथ एक बार फिर घूम लिया
ReplyDeleteसुमधुर धन्यवाद जी
Deleteवाह!! यात्रा का सही आगाज़ हुआ है। नहाने का आईडिया सही था। अटपटे नामों वाले स्टेशन का अपना अलग ही आकर्षण है। कभी कभी सोचता हूँ ऐसे नाम वाले स्टेशन में उतर जाऊँ और दिन उधर ही गुजार दूँ। कभी सोचता हूँ क्या इतिहास होगा ऐसे नाम वाले स्टेशन का। जो भी होगा काफी रोचक होगा।
ReplyDeleteअगली कड़ी का इतंजार है।
धन्यवाद भाई जी। अजब गजब नामों वाले स्टेशनों का कुछ तो इतिहास या कोई तो कारण जरूर रहा होगा, कुछ स्टेशन के नाम तो समझ से परे थे, ऐसे ही कुछ स्टेशन काँगड़ा वैली (पठानकोट से जोगिन्दर नगर ) वाले सेक्शन पर भी दिखे थे
Deleteग़ज़ब की यात्रा ट्रेन के द्वारा
ReplyDeleteसादर धन्यवाद प्रतीक जी अपना समय देने के लिए
DeleteNice post.Keep it up
ReplyDeleteThank you so much sir jee,
DeleteAapne to purani yade taja kara di. Ham bhi 2 baar ja chuke hai chennai.
ReplyDeleteBahut problems bhi huyi thi jab pahali baar gaye the but dusari baar kuchh kam problems huyi thi.
Aapne bahut achha likha hai. padhne me lagta hai ki main khud yatra kar raha huin. Likhte rahiye or yatra karte rahiye. Dhanyavad.
dhanyavad aapka jo aapne apna samay dekar mere likhe hue ko padha, ha language ke karan thodi problem hoti hai par yadi rasta ka pata ho aur thodi bhaut jankari wahan ke jagah ke bare me ho to pareshank kam hoti hai,
Deleteट्रेन का सफर मुझे अति प्रिय है , आपने अपनी इस ट्रेन यात्रा में वो सब कुछ किया जो मुझे अच्छा लगता है ।
ReplyDeleteदिल्ली से चेन्नई तक रेल यात्रा विवरण बहुत अच्छा रहा है, आपने स्टेशनों की फ़ोटो भी खूब खींची
Deleteधन्यवाद और अभिनंदन आपका जो आपने अपना कीमती समय दिया। ट्रेन का सफर तो वैसे भी मज़ेदार होता है, आपको मेरी ये यात्रा अच्छी लगी ये जानकर आपसे ज्यादा ख़ुशी मुझे मिल रही है। हाँ ज्यादातर फोटो स्टेशनों के ही हैं
यात्रा अपने लय में है...... और फोटो भरपूर मात्रा में ......
ReplyDeleteआपका सादर अभिनन्दन है गौरव जी, बस यात्रा में आप साथ साथ चलते रहिये
DeleteSuperb
ReplyDeleteसादर अभिनन्दन जी
Deleteबहुत सुन्दर विवरण । ध्यान से पढ़ने से ऐसा महसूस हुआ कि मैं ही यात्रा कर रहा हूँ । एक बात सच है साऊथ की रेल यात्रा मेंं यात्रियों को थकान महसूस नहीं होती ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद और साधुवाद आपका कुलदीप जी। जी हां सही कहा आपने जब आदमी सीटों की संख्या भर ही हों तो रेल यात्रा मजेदार हो जाती है
Deleteखूबसूरत यात्रा वृतांत।
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